देश / क्या है वो विशालकाय मशीन कासाग्रांडे, जो अयोध्या में करेगी मंदिर निर्माण

अयोध्या में राम मंदिर का नक्शा पास होने के बाद से मंदिर निर्माण के काम में तेजी आ गई है। इसी सिलसिले में एक भारी-भरकम मशीन कासाग्रांडे मंगवाई गई है। इसी मशीन के जरिए मंदिर की नींव में लगने वाले खंभों में कंक्रीट भरी जाएगी, जो लगभग 100 मीटर ऊंचे होंगे। इस भारी काम के लिए इस्तेमाल होने जा रही ये मशीन भी अपने-आप में अनूठी और काफी ताकतवर है, जिसमें 88 चक्के लगे हुए हैं। जानिए, क्या है मशीन और कैसे काम करती है।

News18 : Sep 07, 2020, 03:27 PM
Delhi: अयोध्या में राम मंदिर का नक्शा पास होने के बाद से मंदिर निर्माण (Ram temple construction in Ayodhya) के काम में तेजी आ गई है। इसी सिलसिले में एक भारी-भरकम मशीन कासाग्रांडे (casagrande) मंगवाई गई है। इसी मशीन के जरिए मंदिर की नींव में लगने वाले खंभों में कंक्रीट भरी जाएगी, जो लगभग 100 मीटर ऊंचे होंगे। इस भारी काम के लिए इस्तेमाल होने जा रही ये मशीन भी अपने-आप में अनूठी और काफी ताकतवर है, जिसमें 88 चक्के लगे हुए हैं। जानिए, क्या है मशीन और कैसे काम करती है।

अयोध्या में 17 सितंबर के तुरंत बाद से, यानी पितृ पक्ष खत्म होने के साथ ही राम मंदिर का काम तेजी पकड़ लेगा। इसके लिए सारा साजो-सामान अभी से जुटाया जा रहा है। इसी क्रम में शनिवार को अयोध्या में एक विशालकाय मशीन आई, जिसकी काफी चर्चा हो रही है। कासाग्रांडे नाम की ये मशीन मंदिर के पिलर बनाने का काम करेगी। बता दें कि मंदिर के डिजाइन के मुताबिक उसकी नींव में लगभग 1200 पिलर लगाए जाने वाले हैं। ये पिलर पूरी तरह से कंक्रीट से भरे होंगे और लोहे का कोई इस्तेमाल नहीं होगा। इस पर ही मंदिर की मूल नींव होगी। इस मकसद को पूरा करने के लिए कासाग्रांडे मशीन यहां लाई गई।

राम मंदिर का मानचित्र स्वीकृत हो जाने के बाद रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय की हरी झंडी मिलने के बाद मशीन को कानपुर से अयोध्या लाया गया। इससे पहले मशीन जयपुर में थी। काफी इंतजार के बाद आई इस मशीन की खासियत सबसे अलग है। ये किसी भी तरह से फाउंडेशन के काम में सबसे बेहतर मानी जाती है। चूंकि ये मशीन काफी लंबी-चौड़ी है, इसलिए इसके भीतर एक केबिन बनाया गया है। इसमें बैठा हुआ कर्मचारी डिजिटल डिस्प्ले सिस्टम से मशीन का मूवमेंट देखता है और उसे अपने अनुसार रोक या चालू कर सकता है। काफी बड़ी मशीन होने के बाद भी इसमें कम से कम इंसानी मदद चाहिए होती है।

मशीन स्मार्ट पावर मैनेजमेंट (SPM) पर काम करती है, जिससे इसकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे में अगर मिट्टी काफी कड़ी या चट्टानों से मिली-जुली है या फिर पिलर ऊंचा हो तो दूसरी किसी भी मशीन की अपेक्षा ये बेहतर तरीके से काम करती है। इसके अलावा अगर मशीन स्थिर है तो उसका इंजन कुछ सेकंड्स में ही अपना rpm न्यूनतम पर ले जाता है। इससे ईंधन की काफी बचत होती है।

वैसे ईंधन के मामले में मशीन में और भी कई फायदे हैं। जैसे ये हाइड्रोलिक सिस्टम पर काम करती है, जिससे इसके इस्तेमाल से लगभग 25% तक फ्यूल बचता है। इसे इस्तेमाल करने वाला अपने मुताबिक कस्टमाइज भी कर सकता है। यानी जो फीचर गैरजरूरी लगें, उन्हें हटाया जा सकता है।

कासाग्रांडे की एक और खूबी है। ये खुद ही अपने रेगुलर मेंटेनेंस का ध्यान रखती है। इसमें ऐसा सिस्टम होता है कि अगर कभी रिपेयर या फिर मेंटेनेंस की जरूरत हो तो ये खुद ही उसका अलर्ट देने लगती है। रुटीन रखरखाव के लिए इसमें सेफ्टी फुटरेस्ट बने हुए हैं। इस पर खड़े होकर लोग बिना किसी खतरे के काम कर सकते हैं।

रामजन्मभूमि तक पहुंच चुकी मशीन अपने विशाल आकार के कारण परिसर के भीतर नहीं जा सकी। यही वजह है कि फिलहाल इसे बाहर रखकर परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार को तोड़ा जाने वाला है ताकि मशीन भीतर आ सके। ये सारे काम 17 सितंबर से पहले पूरा होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। तब तक परिसर में जर्जर मंदिरों व भवनों के ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया चल रही है। जन्मस्थान-सीता रसोई व बहराइच मंदिर के अलावा साक्षी गोपाल मंदिर के भवन को ध्वस्त किया जा चुका है। इसके मलबे से मुख्य मंदिर के पश्चिमी भाग के गड्ढे को पाटा जा रहा है।