Vikrant Shekhawat : Nov 08, 2022, 09:49 AM
Delhi News: दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में हुए गैंगरेप के मामले में सभी तीन आरोपियों के बरी होने के बाद पीड़िता के माता पिता ने कहा कि हम न केवल जंग हार गए हैं, बल्कि हमारी जीने की इच्छा भी खत्म हो गई है. पीड़िता के पिता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से उन्हें निराश किया है और 11 साल से ज्यादा समय तक लड़ाई लड़ने के बाद न्यायपालिका से उनका विश्वास उठ गया है. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि सिस्टम उनकी गरीबी का फायदा उठा रहा है.साल 2014 में एक निचली ने मामले को दुर्लभतम बताते हुए तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी. बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा. तीन लोगों पर फरवरी 2012 में 19 साल की युवती के अपहरण, बलात्कार और बेरहमी से हत्या करने का आरोप है. अपहरण के तीन दिन बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था.हम जंग हार गए, खत्म हो गई जीने की इच्छा- पीड़िता की मांपीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, 11 साल बाद भी यह फैसला आया है. हम हार गए…हम जंग हार गए …मैं उम्मीद के साथ जी रही थी…मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है. मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा. पीड़िता के पिता ने कहा, अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ.उन्होंने कहा, 11 साल से हम दर-दर भटक रहे हैं. निचली अदालत ने भी अपना फैसला सुनाया. हमें राहत मिली. हाई कोर्ट से भी हमें आश्वासन मिला. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमें निराश किया. अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ. इस बीच, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की .मैं पूरी तरह से स्तब्ध हूं- सामाजिक कार्यकर्ताकोर्ट परिसर के बाहर पीड़िता के माता-पिता के साथ मौजूद कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा, मैं पूरी तरह से स्तब्ध हूं. सुबह, हमें पूरी उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत मौत की सजा को बरकरार रखेगी और हमें यह भी लगता था कि वे मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं. सामाजिक कार्यकर्ता विनोद बछेती पिछले 10 साल से न्याय की लड़ाई में परिवार का समर्थन कर रहे थे. उन्होंने कहा कि वे भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को एक बैठक करेंगे. उन्होंने कहा, हम पिछले 10 साल से परिवार का समर्थन कर रहे हैं. घटना 9 फरवरी, 2012 को हुई और 10 महीने बाद निर्भया सामूहिक बलात्कार हुआ. (छावला) पीड़िता अपने परिवार का खर्च भी उठा रही थी.