Reservation / कब बने OBC आरक्षण पर आयोग और कैसे अटकीं उनकी सिफारिशें? प्रधानमंत्री मोदी ने उठाया मामला

‘मैं किसी आरक्षण को पसंद नहीं करता. नौकरी में आरक्षण को तो कतई नहीं. मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूं जो अकुशलता को बढ़ावा दे और दोयम दर्जे की तरफ ले जाए…’, ये वो लाइनें हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने देश के मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी में लिखी थी. बुधवार को पीएम मोदी ने वो चिट्ठी राज्यसभा में पढ़ी. पीएम ने कहा, पंडित नेहरू कहते थे, एससी, एसटी और ओबीसी को नौकरियों में आरक्षण मिला तो सरकारी कामकाज का स्तर

Vikrant Shekhawat : Feb 07, 2024, 08:01 PM
Reservation: ‘मैं किसी आरक्षण को पसंद नहीं करता. नौकरी में आरक्षण को तो कतई नहीं. मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूं जो अकुशलता को बढ़ावा दे और दोयम दर्जे की तरफ ले जाए…’, ये वो लाइनें हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने देश के मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी में लिखी थी. बुधवार को पीएम मोदी ने वो चिट्ठी राज्यसभा में पढ़ी. पीएम ने कहा, पंडित नेहरू कहते थे, एससी, एसटी और ओबीसी को नौकरियों में आरक्षण मिला तो सरकारी कामकाज का स्तर गिर जाएगा.

पीएम मोदी ने कहा कि यही वजह है कि मैं कहता हूं कि ये जन्मजात आरक्षण के विरोधी हैं. कांग्रेस ने कभी भी ओबीसी को पूर्ण आरक्षण नहीं दिया. इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो पाएंगे कि कांग्रेस के पास ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के कई मौके थे, लेकिन पार्टी इसमें पिछड़ती गई. दूसरी पार्टियों ने ओबीसी वर्ग की जरूरतों को समझा. राजनीति में कई दिग्गज नेता ओबीसी लीडर बनकर उभरे. ओबीसी को आरक्षणदेने के लिए कमेटी तो बनी, लेकिन आरक्षण देने की प्रक्रिया को वो रफ्तार नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी.

कैसे बना काला कालेलकर आयोग?

देश में आरक्षण की मांग शुरू होने पर 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पिछड़े वर्गों के लिए काला कालेलकर आयोग का गठन किया. जिसे प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग के रूप में जाना गया. आयोग ने दो साल बाद 1955 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट के आधार पर बात आगे नहीं बढ़ी. आयोग की रिपोर्ट में कई खामियां थीं. उसमें दूसरे धर्मों को नजरंदाज करते हुए केवल हिन्दुओं का जिक्र किया था. खामियां जाहिर होने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

अगले कई सालों में OBC वर्ग का समर्थन स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को मिलने लगा. उनकी मौत के बाद 1967 में पश्चिम यूपी से जाट नेता चौधरी चरण सिंह ओबीसी के दिग्गज नेता बनकर उभरे.

कब हुई मंडल आयोग की स्थापना?

रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 1975 में कांग्रेस नेता और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने ओबीसी आरक्षण पर विचार करते हुए बड़ा ऐलान किया. उन्होंने ओबीसी वर्ग को सरकारी नौकरियों में 15 फीसदी आरक्षण देने की बात कही. यह कांग्रेस की तरफ से बड़ा कदम था. इसके एक हफ्ते के अंदर ही मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार ने एनडी तिवारी सरकार को बाहर का रास्ता दिखाया. बाद में जनता पार्टी के नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव (1977-79) ने उत्तर प्रदेश में आरक्षण लागू किया और इसका श्रेय भी लिया.

साल 1990 में कांग्रेस को एक और झटका लगा, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने बड़ा ऐलान करते हुए मंडल आयोग कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की बात कही. इस आयोग की स्थापना सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग (SEBC) के तौर पर 1 जनवरी 1979 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने की थी.

दिलचस्प बात यह रही कि इस आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी थी वो भी 14 साल तक धूल फांकती रही. इस दौरान कांग्रेस सत्ता में थी, लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं किया गया. धीरे-धीरे पार्टियां ओबीसी की ताकत को समझने लगीं और आरक्षण को लेकर बयान आने लगे. कई नेता ओबीसी लीडर बनकर उभरे.

2006 में, यूपीए-1 सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने की बात कही. मंडल रिपोर्ट की यह सिफारिश लम्बे समय से लंबित थी.

साल 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया ताकि आरक्षण का फायदा वंचित लोगों तक भी पहुंचे. केंद्र ने OBC के बीच क्रीमीलेयर को आरक्षण नीति के लाभ से बाहर करने के लिए नई व्यवस्था लागू की. साल 2018 में भारतीय संविधान का 102वां संशोधन करते हुए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया. यह फैसला पिछड़े वर्ग के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. आयोग सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में काम कर रहा है.