Zee News : Sep 17, 2020, 07:46 AM
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शादी से 30 दिन पहले जोड़े का ब्यौरा नोटिस बोर्ड पर लगाने के विशेष विवाह कानून के कुछ प्रावधानों पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट में याचिका दायर करने वाली केरल में कानून की छात्रा ने कहा कि यह प्रावधान निजता के अधिकार का हनन है। इससे धर्म, जाति के बंधन तोड़कर शादी करने जा रहे जोड़ों को खतरा बढ़ जाता है।
छात्रा ने दावा किया है कि विशेष विवाह कानून के कुछ प्रावधान विवाह के इच्छुक जोड़ी के मूल अधिकार का हनन करते हैं। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार से वंचित करते हैं।चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एस बोपन्ना और रामसुब्रमण्यन की तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि आप हमें बताइये कि क्या समाधान है? पीठ ने कहा कि जिस क्षण आप इन प्रावधानों को हटा लेंगे, उससे वे लोग प्रभावित होंगे जिनके लिये इसे लागू किया गया था। याचिकाकर्ता नंदिनी प्रवीण की ओर से पेश हुए वकील ने न्यायालय के उस ऐतिहासिक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें निजता के अधिकार को संविधान के तहत मूल अधिकार घोषित किया गया था। वकील ने कहा कि याचिका निजता के मुद्दे को उठाती है और यह व्यक्ति की गरिमा के बारे में भी है।इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि आप निजता के बारे में पूरी दुनिया के इस बारे में जान जाने के बारे में कह रहे हैं। लेकिन इसके सकारात्मक बिंदुओं को भी देखिए। इस रिट याचिका में विशेष विवाह कानून की धारा छह (2), सात, आठ और 10 को अनुचित, अवैध तथा अंसवैधानिक करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान दोनोंम पक्षों को विवाह से 30 दिन पहले अपना निजी ब्योरा सार्वजनिक पड़ताल के लिये रखने की जरूरत का जिक्र करते हैं।इसमें कहा गया है कि प्रावधान किसी भी व्यक्ति को विवाह पर आपत्ति दर्ज कराने की भी अनुमति देता है और विवाह अधिकारी को ऐसी आपत्तियों की छानबीन करने की शक्ति देता है। याचिका में कहा गया है कि विवाह से पहले नोटिस देना हिंदू विवाह अधिनियम और इस्लाम में परंपरागत विवाह में भी अनुपस्थित है। इसलिए यह प्रावधान भेदभावपूर्ण है तथा अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हनन करता है।
छात्रा ने दावा किया है कि विशेष विवाह कानून के कुछ प्रावधान विवाह के इच्छुक जोड़ी के मूल अधिकार का हनन करते हैं। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त निजता के अधिकार से वंचित करते हैं।चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एस बोपन्ना और रामसुब्रमण्यन की तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि आप हमें बताइये कि क्या समाधान है? पीठ ने कहा कि जिस क्षण आप इन प्रावधानों को हटा लेंगे, उससे वे लोग प्रभावित होंगे जिनके लिये इसे लागू किया गया था। याचिकाकर्ता नंदिनी प्रवीण की ओर से पेश हुए वकील ने न्यायालय के उस ऐतिहासिक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें निजता के अधिकार को संविधान के तहत मूल अधिकार घोषित किया गया था। वकील ने कहा कि याचिका निजता के मुद्दे को उठाती है और यह व्यक्ति की गरिमा के बारे में भी है।इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि आप निजता के बारे में पूरी दुनिया के इस बारे में जान जाने के बारे में कह रहे हैं। लेकिन इसके सकारात्मक बिंदुओं को भी देखिए। इस रिट याचिका में विशेष विवाह कानून की धारा छह (2), सात, आठ और 10 को अनुचित, अवैध तथा अंसवैधानिक करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान दोनोंम पक्षों को विवाह से 30 दिन पहले अपना निजी ब्योरा सार्वजनिक पड़ताल के लिये रखने की जरूरत का जिक्र करते हैं।इसमें कहा गया है कि प्रावधान किसी भी व्यक्ति को विवाह पर आपत्ति दर्ज कराने की भी अनुमति देता है और विवाह अधिकारी को ऐसी आपत्तियों की छानबीन करने की शक्ति देता है। याचिका में कहा गया है कि विवाह से पहले नोटिस देना हिंदू विवाह अधिनियम और इस्लाम में परंपरागत विवाह में भी अनुपस्थित है। इसलिए यह प्रावधान भेदभावपूर्ण है तथा अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हनन करता है।