News18 : Aug 11, 2020, 03:26 PM
Delhi: डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि को कथित तौर पर चेन्नई एयरपोर्ट पर हिंदी न आने के चलते बदसलूकी झेलनी पड़ी। अब दक्षिण भारत के कई नेता इसी तरह की शिकायत कर रहे हैं। इसके साथ ही ये मुद्दा एक बार फिर उछला है कि क्या हिंदी जानने पर ही कोई भारतीय होता है या क्या वाकई में हिंदी या कोई भी भाषा देश की राष्ट्रभाषा है?
जानिए, क्या है ताजा विवाद दरअसल डीएमके सांसद कनिमोझी से एयरपोर्ट पर तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CISF) की महिला कांस्टेबल ने हिंदी में कुछ कहा। इस पर सांसद ने बताया कि उन्हें हिंदी नहीं आती, लेकिन तमिल या अंग्रेजी में वो समझ सकेंगी। इसके बाद कथित तौर पर कांस्टेबल ने उनसे कहा कि क्या आप भारतीय हैं? सांसद ने अपने साथ हुई इस घटना पर ट्वीट करके गुस्सा जताया।इसके बाद से दक्षिण के कई वरिष्ठ नेता मिलती-जुलती शिकायत कर रहे हैं। कांग्रेसी नेता पी चिंदबरम से लेकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी कहा कि हिंदी को लेकर उन्हें कई बार भेदभाव झेलना पड़ा। हिंदी ठीक से न बोल पाने के कारण आगे आने के मौके भी सीमित हो गए।
भाषा को लेकर ये विवाद नया नहींअक्सर ही दक्षिण भारत से ऐसी आवाजें आती रही हैं कि उन पर हिंदी थोपने की कोशिश की जाती है। यहां तक कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर भी अच्छा-खासा विवाद हो चुका है। जी हां, हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है। संविधान की धारा 343 के मुताबिक ये भी अंग्रेजी की तरह ही राजभाषा है। यानी इन भाषाओं में सरकारी कामकाज होते हैं। कुल मिलाकर भारत एक ऐसा देश है, जहां कोई राष्ट्रभाषा नहीं।
आजादी से पहले से होती रही हिंदी की बातहालांकि देश की आधी से ज्यादा आबादी हिंदी बोलती है। साथ ही गैर हिंदी भाषी जनसंख्या में भी करीब 20 फीसदी लोग हिंदी समझते हैं। यही देखते हुए खुद महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। उन्होंने 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्र भाषा (National Language) बनाने के लिए कहा था। लेकिन इसके बाद भी हिंदी राजभाषा बनकर रह गई। इसकी वजह थी कि देश में कई भाषा-भाषी लोग रहते हैं। ऐसे में अगर किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल जाए तो दूसरी भाषाओं के लोग उपेक्षित महसूस करेंगे।
ये भी रहा एक रोड़ाएक और बड़ी वजह भारत के बंटवारे को माना जाता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उर्दू-मिश्रित हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात की ताकि हिंदू-मुस्लिम दोनों इसे अपनाएं। लेकिन विभाजन के कारण बहुतों के मन में गुस्सा भरा हुआ था। वे संस्कृतनिष्ठ हिंदी की मांग करने लगे। दक्षिण भारतीय हिंदी को ही नहीं चाहते थे। इस बात का जिक्र इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी (India After Gandhi) में भी है।किताब में है जिक्रएक घटना का जिक्र करते हुए गुहा ने लिखा है कि जब भारतीय संविधान सभा के सदस्य आरवी धुलेकर ने हिंदी में अपनी बात कहनी शुरू की तो उन्हें टोका गया कि सभा में कईयों को हिंदी नहीं आती। इस पर धुलेकर ने कहा कि जिन्हें हिंदी नहीं आती, उन्हें हिंदुस्तान में रहने का हक नहीं। इसके बाद बहस बढ़ने लगी क्योंकि टीटी कृष्णमचारी, जो देश के पहले वित्तमंत्री भी थे, ने कहा कि अगर इस उम्र में उन्हें हिंदी सीखने को मजबूर किया जाए तो ये उनके लिए खासा मुश्किल होगा।
जानिए, क्या है ताजा विवाद दरअसल डीएमके सांसद कनिमोझी से एयरपोर्ट पर तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CISF) की महिला कांस्टेबल ने हिंदी में कुछ कहा। इस पर सांसद ने बताया कि उन्हें हिंदी नहीं आती, लेकिन तमिल या अंग्रेजी में वो समझ सकेंगी। इसके बाद कथित तौर पर कांस्टेबल ने उनसे कहा कि क्या आप भारतीय हैं? सांसद ने अपने साथ हुई इस घटना पर ट्वीट करके गुस्सा जताया।इसके बाद से दक्षिण के कई वरिष्ठ नेता मिलती-जुलती शिकायत कर रहे हैं। कांग्रेसी नेता पी चिंदबरम से लेकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी कहा कि हिंदी को लेकर उन्हें कई बार भेदभाव झेलना पड़ा। हिंदी ठीक से न बोल पाने के कारण आगे आने के मौके भी सीमित हो गए।
भाषा को लेकर ये विवाद नया नहींअक्सर ही दक्षिण भारत से ऐसी आवाजें आती रही हैं कि उन पर हिंदी थोपने की कोशिश की जाती है। यहां तक कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर भी अच्छा-खासा विवाद हो चुका है। जी हां, हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है। संविधान की धारा 343 के मुताबिक ये भी अंग्रेजी की तरह ही राजभाषा है। यानी इन भाषाओं में सरकारी कामकाज होते हैं। कुल मिलाकर भारत एक ऐसा देश है, जहां कोई राष्ट्रभाषा नहीं।
आजादी से पहले से होती रही हिंदी की बातहालांकि देश की आधी से ज्यादा आबादी हिंदी बोलती है। साथ ही गैर हिंदी भाषी जनसंख्या में भी करीब 20 फीसदी लोग हिंदी समझते हैं। यही देखते हुए खुद महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। उन्होंने 1918 में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्र भाषा (National Language) बनाने के लिए कहा था। लेकिन इसके बाद भी हिंदी राजभाषा बनकर रह गई। इसकी वजह थी कि देश में कई भाषा-भाषी लोग रहते हैं। ऐसे में अगर किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल जाए तो दूसरी भाषाओं के लोग उपेक्षित महसूस करेंगे।
ये भी रहा एक रोड़ाएक और बड़ी वजह भारत के बंटवारे को माना जाता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उर्दू-मिश्रित हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात की ताकि हिंदू-मुस्लिम दोनों इसे अपनाएं। लेकिन विभाजन के कारण बहुतों के मन में गुस्सा भरा हुआ था। वे संस्कृतनिष्ठ हिंदी की मांग करने लगे। दक्षिण भारतीय हिंदी को ही नहीं चाहते थे। इस बात का जिक्र इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी (India After Gandhi) में भी है।किताब में है जिक्रएक घटना का जिक्र करते हुए गुहा ने लिखा है कि जब भारतीय संविधान सभा के सदस्य आरवी धुलेकर ने हिंदी में अपनी बात कहनी शुरू की तो उन्हें टोका गया कि सभा में कईयों को हिंदी नहीं आती। इस पर धुलेकर ने कहा कि जिन्हें हिंदी नहीं आती, उन्हें हिंदुस्तान में रहने का हक नहीं। इसके बाद बहस बढ़ने लगी क्योंकि टीटी कृष्णमचारी, जो देश के पहले वित्तमंत्री भी थे, ने कहा कि अगर इस उम्र में उन्हें हिंदी सीखने को मजबूर किया जाए तो ये उनके लिए खासा मुश्किल होगा।
शास्त्री जी की बात पर सुलगा था दक्षिणइसके बाद हिंदी राष्ट्रभाषा बनते-बनते रह गई। वैसे साल 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने का फैसला किया था लेकिन इस पर दक्षिण भारत में बगावत की आग सुलग उठी। डीएमके की अगुआई में दक्षिण में हिंदी किताबें जलाई गईं। इसके बाद पीएम ने साफ किया कि गैर हिंदीभाषियों को डरने की जरूरत नहीं है। हर राज्य यह खुद तय कर सकता है कि वह किस भाषा में सरकारी कामकाज करेगा।इजरायल ने रातोंरात बना दी राष्ट्रभाषाएक तरफ देश की बड़ी आबादी की पहली भाषा होने के बाद भी हिंदी विवादों में है, दूसरी ओर कई ऐसे राष्ट्र हैं, जहां एक भाषा लोगों को एक सूत्र में बांध रही है। अपनी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का एक बड़ा उदाहरण इजरायल है। साल 1948 में आजाद इजरायल के पहले पीएम डेविड गुरियन ने पद संभालते ही अपने सहयोगियों के साथ चर्चा की।बात हो रही थी कि अगर हिब्रू को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल हो तो कितना वक्त लगेगा। ज्यादातर का कहना था कि इसमें काफी समय लगेगा क्योंकि हिब्रू की जगह वहां अरबी ने ले ली थी। गुरियन ने बिना एक मिनट गंवाए ऐलान कर दिया कि अगले रोज से हिब्रू ही इजरायल की राष्ट्रभाषा होगी। लोगों की सहूलियत के लिए अरबी को विशेष भाषा का दर्जा मिला। इसके बाद ही यहूदी संस्कृति की प्राचीन भाषा हिब्रू का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ।The unpleasant experience of DMK MP Ms Kanimozhi at Chennai airport is not unusual.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 10, 2020