AajTak : Jul 27, 2020, 08:13 AM
Delhi: पर्वतों का उदाहरण अक्सर मजबूती और बुलंदी को लेकर दिया जाता है। पर क्या आपको पता है कि भारत की सीमाओं की मजबूती से रक्षा करने वाला हिमालय पर्वत दुनिया के सबसे कमजोर पर्वतों में से एक है। दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्ट को अपने में समेटे हुए इस पर्वत की चट्टानें कई जगहों पर काफी कमजोर और भुरभुरी हैं।
इसके बावजूद दुनिया के सबसे नये पर्वतों में शुमार हिमालय के आसपास काफी सघन आबादी रहती है। इसकी वजह हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से निकलने वाली नदियां हैं। ये नदियां दुनिया की आबादी के करीब पांचवें हिस्से को पानी देती हैं। लेकिन हिमालय और इसके आसपास की जमीन अपने अंदर काफी हलचल समेटे हुए है जो समय-समय पर जमीन की सतह पर भी दिखती रहती है। यह हलचल हिमालय और इसके आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। इस खतरे की वजहें दरअसल हिमालय की बनावट में ही छिपी हैं। आइए जानते हैं कि किस तरह के खतरे को अपने अंदर समेटे हुए है हिमालय।कैसे बना हमारा हिमालय?हमारी धरती के नीचे कई तहों में प्लेट्स होती हैं जो गतिशील रहती हैं। कई बार यह प्लेट बीच से उठकर आपस में टकरा जाती हैं, जिसके असर और बदलाव धरती के ऊपर भी नजर आते हैं। हिमालय का निर्माण पृथ्वी के नीचे ऐसी ही दो प्लेटों (इंडियन और यूरेशियन प्लेट) के आपस में टकराने और एक-दूसरे में धंसने से हुआ है। जब ये प्लेट आपस में टकराती हैं तो फॉल्ट लाइन बनती हैं। फॉल्ट लाइन तीन तरह की होती हैं: स्ट्राइक थ्रस्ट (प्लेटों का हॉरिजॉन्टली मूव करना), नॉर्मल फॉल्ट लाइन जिसमें प्लेट एक-दूसरे से दूर जाती हैं और बीच में घाटी बन जाती है और तीसरी होती ही हिमालय को बनाने वाली रिवर्स फॉल्ट लाइन।हिमालय की फॉल्ट लाइनहिमालय में कई फॉल्ट लाइन हैं। हर फॉल्ट लाइन की सतह के पहाड़ या चट्टानें एक-दूसरे से अलग हैं। ये फॉल्ट लाइन गंगा के मैदानी इलाकों से लेकर तिब्बती पठार तक को एक-दूसरे को अलग करती हैं। इन फॉल्ट लाइन में प्रमुख हैं- हिमालयन सेंट्रल थ्रस्ट, लेसर हिमालयन, मेन सेंट्रल थ्रस्ट, टेथयान हिमालयन थ्रस्ट, ट्रांस हिमालय फॉल्ट लाइन, हायर हिमालय फॉल्ट लाइन। हिमालय के सभी भ्रंश यानी फॉल्ट लाइन की चट्टानों का स्वरूप अलग-अलग है। इनकी चट्टानों में दरारें हैं। कम उम्र की होने की वजह से ये काफी कमजोर भी हैं। हिमालयन रेंज का सबसे ऊंचा शिखर समुद्र के नीचे से निकला हुआ हिस्सा है। मेन सेंट्रल थ्रस्ट्र का हिस्सा कठोर चट्टानों से बना है तो मध्य हिमालय का हिस्सा भूकंप के लिहाज से सबसे संवेदनशील है। इस पर सड़क और डैम बनाते समय काफी सावधानी बरतने की जरूरत है।
हिमालय के दो हिस्से सबसे कमजोरहिमालय की दो फॉल्ट लाइन सबसे संवेदनशील हैं। पहली- सेंट्रल थ्रस्ट जो शिवालिक रेंज और गंगा के मैदानी इलाके को अलग करती है और दूसरी है हायर हिमालयन लाइन यानी हिमालय का सबसे ऊंचा वाला हिस्सा। सेंट्रल थ्रस्ट वाली फॉल्ट लाइन की चट्टानें क्ले और रेत की बनी हैं। इन पर जमीन के नीचे होने वाली किसी भी हलचल का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। भू-वैज्ञानिकों ने इस इलाके को भूकंप के लिए सबसे संवेदनशील इलाकों में से माना है। हायर हिमालय की बात करें तो यह हिस्सा दो प्लेटों के एक-दूसरे में धंसने से बना है। इस हिस्से ने सबसे ज्यादा दबाव भी झेला है। सबसे ज्यादा एनर्जी जमीन के इसी हिस्से के नीचे है और सबसे ज्यादा भूकंप इसी इलाके के आसपास आने वाले हैं।हिमालय की खासियत भी है उसकी मुसीबतहम बचपन से पढ़ते आए हैं कि हिमालय साइबेरिया और चीन से आने वाली सर्द हवाओं से हमारी रक्षा करता है। इस तरह से यह भारत की जलवायु को उष्ण कटिबंधीय बनाता है। साथ ही यह हिंद महासागर से उठी वाष्पित हवाओं को रोककर पूरे देश में बादलों को बरसने के लिए मजबूर करता है। हिमालय की यही खासियत अक्सर उस पर भारी पड़ती है। इस समय देश भर में मॉनसून आया हुआ है और इसी मौसम में इस पर्वत की कमजोरी अक्सर इसकी सतह पर दिखाई देती है। बादल फटने या तेज बारिश से ही जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश या उत्तराखंड में कई जगह पहाड़ों के दरकने या चट्टानों के टूटने की खबरें आती रहती हैं। कई बार तो इसकी नदियों की तेज धार से भी पर्वतों को नुकसान पहुंच जाता है।
बाकी पर्वत श्रृंखलाओं से ऐसे अलग है हिमालयभारत में प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में हिमालय, अरावली, विंध्य पर्वक श्रृंखलाओं के अलावा ईस्टर्न और वेस्टर्न घाट हैं। इनमें ईस्टर्न और वेस्टर्न घाट ज्वालामुखी के लावे से बने हैं। वहीं हिमालय, अरावली और विंध्य पर्वत श्रृंखलाएं प्लेटों के आपस में टकराने से बनी हैं। इनमें विंध्य और अरावली रेंज की उम्र करीब 3 अरब साल तक आंकी जाती है। जबकि इनके मुकाबले हिमालय की उम्र 5-6 करोड़ साल ही है। हिमालय का निर्माण भारत और एशिया के नीचे की टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से हुआ। आज भी ये प्लेट दूसरे के खिलाफ जोर लगा रही हैं। यानी हिमालय आज भी विकसित हो रहा है। अभी हिमालय काफी युवा है। दुनया के दूसरे पर्वतों के मुकाबले इसके नीचे सबसे ज्यादा हलचल है और यह लगातार विकसित हो रहा है। भूगर्भशास्त्री और फिजिकल रिसर्च लैब अहमदाबाद से रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। नवीन जुयाल बताते हैं कि हिमालय की तह में इडियन प्लेट अब भी यूरेशियन प्लेट के नीचे घुस रही है। इसकी स्पीड करीब 20 मिलीमीटर प्रति वर्ष है।डॉ। नवीन जुयाल आगे बताते हैं कि हिमालय सबसे नया पर्वत होने के साथ ही सबसे भंगुर भी है। इस इलाके को लेकर सबसे संवेदनशील होने की जरूरत है। इस इलाके में छेड़छाड़ काफी खतरनाक साबित हो सकती है। यहां पर डैम और सड़कें बनाने को लेकर काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। इस पहाड़ में काफी तीखे ढलान हैं तो नदियों का बहाव भी काफी तेज है। यह इतना तेज है कि इसे रोका या बांधा नहीं जा सकता है। कई बार तो ये बहाव बिना बांधे हुए भी इतना तेज होता है कि अपनी धारा (Stream) बदलकर पहाड़ों के लिए नुकसानदायक हो जाता है। डॉ। जुयाल कहते हैं कि यहां होने वाले लैंडस्लाइड में भी एक पैटर्न देखने को मिलता है कि पहाड़ गिरने या टूटने के ज्यादातर हादसे सड़कों के साथ होते हैं। यहां पर सड़क का वर्टिकल कर्व भी लैंडस्लाइड को न्योता देता है। हिमालय के नीति निर्माताओं को ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए
हमेशा तना नहीं रहेगा हिमालय का सिरडॉ। जुयाल आगे कहते हैं कि उनसे कई शोध छात्र यह पूछते हैं कि हिमालय का आगामी स्वरूप कैसा होगा। वह कहते हैं कि हिमालय के सिर हमेशा दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर होने का ताज नहीं रहेगा। इसकी वजह यह है कि अभी हिमालय विकसित हो रहा है। जैसे यह ऊंचा उठा है, वैसे ही यह नीचे भी जाएगा। इंडियन प्लेट के नीचे दबने के बाद हिमालय का कद भी कम होता जाएगा। हिमालय के नीचे आने की वजह प्लेट का धंसना और ग्रैविटेशनल फोर्स है। वह कहते हैं कि हवा में उठी चीज को पृथ्वी का केंद्र अपनी ओर खींचता है। इसी वजह से हिमालय भी नीचे आएगा। हालांकि वह कहते हैं कि इसमें अभी लाखों साल लगेंगे।
इसके बावजूद दुनिया के सबसे नये पर्वतों में शुमार हिमालय के आसपास काफी सघन आबादी रहती है। इसकी वजह हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से निकलने वाली नदियां हैं। ये नदियां दुनिया की आबादी के करीब पांचवें हिस्से को पानी देती हैं। लेकिन हिमालय और इसके आसपास की जमीन अपने अंदर काफी हलचल समेटे हुए है जो समय-समय पर जमीन की सतह पर भी दिखती रहती है। यह हलचल हिमालय और इसके आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। इस खतरे की वजहें दरअसल हिमालय की बनावट में ही छिपी हैं। आइए जानते हैं कि किस तरह के खतरे को अपने अंदर समेटे हुए है हिमालय।कैसे बना हमारा हिमालय?हमारी धरती के नीचे कई तहों में प्लेट्स होती हैं जो गतिशील रहती हैं। कई बार यह प्लेट बीच से उठकर आपस में टकरा जाती हैं, जिसके असर और बदलाव धरती के ऊपर भी नजर आते हैं। हिमालय का निर्माण पृथ्वी के नीचे ऐसी ही दो प्लेटों (इंडियन और यूरेशियन प्लेट) के आपस में टकराने और एक-दूसरे में धंसने से हुआ है। जब ये प्लेट आपस में टकराती हैं तो फॉल्ट लाइन बनती हैं। फॉल्ट लाइन तीन तरह की होती हैं: स्ट्राइक थ्रस्ट (प्लेटों का हॉरिजॉन्टली मूव करना), नॉर्मल फॉल्ट लाइन जिसमें प्लेट एक-दूसरे से दूर जाती हैं और बीच में घाटी बन जाती है और तीसरी होती ही हिमालय को बनाने वाली रिवर्स फॉल्ट लाइन।हिमालय की फॉल्ट लाइनहिमालय में कई फॉल्ट लाइन हैं। हर फॉल्ट लाइन की सतह के पहाड़ या चट्टानें एक-दूसरे से अलग हैं। ये फॉल्ट लाइन गंगा के मैदानी इलाकों से लेकर तिब्बती पठार तक को एक-दूसरे को अलग करती हैं। इन फॉल्ट लाइन में प्रमुख हैं- हिमालयन सेंट्रल थ्रस्ट, लेसर हिमालयन, मेन सेंट्रल थ्रस्ट, टेथयान हिमालयन थ्रस्ट, ट्रांस हिमालय फॉल्ट लाइन, हायर हिमालय फॉल्ट लाइन। हिमालय के सभी भ्रंश यानी फॉल्ट लाइन की चट्टानों का स्वरूप अलग-अलग है। इनकी चट्टानों में दरारें हैं। कम उम्र की होने की वजह से ये काफी कमजोर भी हैं। हिमालयन रेंज का सबसे ऊंचा शिखर समुद्र के नीचे से निकला हुआ हिस्सा है। मेन सेंट्रल थ्रस्ट्र का हिस्सा कठोर चट्टानों से बना है तो मध्य हिमालय का हिस्सा भूकंप के लिहाज से सबसे संवेदनशील है। इस पर सड़क और डैम बनाते समय काफी सावधानी बरतने की जरूरत है।
हिमालय के दो हिस्से सबसे कमजोरहिमालय की दो फॉल्ट लाइन सबसे संवेदनशील हैं। पहली- सेंट्रल थ्रस्ट जो शिवालिक रेंज और गंगा के मैदानी इलाके को अलग करती है और दूसरी है हायर हिमालयन लाइन यानी हिमालय का सबसे ऊंचा वाला हिस्सा। सेंट्रल थ्रस्ट वाली फॉल्ट लाइन की चट्टानें क्ले और रेत की बनी हैं। इन पर जमीन के नीचे होने वाली किसी भी हलचल का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। भू-वैज्ञानिकों ने इस इलाके को भूकंप के लिए सबसे संवेदनशील इलाकों में से माना है। हायर हिमालय की बात करें तो यह हिस्सा दो प्लेटों के एक-दूसरे में धंसने से बना है। इस हिस्से ने सबसे ज्यादा दबाव भी झेला है। सबसे ज्यादा एनर्जी जमीन के इसी हिस्से के नीचे है और सबसे ज्यादा भूकंप इसी इलाके के आसपास आने वाले हैं।हिमालय की खासियत भी है उसकी मुसीबतहम बचपन से पढ़ते आए हैं कि हिमालय साइबेरिया और चीन से आने वाली सर्द हवाओं से हमारी रक्षा करता है। इस तरह से यह भारत की जलवायु को उष्ण कटिबंधीय बनाता है। साथ ही यह हिंद महासागर से उठी वाष्पित हवाओं को रोककर पूरे देश में बादलों को बरसने के लिए मजबूर करता है। हिमालय की यही खासियत अक्सर उस पर भारी पड़ती है। इस समय देश भर में मॉनसून आया हुआ है और इसी मौसम में इस पर्वत की कमजोरी अक्सर इसकी सतह पर दिखाई देती है। बादल फटने या तेज बारिश से ही जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश या उत्तराखंड में कई जगह पहाड़ों के दरकने या चट्टानों के टूटने की खबरें आती रहती हैं। कई बार तो इसकी नदियों की तेज धार से भी पर्वतों को नुकसान पहुंच जाता है।
बाकी पर्वत श्रृंखलाओं से ऐसे अलग है हिमालयभारत में प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में हिमालय, अरावली, विंध्य पर्वक श्रृंखलाओं के अलावा ईस्टर्न और वेस्टर्न घाट हैं। इनमें ईस्टर्न और वेस्टर्न घाट ज्वालामुखी के लावे से बने हैं। वहीं हिमालय, अरावली और विंध्य पर्वत श्रृंखलाएं प्लेटों के आपस में टकराने से बनी हैं। इनमें विंध्य और अरावली रेंज की उम्र करीब 3 अरब साल तक आंकी जाती है। जबकि इनके मुकाबले हिमालय की उम्र 5-6 करोड़ साल ही है। हिमालय का निर्माण भारत और एशिया के नीचे की टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से हुआ। आज भी ये प्लेट दूसरे के खिलाफ जोर लगा रही हैं। यानी हिमालय आज भी विकसित हो रहा है। अभी हिमालय काफी युवा है। दुनया के दूसरे पर्वतों के मुकाबले इसके नीचे सबसे ज्यादा हलचल है और यह लगातार विकसित हो रहा है। भूगर्भशास्त्री और फिजिकल रिसर्च लैब अहमदाबाद से रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। नवीन जुयाल बताते हैं कि हिमालय की तह में इडियन प्लेट अब भी यूरेशियन प्लेट के नीचे घुस रही है। इसकी स्पीड करीब 20 मिलीमीटर प्रति वर्ष है।डॉ। नवीन जुयाल आगे बताते हैं कि हिमालय सबसे नया पर्वत होने के साथ ही सबसे भंगुर भी है। इस इलाके को लेकर सबसे संवेदनशील होने की जरूरत है। इस इलाके में छेड़छाड़ काफी खतरनाक साबित हो सकती है। यहां पर डैम और सड़कें बनाने को लेकर काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। इस पहाड़ में काफी तीखे ढलान हैं तो नदियों का बहाव भी काफी तेज है। यह इतना तेज है कि इसे रोका या बांधा नहीं जा सकता है। कई बार तो ये बहाव बिना बांधे हुए भी इतना तेज होता है कि अपनी धारा (Stream) बदलकर पहाड़ों के लिए नुकसानदायक हो जाता है। डॉ। जुयाल कहते हैं कि यहां होने वाले लैंडस्लाइड में भी एक पैटर्न देखने को मिलता है कि पहाड़ गिरने या टूटने के ज्यादातर हादसे सड़कों के साथ होते हैं। यहां पर सड़क का वर्टिकल कर्व भी लैंडस्लाइड को न्योता देता है। हिमालय के नीति निर्माताओं को ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए
हमेशा तना नहीं रहेगा हिमालय का सिरडॉ। जुयाल आगे कहते हैं कि उनसे कई शोध छात्र यह पूछते हैं कि हिमालय का आगामी स्वरूप कैसा होगा। वह कहते हैं कि हिमालय के सिर हमेशा दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर होने का ताज नहीं रहेगा। इसकी वजह यह है कि अभी हिमालय विकसित हो रहा है। जैसे यह ऊंचा उठा है, वैसे ही यह नीचे भी जाएगा। इंडियन प्लेट के नीचे दबने के बाद हिमालय का कद भी कम होता जाएगा। हिमालय के नीचे आने की वजह प्लेट का धंसना और ग्रैविटेशनल फोर्स है। वह कहते हैं कि हवा में उठी चीज को पृथ्वी का केंद्र अपनी ओर खींचता है। इसी वजह से हिमालय भी नीचे आएगा। हालांकि वह कहते हैं कि इसमें अभी लाखों साल लगेंगे।