दुनिया का सबसे महंगा कीड़ा / 20 लाख रु. KG बिकता है ये कीड़ा, चीन की वजह से चौपट हुआ कारोबार

दुनिया का सबसे महंगा फंगस या यूं कहें कि कीड़ा जो बाजार में करीब 20 लाख रुपए प्रति किलो बिकता के दर से बिकता है, उसका कारोबार चीन की वजह से चौपट हो गया है। अब इसे कोई एक लाख रुपए प्रति किलो की दर से भी खरीदने नहीं आ रहा है। जबकि, इस कीड़े की सबसे ज्यादा जरूरत चीन को ही पड़ती है।

AajTak : Jul 14, 2020, 11:51 AM
Delhi: दुनिया का सबसे महंगा फंगस या यूं कहें कि कीड़ा जो बाजार में करीब 20 लाख रुपए प्रति किलो बिकता के दर से बिकता है, उसका कारोबार चीन की वजह से चौपट हो गया है। अब इसे कोई एक लाख रुपए प्रति किलो की दर से भी खरीदने नहीं आ रहा है। जबकि, इस कीड़े की सबसे ज्यादा जरूरत चीन को ही पड़ती है। 

भारत के साथ सीमा विवाद के चलते और कोरोना वायरस की वजह से इस बार इस कीड़े का व्यवसाय चौपट हो गया है। इतना ही नहीं इसे अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने खतरे की सूची यानी रेड लिस्ट में डाल दिया है।

इसे हिमालयन वियाग्रा कहते हैं। इसके अलावा इसे भारतीय हिमालयी क्षेत्र में कीड़ाजड़ी और यारशागुंबा के नाम से भी जाना जाता है। पिछले 15 सालों में हिमालयन वियाग्रा की उपलब्धता में 30 प्रतिशत की कमी आई है।

IUCN का मानना है कि इसकी कमी की वजह है इसका ज्यादा उपयोग। इसे शारीरिक दुर्बलता, यौन इच्छाशक्ति की कमी, कैंसर आदि बीमारियों को ठीक करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। 

अब IUCN की सूची में नाम आने के बाद हिमालयन वियाग्रा के बचाव के लिए राज्य सरकारों की मदद लेकर एक योजना तैयार की जा रही है। हिमालयन वियाग्रा 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में मिलती है। 

यह भारत के अलावा नेपाल, चीन और भूटान के हिमालय और तिब्बत के पठारी इलाकों पाई जाती है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिलों में ये काफी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मिलती है।

मई से जुलाई महीने के बीच जब पहाड़ों पर बर्फ पिघलती है तो सरकार की ओर से अधिकृत 10-12 हजार स्थानीय ग्रामीण इसे निकालने वहां जाते हैं। दो महीने इसे जमा करने के बाद इसे अलग-अलग जगहों पर दवाओं के लिए भेजा जाता है।

हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केंद्र ने जोशीमठ के आसपास किए गए रिसर्च में पाया कि पिछले 15 सालों में इसकी उपज 30 प्रतिशत कम हो गई है। इसकी मात्रा में आई कमी का सबसे बड़ा कारण है इसकी मांग, ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज। इसके बाद ही IUCN ने हिमालयन वियाग्रा को संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल कर ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है।

हिमालयन वियाग्रा जंगली मशरूम है, जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उसके ऊपर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम ओफियोकॉर्डिसेप्स साइनेसिस (Ophiocordyceps Sinesis) है। जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर यह उगता है, उसे हैपिलस फैब्रिकस कहते हैं। 

स्थानीय लोग इसे कीड़ाजड़ी कहते हैं। यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी है। चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा भी कहा जाता है। इस फंगस को निकालने का अधिकार पर्वतीय इलाके के वन पंचायत से जुड़े लोगों को होता है।

हिमालयन वियाग्रा की एशियाई देशों में बहुत ज्यादा मांग है। सबसे ज्यादा मांग चीन, सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग में है। इन देशों के बिजनेसमैन इसे लेने भारत, नेपाल तक चले आते हैं। एजेंट के जरिए खरीदने पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 20 लाख रुपए प्रति किलो तक पहुंच जाती है। एशिया में हर साल इसका 150 करोड़ रुपए का व्यवसाय होता है। 

हिमालयन वियाग्रा का सबसे बड़ा कारोबार चीन में होता है। इस पिथौरागढ़ से काठमांडू भेजा जाता है। फिर वहां से यह भारी मात्रा में चीन ले जाया जाता है। लेकिन इस साल कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते, साथ ही भारत और चीन के बीच उपजे विवाद के कारण हिमालयन वियाग्रा का व्यवसाय चौपट हो गया।


उत्तराखंड में रजिस्टर्ड ठेकेदार हिमालयन वियाग्रा को 6-8 लाख रुपए प्रति किलो तक खरीद लेते हैं। लेकिन इस बार इसे किसी ने एक लाख रुपए प्रति किलो के दर से भी नहीं खरीदा। इससे हिमालयन वियाग्रा के व्यवसाय को भारी नुकसान पहुंचा है।