Vikrant Shekhawat : Dec 16, 2021, 11:35 AM
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) कानून को लेकर बुधवार को अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल एक हथियार की तरह लोगों को जेल भेजने के लिए नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) का अंधाधुंध इस्तेमाल कानून के महत्व पर असर डालेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में झारखंड की एक कंपनी की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायाधीश एएस बोपन्ना व हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि अगर आप अंधाधुंध तरीके से ईडी की कार्यवाही का उपयोग करना शुरू करते हैं तो अधिनियम अपनी प्रासंगिकता को खो देगा। पीठ ने आगे कहा कि प्रवर्तन निदेशालय इस अधिनियम को कमजोर कर रहा है। अगर आप इस कानून का इस्तेमाल 1000 रुपये और 100 रुपये के मामलों (मनी लॉन्ड्रिंग) में करने लगेंगे तो फिर ऐसी स्थिति में क्या होगा। आप सभी लोगों को लाखों के पीछे नहीं पहुंचा सकते हैं।उषा मार्टिन लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के दौरान की टिप्पणीशीर्ष अदालत ने जिस मामले की सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की उसमें स्टील कंपनी उषा मार्टिन लिमिटेड ने झारखंड हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बता दें कि यह मामला लौह अयस्क निर्यात से जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि झारखंड हाईकोर्ट की ओर से कंपनी की याचिका तीन नवंबर 2021 को खारिज कर दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी किया है और अपीलकर्ताओं को दंडात्मक कार्रवाई से राहत प्रदान कर दी है। याचिका में कहा गया है कि ईडी की कार्यवाही इस आधार पर की गई थी कि कंपनी लौह अयस्क के निर्यात में शामिल थी और इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार के साथ लीज समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया गया था।