- भारत,
- 17-Apr-2025 08:52 AM IST
Waqf Amendment Bill: वक्फ संशोधन कानून, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहुप्रतीक्षित सुनवाई आज लगातार दूसरे दिन जारी रही। इस मामले में देशभर से उठी आपत्तियों और दायर की गई 72 याचिकाओं को गंभीरता से लेते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब मांगा है। इसके साथ ही बेंच ने संकेत दिए हैं कि वह कानून के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम आदेश जारी कर सकती है।
अंतरिम आदेश की संभावित रूपरेखा
कोर्ट जिन बिंदुओं पर अंतरिम आदेश दे सकता है, उनमें प्रमुख हैं:
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वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने की प्रक्रिया पर अस्थायी रोक।
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कलेक्टर द्वारा संपत्ति की जांच के दौरान नए प्रावधानों को लागू न करना।
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वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर स्थिति स्पष्ट करना।
कल की सुनवाई: गंभीर सवाल और तीखी बहस
बुधवार को हुई सुनवाई में दो घंटे तक चली तीखी बहस में कई संवेदनशील मुद्दे उठे। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन और सी यू सिंह जैसे वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनीं।
केंद्र सरकार की ओर से जहां तुषार मेहता ने कानून की संवैधानिकता का बचाव किया, वहीं याचिकाकर्ताओं ने इसे मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। अदालत ने इस पर चिंता जताई कि वक्फ संपत्तियों के संदर्भ में उठाए गए नए प्रावधान ऐतिहासिक और धार्मिक संरचनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
वक्फ 'बाय यूज़र' प्रावधान पर बहस
कपिल सिब्बल ने जोर देकर कहा कि ‘वक्फ बाय यूज़र’ यानी परंपरा या अभ्यास से वक्फ मानी जाने वाली संपत्तियों को हटाना ऐतिहासिक अन्याय होगा। उन्होंने पूछा कि 300 साल पुरानी मस्जिदों और दरगाहों की डीड कहां से लाई जाएगी? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से स्पष्ट जवाब मांगा कि क्या कोर्ट द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को भी नए कानून के तहत डि-नोटिफाई किया जाएगा?
केंद्र की ओर से तर्क दिया गया कि रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियों की स्थिति नहीं बदलेगी और कलेक्टर की जांच के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा। लेकिन पीठ ने इसे पर्याप्त नहीं माना और कानून के स्थायी प्रभावों को लेकर चिंता जताई।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य: संविधानिकता पर सवाल
सबसे बड़ा टकराव वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर देखने को मिला। पीठ ने सवाल किया कि अगर वक्फ मुस्लिम धार्मिक संस्था है तो उसमें गैर-मुस्लिम बहुमत कैसे स्वीकार्य हो सकता है? क्या सरकार इस तरह के प्रावधान मंदिर प्रशासन में भी लागू करेगी?
जब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि गैर-मुस्लिमों की संख्या दो से अधिक नहीं होगी और वे पदेन सदस्य होंगे, तब पीठ ने साफ किया कि नए प्रावधानों के अनुसार 22 में से केवल 8 सदस्य मुस्लिम होंगे, जिससे गैर-मुस्लिमों का बहुमत हो सकता है। यह संस्था की धार्मिक प्रकृति से मेल नहीं खाता।
कानून के प्रभाव और कोर्ट की चिंताएं
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आमतौर पर नए कानूनों में तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया जाता, लेकिन इस मामले में अपवाद बनाना पड़ सकता है। कोर्ट ने कहा, “यदि वक्फ बाय यूज़र को समाप्त किया गया और संपत्तियां गैर-अधिसूचित की गईं, तो इससे ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक ढांचे को गहरा नुकसान हो सकता है।”