- भारत,
- 17-Apr-2025 09:08 PM IST
Waqf Amendment Bill: देशभर में वक्फ संशोधन कानून को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म है। केंद्र सरकार इसे मुस्लिम समुदाय के लिए हितकारी बता रही है, जबकि विपक्षी दलों और कई मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि यह कानून मुसलमानों के अधिकारों का हनन करता है। यह मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है, जहां इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। इसी बीच दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उनका आभार जताना, इस कानून के पक्ष में एक नया विमर्श जोड़ता है।
पीएम मोदी को बोहरा समुदाय का समर्थन
गुरुवार को दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की और वक्फ संशोधन कानून को समुदाय की वर्षों पुरानी मांग बताया। उन्होंने पीएम मोदी की "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" नीति पर भरोसा जताया और कानून को मुस्लिम समुदाय के भीतर पारदर्शिता और जवाबदेही लाने वाला कदम बताया। बोहरा समुदाय का यह समर्थन न केवल सरकार की नीतियों को नैतिक बल प्रदान करता है, बल्कि यह दिखाता है कि मुस्लिम समुदाय एकरूप नहीं है, बल्कि उसमें भी विचारों की विविधता मौजूद है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी
दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की वैधता पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को कुछ राहत तो दी है, लेकिन कानून के क्रियान्वयन पर गंभीर शंकाएं भी जताई हैं। कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में नई नियुक्तियों पर रोक लगा दी है। साथ ही, वक्फ संपत्तियों की स्थिति में किसी भी प्रकार के बदलाव पर भी फिलहाल विराम लगा दिया गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि अदालत इस मुद्दे को केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता से भी देख रही है।
नए कानून के विवादित प्रावधान
नए संशोधित कानून में कई ऐसे प्रावधान हैं जो विवादों की जड़ बने हुए हैं। मसलन, वक्फ संपत्ति पर विवाद की स्थिति में जिलाधिकारी की जांच पूरी होने तक उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा – यह व्यवस्था वक्फ की स्वायत्तता पर सवाल खड़े करती है। इसके अलावा, 'वक्फ-बाय-यूजर' और 'वक्फ-बाय-डीड' की संपत्तियों की वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकेगी, जिससे सरकारी नियंत्रण पर भी अंकुश लगता है।
राजनीतिक और सामाजिक टकराव
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों का आरोप है कि यह कानून मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण की साजिश है। वहीं सरकार इसे पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्ष प्रशासन की दिशा में बड़ा कदम बता रही है। यह कानून एक ऐसे बिंदु पर आकर खड़ा हो गया है, जहां सामाजिक सुधार और धार्मिक अधिकारों के बीच संतुलन साधने की चुनौती सबसे बड़ी है।