Dainik Bhaskar : May 24, 2019, 10:29 AM
सागवाड़ा। लोक सभा चुनाव की मतगणना में दोपहर करीब 1.45 बजे जैसे ही भाजपा प्रत्याशी कनकमल कटारा के 2 लाख मतों से आगे होने की जानकारी मिली कार्यकर्ता टीवी पर चुनाव के नतीजे देखना छोड़ कर गोल चौराहे पर आ गए और पटाखे फोड कर एक दूसरे को बधाइयां देने लगे। कई कार्यकर्ता आसपुर रोड़ पर स्थित कटारा के निवास पर पहुंच गए और घर के बाहर जम कर आतिशबाजी की। इधर, कांग्रेस प्रत्याशी ताराचंद भगोरा के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी कार्यालय पर ताला नजर आया। दोपहर 12 बजे भी ताला लटका रहा। कार्यालय के बाहर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा नजर आया। ताराचंद भगोरा के निवास पर सुबह नौ बजे पहुंचने पर परिवारजन टीवी देखते नजर आए।
भाजपा को 5.20 लाख, कांगेस को 2.86 लाख और बीटीपी को 1.06 लाख वोट मिले
बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा चुनाव के आए नतीजे से भाजपा खेमे में उल्लास भर दिया। आदिवासियों के लिए मिली स्थायी सौंगातों से जनजाति वोटरों का झुकाव भाजपा की ओर था ही। वहीं, चुनाव से पहले राष्ट्रवाद की उठी जौत पूरा ही चुनाव मोदी के रंग में आ चुका था। बांसवाड़ा जिले ने भाजपा की झोली वोटों से इतनी भर दी कि भाजपाई भी इस चमत्कार से हैरान हैं। भाजपा को जिले की पांचों विधानसभा क्षेत्र में 520316 वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को मात्र 286202 मतों से ही संतोष करना पड़ा। वहीं, बांसवाड़ा जिले में पहली बार बीटीपी ने प्रभावी दस्तक दी और 106191 वोट हासिल कर दोनों ही दलों को चौंका दिया। जिले के पांचों ही विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की एकतरफा बढ़त रही। मोदी लहर के साथ भाजपा को कांग्रेस की आपसी खींचतान का भी खूब लाभ िमला। पिछले पांच चुनावों से कांग्रेस को लगातार बहुमत दिलाने वाली बागीदौरा विधानसभा में कांग्रेस को करीब 9 हजार वोटों की शिकस्त मिली। यह भी कई सवाल खड़े करता हैं। बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए उत्साह भरा रहा, वहीं कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहा। हालांकि पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही बीटीपी के लिए यह रिजल्ट आत्मविश्वास भरा रहा। क्योंकि यहां भाजपा कांग्रेस के लिए खाेने और पाने के लिए सबकुछ था, वहीं बीटीपी के लिए अपना जनाधार बढ़ाने वाला था। बांसवाड़ा जिले से कांग्रेस को काफी नुकसान हुअा। यहां की पांचों विधानसभा सीटों पर कुल मिलाकर भाजपा ने 2 लाख 34 हजार 114 से बढ़त बनाई, वहीं कांग्रेस को बांसवाड़ा में गुटबाजी और बीटीपी के बढ़ते जनाधार के कारण बड़ा घाटा हुआ।
बांसवाड़ा। बांसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी को ज्यादा वोट मिलने के पीछे अहम कारण भाजपा में एकजुटता और कांग्रेसी में गुटबाजी रही। यहां भाजपा के सभी नेताओं के एकजुट होकर कनकमल कटारा के लिए प्रचार किया। इस सीट पर विधानसभा चुनाव में भाजपा को 70081 वोट मिले थे, जो इस चुनाव में बढ़कर 124213 हो गए। वहीं कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में 88447 वोट मिले थे, वहीं इस चुनाव में कांग्रेस को बांसवाड़ा सीट से 60920 वोट ही मिले, जो 27527 कम हैं। जबकि यह सीट कांग्रेस के राज्यमंत्री अर्जुन बामनिया की है। इस सीट पर भगोरा को लीड की उम्मीद थी, लेकिन गुटबाजी और आपसी खींचतान ने कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी।
बागीदौरा । बागीदौरा पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक महेंद्रजीतसिंह मालवीया का गढ़ रहा है। मालवीया ने 2013-14 में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद इस सीट से जीत हासिल कर राष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान खींचा था। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इस विधानसभा से भी कम वोट मिले। बागीदौरा से कांग्रेस को कम मिलने के पीछे मालवीया को मंत्री नहीं बनाना प्रमुख कारण माना जा रहा है। इस सीट पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 97638 वोट मिले थे, जबकि इस चुनाव में 64374 वोट ही मिले। जो 33264 वोट कम हैं। इस सीट पर भाजपा को विधानसभा चुनाव में 76328 वोट मिले थे, इस चुनाव में 73307 वोट मिले। इस सीट पर बीटीपी ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 28324 वोट हासिल किए, जो बांसवाड़ा में सर्वाधिक हैं।
गढ़ी । गढ़ी विधानसभा में कांग्रेस की साख लगातार गिरती जा रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव, 2014 के लोकसभा, 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले काफी कम वोट मिले। वहीं पूर्व विधायक कांता भील और कुछ स्थानीय नेताओं की गुटबाजी को भी प्रमुख कारण मान रहे हैं। इस चुनाव से पहले गढ़ी कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष को बदले जाने से भी एक धड़ा नाराज चल रहा था। वहीं कांग्रेस के स्टार प्रचारक नवजोतसिंह सिद्धू की सभा में 500 से ज्यादा लोगों के नहीं आने से यह साफ हो गया था कि गढ़ी में कांग्रेस का जनाधार घटता जा रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां 99350 वोट मिले थे, वहीं इस चुनाव में 117811 वोट मिले। भाजपा ने इस सीट पर 18461 वाेटों की बढ़त ली। बीटीपी को भी यहां 29463 वोट मिले।
घाटोल । घाटोल विधानसभा में भाजपा को अच्छी खासी लीड मिली। यहां पर सांसद मानशंकर निनामा और विधायक हरेंद्र निनामा की जोड़ी ने भाजपा को बढ़त दिलाई। इस विधानसभा में भाजपा को 1 लाख 25 हजार 316 वोट मिले, जबकि इसी सीट पर विधानसभा चुनाव में भाजपा को 101121 वोट मिले थे। कांग्रेस को विधानसभा में इस सीट पर 96672 वोट मिले थे, जबकि इस लोकसभा चुनाव में महज 56920 वोट ही मिले। इस सीट पर बीटीपी ने भी विधानसभा चुनाव की बनिस्पत लोकसभा चुनाव में बढ़त ली। विधानसभा में बीटीपी को 4660 वोट मिले थे जो इस चुनाव में बढ़कर 20773 हो गए। वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन इस सीट पर लोकसभा चुनाव में खराब रहा। कांग्रेस को इस सीट पर विधानसभा चुनाव से करीब 40 हजार वोट कम मिले।
कुशलगढ़ । कुशलगढ़ एक मात्र ऐसी विधानसभा है, जहां से कांग्रेस के टिकट न देने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ी रमीला खड़िया ने भाजपा के कद्दावर नेता पूर्व संसदीय सचिव भीमाभाई डामोर को हराया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में बिल्कुल उलटा हुआ। यहां पर लोगों ने मोदी के नाम पर वोट भाजपा को दिया। हालांकि भीमाभाई डामोर ने कनकमल कटारा के समर्थन में खूब रैलियां की। इसके अलावा जेडीयू के सारे वोट भी इस बार भाजपा में तब्दील हुए। भाजपा को विधानसभा चुनाव में यहां 75394 वोट मिले थे जबकि इस चुनाव में 79658 वोट मिले। जो 4264 वोट ज्यादा है। कांग्रेस को विधानसभा में यहां 94344 वोट मिले थे, वहीं इस चुनाव में महज 57463 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। बीटीपी को भी इस सीट पर 18733 वोट मिले।
डूंगरपुर। कांग्रेस तीसरे नंबर पर बीटीपी से भी 24 हजार वोट कम
सागवाड़ा में भाजपा, डूंगरपुर में कांग्रेस, चौरासी में बीटीपी आगे
डूंगरपुर जिले में भी कांग्रेस की हालत कोई खास नहीं रही। यहां भाजपा ने तीनों ही विधानसभा क्षेत्र में 190379 वोट हासिल किए। वहीं, कांग्रेस को मात्र 119672 वोटों से ही राजी होना पड़ा। यहां बीटीपी ने कांग्रेस से ज्यादा 143773 वोट हासिल करके कांग्रेस की जड़ों को हिला दिया। पांच माह पहले डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने 28000 के आस-पास की बढ़त ली थी। यह मात्र 2 हजार में सिमट गई। चौरासी भगोरा का गृहक्षेत्र है। यहां बीटीपी अव्वल रही। पर, विधानसभा चुनाव में इनके जीत के अंतर को 12 हजार से मात्र 2 हजार की बढ़त तक सिमटा दिया। वहीं, विधानसभा में कांग्रेस को मिले मत से भी 2 हजार पिछड़ गए। यह सारे वोट भाजपा की झाेली में गिरे। लोकसभा चुनाव में डूंगरपुर की तीनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस काे भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसके पीछे मुख्य कारण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का महज एक ही विधायक होना बताया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में डूंगरपुर सीट पर कांग्रेस की जीत के अलावा चौरासी और सागवाड़ा में तीसरे नंबर पर रही थी। कांग्रेस प्रत्याशी ताराचंद भगाेरा अपने गृह क्षेत्र में ही पिछड़ गए। कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में भी खराब प्रदर्शन रहा था।
डूंगरपुर। डूंगरपुर विधानसभा से कांग्रेस ने करीब 2 हजार की बढ़त बनाई। पर, कांग्रेस के काम नहीं आई। भाजपा विधानसभा चुनाव में करीब 28 हजार वोटों से पराजित हुई थी। वहीं, इस बार यह अंतर 2 हजार में सिमट गया। भाजपा ने शहरी क्षेत्र में अपनी पकड़ को और मजबूत किया। वहीं, गांवों में भी पूरा फोकस रखा। एेसे में भले ही बढ़त नहीं बना पाई, पर अंतर को काफी हद तक पाट दिया। कांग्रेस यहां खेमों की राजनीति में उलझ गई। अपना वजूद और पॉवर बरकरार रखने के फेर में उठापटक का खूब खेल हुआ। इन्हीं सब के चलते कांग्रेस ने अपने इस मजबूत गढ़ को कमजोर कर दिया। कांग्रेस की पकड़ कमजोर होते ही भाजपा के साथ यहां बीटीपी ने भी सेंधमारी की और कांग्रेस के खाते में जाने वाले वोटों को अपनी ओर खींच ले आए। हालांकि इस सीट पर विधानसभा चुनाव में बीटीपी का उम्मीदवार तीसरे नंबर रहा था। यहां पर भाजपा बागी उम्मीवादर के बावजूद दूसरे नंबर पर रही थी
सागवाड़ा । सागवाड़ा में इस बार भाजपा को बंपर वोट िमले। भाजपा प्रत्याशी का गृह क्षेत्र और इस पर उनकी मजबूत पकड़ का आधार मुख्य रहा। विधानसभा चुनाव में तात्कालीन विधायक के बागी खड़े होने का भी नुकसान भी भाजपा को हुआ था। वहीं, इस बार भाजपा के सामने इस तरह की कोई चुनौती थी। साथ ही कार्यकर्ता भी एकजुट होकर प्रचार में जुट गए। अलग-अलग खेमों में बिखरी कांग्रेस ने यहां भी पूरे मन से काम नहीं िकया। अपने क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले कई कांग्रेसी नेताओं ने अपना क्षेत्र को खुला छोड़ कर एक तरह से भाजपा को घुसपैठ करने की खामोश स्वीकृति दे दी। ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ वाले कई गांवों में बेहतर रिजल्ट दिया। हालांकि यहां बीटीपी विधानसभा जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई। पर, अपने वोटों को पकड़े रहने में कामयाब रही।
चौरासी । चौरासी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने कांग्रेस और बीटीपी के वोटों में जबरदस्त सेंध लगाई। विधानसभा चुनाव बीटीपी ने जीता। यहां भाजपा दूसरे नंबर पर और कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी। इस बार भी यहीं क्रम बना रहा। पर, बीटीपी जहां 12 हजार से जीती थी। वहीं, इस बार इनकी बढ़त 2 हजार में सिमट गई। कांग्रेस को भी 2 हजार वोट कम िमले। यह सारे वोट भाजपा ने बटोर लिए। क्षेत्र की जनता के काम नहीं होने से ग्रामीणों में बीटीपी के प्रति थोड़ा मोह भंग हुआ। वहीं, कांग्रेस की आपसी गुटबाजी का फायदा भी सीधा भाजपा को िमला। भाजपा ने यहां बूथ स्तर पर मजबूत पकड़ बनाई। वहीं कांग्रेस की खेमेबंदी का असर भी भाजपा के लिए फायदे का सौदा रहा।
भाजपा को 5.20 लाख, कांगेस को 2.86 लाख और बीटीपी को 1.06 लाख वोट मिले
बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा चुनाव के आए नतीजे से भाजपा खेमे में उल्लास भर दिया। आदिवासियों के लिए मिली स्थायी सौंगातों से जनजाति वोटरों का झुकाव भाजपा की ओर था ही। वहीं, चुनाव से पहले राष्ट्रवाद की उठी जौत पूरा ही चुनाव मोदी के रंग में आ चुका था। बांसवाड़ा जिले ने भाजपा की झोली वोटों से इतनी भर दी कि भाजपाई भी इस चमत्कार से हैरान हैं। भाजपा को जिले की पांचों विधानसभा क्षेत्र में 520316 वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को मात्र 286202 मतों से ही संतोष करना पड़ा। वहीं, बांसवाड़ा जिले में पहली बार बीटीपी ने प्रभावी दस्तक दी और 106191 वोट हासिल कर दोनों ही दलों को चौंका दिया। जिले के पांचों ही विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की एकतरफा बढ़त रही। मोदी लहर के साथ भाजपा को कांग्रेस की आपसी खींचतान का भी खूब लाभ िमला। पिछले पांच चुनावों से कांग्रेस को लगातार बहुमत दिलाने वाली बागीदौरा विधानसभा में कांग्रेस को करीब 9 हजार वोटों की शिकस्त मिली। यह भी कई सवाल खड़े करता हैं। बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए उत्साह भरा रहा, वहीं कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहा। हालांकि पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही बीटीपी के लिए यह रिजल्ट आत्मविश्वास भरा रहा। क्योंकि यहां भाजपा कांग्रेस के लिए खाेने और पाने के लिए सबकुछ था, वहीं बीटीपी के लिए अपना जनाधार बढ़ाने वाला था। बांसवाड़ा जिले से कांग्रेस को काफी नुकसान हुअा। यहां की पांचों विधानसभा सीटों पर कुल मिलाकर भाजपा ने 2 लाख 34 हजार 114 से बढ़त बनाई, वहीं कांग्रेस को बांसवाड़ा में गुटबाजी और बीटीपी के बढ़ते जनाधार के कारण बड़ा घाटा हुआ।
बांसवाड़ा। बांसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी को ज्यादा वोट मिलने के पीछे अहम कारण भाजपा में एकजुटता और कांग्रेसी में गुटबाजी रही। यहां भाजपा के सभी नेताओं के एकजुट होकर कनकमल कटारा के लिए प्रचार किया। इस सीट पर विधानसभा चुनाव में भाजपा को 70081 वोट मिले थे, जो इस चुनाव में बढ़कर 124213 हो गए। वहीं कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में 88447 वोट मिले थे, वहीं इस चुनाव में कांग्रेस को बांसवाड़ा सीट से 60920 वोट ही मिले, जो 27527 कम हैं। जबकि यह सीट कांग्रेस के राज्यमंत्री अर्जुन बामनिया की है। इस सीट पर भगोरा को लीड की उम्मीद थी, लेकिन गुटबाजी और आपसी खींचतान ने कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी।
बागीदौरा । बागीदौरा पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक महेंद्रजीतसिंह मालवीया का गढ़ रहा है। मालवीया ने 2013-14 में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद इस सीट से जीत हासिल कर राष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान खींचा था। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इस विधानसभा से भी कम वोट मिले। बागीदौरा से कांग्रेस को कम मिलने के पीछे मालवीया को मंत्री नहीं बनाना प्रमुख कारण माना जा रहा है। इस सीट पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 97638 वोट मिले थे, जबकि इस चुनाव में 64374 वोट ही मिले। जो 33264 वोट कम हैं। इस सीट पर भाजपा को विधानसभा चुनाव में 76328 वोट मिले थे, इस चुनाव में 73307 वोट मिले। इस सीट पर बीटीपी ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 28324 वोट हासिल किए, जो बांसवाड़ा में सर्वाधिक हैं।
गढ़ी । गढ़ी विधानसभा में कांग्रेस की साख लगातार गिरती जा रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव, 2014 के लोकसभा, 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले काफी कम वोट मिले। वहीं पूर्व विधायक कांता भील और कुछ स्थानीय नेताओं की गुटबाजी को भी प्रमुख कारण मान रहे हैं। इस चुनाव से पहले गढ़ी कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष को बदले जाने से भी एक धड़ा नाराज चल रहा था। वहीं कांग्रेस के स्टार प्रचारक नवजोतसिंह सिद्धू की सभा में 500 से ज्यादा लोगों के नहीं आने से यह साफ हो गया था कि गढ़ी में कांग्रेस का जनाधार घटता जा रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां 99350 वोट मिले थे, वहीं इस चुनाव में 117811 वोट मिले। भाजपा ने इस सीट पर 18461 वाेटों की बढ़त ली। बीटीपी को भी यहां 29463 वोट मिले।
घाटोल । घाटोल विधानसभा में भाजपा को अच्छी खासी लीड मिली। यहां पर सांसद मानशंकर निनामा और विधायक हरेंद्र निनामा की जोड़ी ने भाजपा को बढ़त दिलाई। इस विधानसभा में भाजपा को 1 लाख 25 हजार 316 वोट मिले, जबकि इसी सीट पर विधानसभा चुनाव में भाजपा को 101121 वोट मिले थे। कांग्रेस को विधानसभा में इस सीट पर 96672 वोट मिले थे, जबकि इस लोकसभा चुनाव में महज 56920 वोट ही मिले। इस सीट पर बीटीपी ने भी विधानसभा चुनाव की बनिस्पत लोकसभा चुनाव में बढ़त ली। विधानसभा में बीटीपी को 4660 वोट मिले थे जो इस चुनाव में बढ़कर 20773 हो गए। वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन इस सीट पर लोकसभा चुनाव में खराब रहा। कांग्रेस को इस सीट पर विधानसभा चुनाव से करीब 40 हजार वोट कम मिले।
कुशलगढ़ । कुशलगढ़ एक मात्र ऐसी विधानसभा है, जहां से कांग्रेस के टिकट न देने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ी रमीला खड़िया ने भाजपा के कद्दावर नेता पूर्व संसदीय सचिव भीमाभाई डामोर को हराया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में बिल्कुल उलटा हुआ। यहां पर लोगों ने मोदी के नाम पर वोट भाजपा को दिया। हालांकि भीमाभाई डामोर ने कनकमल कटारा के समर्थन में खूब रैलियां की। इसके अलावा जेडीयू के सारे वोट भी इस बार भाजपा में तब्दील हुए। भाजपा को विधानसभा चुनाव में यहां 75394 वोट मिले थे जबकि इस चुनाव में 79658 वोट मिले। जो 4264 वोट ज्यादा है। कांग्रेस को विधानसभा में यहां 94344 वोट मिले थे, वहीं इस चुनाव में महज 57463 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। बीटीपी को भी इस सीट पर 18733 वोट मिले।
डूंगरपुर। कांग्रेस तीसरे नंबर पर बीटीपी से भी 24 हजार वोट कम
सागवाड़ा में भाजपा, डूंगरपुर में कांग्रेस, चौरासी में बीटीपी आगे
डूंगरपुर जिले में भी कांग्रेस की हालत कोई खास नहीं रही। यहां भाजपा ने तीनों ही विधानसभा क्षेत्र में 190379 वोट हासिल किए। वहीं, कांग्रेस को मात्र 119672 वोटों से ही राजी होना पड़ा। यहां बीटीपी ने कांग्रेस से ज्यादा 143773 वोट हासिल करके कांग्रेस की जड़ों को हिला दिया। पांच माह पहले डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने 28000 के आस-पास की बढ़त ली थी। यह मात्र 2 हजार में सिमट गई। चौरासी भगोरा का गृहक्षेत्र है। यहां बीटीपी अव्वल रही। पर, विधानसभा चुनाव में इनके जीत के अंतर को 12 हजार से मात्र 2 हजार की बढ़त तक सिमटा दिया। वहीं, विधानसभा में कांग्रेस को मिले मत से भी 2 हजार पिछड़ गए। यह सारे वोट भाजपा की झाेली में गिरे। लोकसभा चुनाव में डूंगरपुर की तीनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस काे भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसके पीछे मुख्य कारण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का महज एक ही विधायक होना बताया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में डूंगरपुर सीट पर कांग्रेस की जीत के अलावा चौरासी और सागवाड़ा में तीसरे नंबर पर रही थी। कांग्रेस प्रत्याशी ताराचंद भगाेरा अपने गृह क्षेत्र में ही पिछड़ गए। कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में भी खराब प्रदर्शन रहा था।
डूंगरपुर। डूंगरपुर विधानसभा से कांग्रेस ने करीब 2 हजार की बढ़त बनाई। पर, कांग्रेस के काम नहीं आई। भाजपा विधानसभा चुनाव में करीब 28 हजार वोटों से पराजित हुई थी। वहीं, इस बार यह अंतर 2 हजार में सिमट गया। भाजपा ने शहरी क्षेत्र में अपनी पकड़ को और मजबूत किया। वहीं, गांवों में भी पूरा फोकस रखा। एेसे में भले ही बढ़त नहीं बना पाई, पर अंतर को काफी हद तक पाट दिया। कांग्रेस यहां खेमों की राजनीति में उलझ गई। अपना वजूद और पॉवर बरकरार रखने के फेर में उठापटक का खूब खेल हुआ। इन्हीं सब के चलते कांग्रेस ने अपने इस मजबूत गढ़ को कमजोर कर दिया। कांग्रेस की पकड़ कमजोर होते ही भाजपा के साथ यहां बीटीपी ने भी सेंधमारी की और कांग्रेस के खाते में जाने वाले वोटों को अपनी ओर खींच ले आए। हालांकि इस सीट पर विधानसभा चुनाव में बीटीपी का उम्मीदवार तीसरे नंबर रहा था। यहां पर भाजपा बागी उम्मीवादर के बावजूद दूसरे नंबर पर रही थी
सागवाड़ा । सागवाड़ा में इस बार भाजपा को बंपर वोट िमले। भाजपा प्रत्याशी का गृह क्षेत्र और इस पर उनकी मजबूत पकड़ का आधार मुख्य रहा। विधानसभा चुनाव में तात्कालीन विधायक के बागी खड़े होने का भी नुकसान भी भाजपा को हुआ था। वहीं, इस बार भाजपा के सामने इस तरह की कोई चुनौती थी। साथ ही कार्यकर्ता भी एकजुट होकर प्रचार में जुट गए। अलग-अलग खेमों में बिखरी कांग्रेस ने यहां भी पूरे मन से काम नहीं िकया। अपने क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले कई कांग्रेसी नेताओं ने अपना क्षेत्र को खुला छोड़ कर एक तरह से भाजपा को घुसपैठ करने की खामोश स्वीकृति दे दी। ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस के गढ़ वाले कई गांवों में बेहतर रिजल्ट दिया। हालांकि यहां बीटीपी विधानसभा जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई। पर, अपने वोटों को पकड़े रहने में कामयाब रही।
चौरासी । चौरासी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने कांग्रेस और बीटीपी के वोटों में जबरदस्त सेंध लगाई। विधानसभा चुनाव बीटीपी ने जीता। यहां भाजपा दूसरे नंबर पर और कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी। इस बार भी यहीं क्रम बना रहा। पर, बीटीपी जहां 12 हजार से जीती थी। वहीं, इस बार इनकी बढ़त 2 हजार में सिमट गई। कांग्रेस को भी 2 हजार वोट कम िमले। यह सारे वोट भाजपा ने बटोर लिए। क्षेत्र की जनता के काम नहीं होने से ग्रामीणों में बीटीपी के प्रति थोड़ा मोह भंग हुआ। वहीं, कांग्रेस की आपसी गुटबाजी का फायदा भी सीधा भाजपा को िमला। भाजपा ने यहां बूथ स्तर पर मजबूत पकड़ बनाई। वहीं कांग्रेस की खेमेबंदी का असर भी भाजपा के लिए फायदे का सौदा रहा।