Kota Student Suicidet: राजस्थान के कोटा, जिसे कोचिंग हब के रूप में जाना जाता है, इन दिनों एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। यहाँ आए दिन कोचिंग छात्रों द्वारा आत्महत्या की खबरें सामने आ रही हैं, जिससे पूरे देश में चिंता का माहौल बन गया है। हाल ही में, मध्य प्रदेश के गुना निवासी 20 वर्षीय अभिषेक ने कोटा के विज्ञान नगर इलाके में अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
घटनाओं की सिलसिलेवार जानकारी
पुलिस के अनुसार, अभिषेक मई 2023 से कोटा में जेईई एडवांस की तैयारी कर रहा था। जब अभिषेक के परिजनों ने उसे फोन किया और उसने जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने उसके पीजी संचालक को सूचित किया। जब संचालक ने कमरे का निरीक्षण किया, तो उन्होंने अभिषेक को फांसी के फंदे पर लटका पाया।यह मामला अकेला नहीं है। इससे पहले हरियाणा के महेंद्रगढ़ निवासी 19 वर्षीय नीरज ने भी अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। नीरज पिछले दो सालों से कोटा में रहकर जेईई की तैयारी कर रहा था।
कोटा में गिरती छात्रों की संख्या और राजस्व
कोटा में आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों ने इस शहर की छवि और अर्थव्यवस्था दोनों को प्रभावित किया है। एक समय था जब यहाँ लगभग 2.5 लाख छात्र कोचिंग के लिए आते थे, लेकिन यह संख्या अब घटकर 85,000 से एक लाख तक रह गई है। इसका सीधा असर कोटा के वार्षिक राजस्व पर पड़ा है। 2023 में कोटा का राजस्व लगभग 6,500-7,000 करोड़ रुपये था, जो अब 3,500 करोड़ रुपये तक सीमित हो गया है।
आत्महत्या के कारण और समाधान की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि इन घटनाओं के पीछे मानसिक दबाव, प्रतिस्पर्धा और असफलता का डर मुख्य कारण हैं। छात्रों पर लगातार अच्छे प्रदर्शन का दबाव, घर से दूर रहने की चुनौती और उचित मानसिक सहारा न मिल पाना इस संकट को बढ़ा रहा है।राज्य और केंद्र सरकार को इन घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कोचिंग संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाताओं की नियुक्ति, छात्रों के लिए मनोरंजन और विश्राम के लिए समय सुनिश्चित करना, और माता-पिता द्वारा बच्चों पर प्रदर्शन का दबाव कम करना कुछ प्रभावी समाधान हो सकते हैं।
निष्कर्ष
कोटा में छात्रों की आत्महत्या की घटनाएँ केवल एक शहर की नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की विफलता को दर्शाती हैं। यह समय है कि हम शिक्षा प्रणाली और सामाजिक मानसिकता को बदलकर छात्रों को एक स्वस्थ और प्रेरणादायक माहौल प्रदान करें। छात्रों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर ही हम इस समस्या का समाधान ढूंढ सकते हैं।