नासिक / कोरोना पॉजिटिव और नेगेटिव का बड़ा मामला...जानिए

कोरोना पॉजिटिव और निगेटिव के चक्कर में एक महिला को दो बार दफनाया गया। घटना नासिक के मनमाड़ की है। महिला को उसके पति के ठीक बगल में दफनाने के लिए बेटे को पौने 3 महीने तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े और अधिकारियों से गुहार लगानी पड़ी। महिला की आखिरी इच्छा थी कि उसे पति के बगल में ही दफनाया जाए, लेकिन कोरोना की आशंका के चलते एक बार में यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई। बाद में शव को निकालकर फिर से दफनाया गया।

Vikrant Shekhawat : Dec 19, 2020, 06:58 PM

नासिक:कोरोना पॉजिटिव और निगेटिव के चक्कर में एक महिला को दो बार दफनाया गया। घटना नासिक के मनमाड़ की है। महिला को उसके पति के ठीक बगल में दफनाने के लिए बेटे को पौने 3 महीने तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े और अधिकारियों से गुहार लगानी पड़ी। महिला की आखिरी इच्छा थी कि उसे पति के बगल में ही दफनाया जाए, लेकिन कोरोना की आशंका के चलते एक बार में यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई। बाद में शव को निकालकर फिर से दफनाया गया।


दिल की बीमारी और निमोनिया से हुई थी महिला की मौत:

मनमाड़ के डमरे मला इलाके की रहने वाली मंजूलता वसंत क्षीरसागर (76) का 21 सितंबर को निधन हो गया था। डॉक्टर ने मौत की वजह दिल की बीमारी और निमोनिया को बताया। प्रशासन ने कोरोना की आशंका के चलते शव का RT-PCR टेस्ट करवाया। संक्रमण का खतरा देखते हुए प्रशासन ने रिपोर्ट आने से पहले ही मंजुलता के शव को क्रिश्चियन रीति-रिवाज से मालेगांव के एक कब्रिस्तान में दफना दिया।


मालेगांव नगर निगम से NOC लेने के लिए करनी पड़ी जद्दोजहद:

22 सितंबर को जब मंजूलता की रिपोर्ट निगेटिव आई तो उनके बेटे सुहास ने प्रशासन से गुहार लगाई कि मां के शव को कब्र से निकालने की इजाजत दी जाए। इसके लिए सुहास को काफी संघर्ष करना पड़ा। पहले मालेगांव नगर निगम कमिश्नर को पत्र लिखा, पर कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद सुहास लगातार नगर निगम गए। 64 दिनों बाद यानी 23 नवंबर को उन्हें नगर निगम से NOC मिली।


शव को मालेगांव से मनमाड़ तक लाने के लिए फिर मशक्कत:

हालांकि, NOC पहला फेज था और मालेगांव तहसीलदार से भी मंजूरी चाहिए थी। 25 नवंबर को सुहास ने तहसीलदार को चिट्ठी लिखी। इसके 19 दिन बाद मालेगांव के तहसीलदार चंद्रजीत राजपूत ने मालेगांव में दफनाए शव को मनमाड़ ले जाने की इजाजत दे दी।


अब भी सुहास की राह आसान नहीं थी। उन्हें 100 रुपए के बॉन्ड पर नियम और शर्तें पालन करने का एफिडेविट, नगर निगम की NOC, मालेगांव कैंप के चर्च से शव ले जाने के लिए NOC, मनमाड़ क्रिश्चियन मिशनरी की NOC और मेडिकल सर्टिफिकेट जैसे कई दस्तावेज जमा करने पड़े।


मालेगांव के तहसीलदार के आदेश के मुताबिक, शव को कई अफसरों और परिजन की मौजूदगी में 17 दिसंबर की सुबह 8 बजे दफनाया गया। मंजूलता को उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक, पति के ठीक बगल में पूरे रिवाज से दफनाया गया।


'मां की अंतिम इच्छा पूरा कर सुकून मिला':

भास्कर से बात करते हुए सुहास ने बताया कि कोरोना काल बहुत ही कठिन था। मां की अंतिम इच्छा के बावजूद भी सरकार के निर्देशों के आगे हम बेबस थे। कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद से हमारा संघर्ष शुरू हुआ। अधिकारियों, मनमाड़ और मालेगांव के धर्मगुरुओं ने मदद की। मां के जाने का दुख है, लेकिन उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने का सुकून है।


कई पत्र लिखने के बाद मिली शव ले जाने की मंजूरी:

मालेगांव के तहसीलदार चंद्रजीत राजपूत ने बताया कि सुहास की अर्जी मिलने के बाद सीनियर अफसरों से चर्चा की गई। शव ले जाने की मांग के पीछे मां और बेटे का इमोशनल रिश्ता था। इसलिए हमने इस मामले में गंभीरता से काम किया। कई विभागों को पत्र लिख परमिशन ली गई।