India-China / भारत की साइबर सिक्योरिटी के लिए चीन बन चुका है सबसे बड़ा खतरा, जानिए सबकुछ

लद्दाख में संघर्ष और एलएसी पर लगातार घुसपैठ करने की कोशिश में जुटा चीन भारत में हजारों लोगों की जासूसी करा रहा है। इन सबके बीच एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीनी कंपनी अलीबाबा भारतीय यूजर्स का डेटा चुरा रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में इस साजिश का खुलासा करते हुए बताया है कि चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी टेक्नॉलजी कंपनी जेनहुआ डेटा इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के जरिए यह जासूसी कराई जा रही थी।

नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में संघर्ष और एलएसी पर लगातार घुसपैठ करने की कोशिश में जुटा चीन भारत में हजारों लोगों की जासूसी करा रहा है। इन सबके बीच एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीनी कंपनी अलीबाबा (Chinese technology group Alibaba) भारतीय यूजर्स (Indian Users) का डेटा चुरा रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में इस साजिश का खुलासा करते हुए बताया है कि चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी टेक्नॉलजी कंपनी जेनहुआ डेटा इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के जरिए यह जासूसी कराई जा रही थी। इस रिपोर्ट के खुलासे के बाद कहा जा रहा है कि चीन अब भारत की साइबर सिक्योरिटी के लिए खतरा बन चुका है।

हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब चीनी सरकार पर किसी देश के लोगों का डेटा चुराने का आरोप लगा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन की सत्तारूढ़ पार्टी, सेना और निजी कंपनियों अमूमन ही ऐसे ऑपरेशन चलाती हैं, जिसमें देशों का टारगेट किया जाता है और डेटा चोरी किया जाता है। अब सवाल ये है कि आखिरकार क्या वजह है जो चीन दुनिया के देशों का डेटा चोरी करता है?

1991 के बाद चीन ने लिया था ये अहम फैसला

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने साइबर क्षेत्र में खुद को मजबूत करने का फैसला 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद लिया था। भारतीय सेना के एक पूर्व अधिकारी और सूचना युद्ध विशेषज्ञ और एंगेजिंग चाइना: इंडियन इंट्रेस्ट्स इन द इंफॉर्मेशन एग के लेखकर पवित्राण राजन का कहना है, चीन के लोगों समझते थे कि अमेरिका की टेक्नोलॉजी उनसे बहुत आगे है। उन्होंने विश्लेषण किया कि अगर वे आईसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) में आते हैं, तो वे कुछ पीढ़ियों की छलांग लगा सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं। इसके बाद चीन ने खुद को इलेक्ट्रॉनिक्स के कारखानों में तब्दील कर दिया।

इसके बाद 2003 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग की केंद्रीय समिति ने आधिकारिक तौर पर तीन वारफेयर की अवधारणा को मंजूरी दे दी, जिसमें मनोवैज्ञानिक, मीडिया और कानूनी युद्ध शामिल थे। इसके बाद हाई लेवल पर फैसला लिया गया कि पीएलए को 2020 तक सूचना के क्षेत्र में युद्ध लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसके बाद जल्द ही पीएलए ने साइबर ऑपरेशंस के लिए समर्पित खुफिया इकाइयां स्थापित करना शुरू किया।

चीन देश की आईसीटी पर नजर बनाए हुए है इसकी भनक अमेरिका को पहले से ही थी। फरवरी 2013 में अलेक्जेंड्रिया, वर्जीनिया मुख्यालय वाली अमेरिकी साइबर सुरक्षा फर्म मैंडियंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसने चीन के साइबर जासूसी कार्यों पर पूर्ण विराम लगाने का काम किया। मैंडियन रिपोर्ट ने पीएलए इकाई 61398 द्वारा साइबर हमलों के साक्ष्य का दस्तावेजीकरण किया, जिसका सटीक स्थान और पुडोंग, शंघाई में है।

इस बारे में सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा (सेवानिवृत्त) का कहना है कि 2014 में अमेरिकी सरकार ने पाया कि एक चीनी इकाई ने कार्मिक प्रबंधन कार्यालय में संघीय सरकार की एक इकाई को हैक कर लिया था और 21 मिलियन लोगों का रिकॉर्ड चोरी किया। खास बात ये थी कि इन लोगों में 4 से 5 मिलियन वो लोग थे जिन्होंने अमेरिकी सेना और सीआईए एजेंट रह चुके थे।


क्यों दूसरे देशों का डेटा चुराता है चीन?

साइबर युद्ध में बम, बंदूक का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि इसमें दुश्मन को साइबर और मनोवैज्ञानिक दांवपेंच से हराया जाता है। इसके तहत जनता की सोच को बदला जाता है। अफवाहें और फेक न्यूज के जरिए अपने मंसूबों को पूरा किया जाता है। डेटा चोरी के जरिए इसे और अधिक आसानी से अंजाम दिया जा सकता है।


छोटी-छोटी बातें हो सकती हैं बड़ी

विशेषज्ञों का कहना है कि यह डेटा वॉर का जमाना है। हम जब डेटा को टुकड़ों में देखते हैं तो नहीं समझ पाते हैं कि आखिर इससे कोई क्या हासिल कर सकता है? लेकिन इन्हीं छोटी-छोटी जानकारियों को एक साथ जुटाकर और उनका किसी खास मकसद से हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। देश के आतंरिक मुद्दों, राष्ट्रीय नीति, सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सबसे में सेंधमारी के प्रयास किए जा सकते हैं।