News18 : Apr 29, 2020, 10:41 PM
Coronavirus: कोरोना के भयावह संकट के सामने खड़ी दुनिया के लिए इस समय Remdesivir एक आशा भरा शब्द बन कर आया है। दरअसल अमेरिका की फार्मा कंपनी Gilead Sciences Inc की दवा Remdesivir को कोरोना संक्रमण के इलाज के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। बुधवार को Gilead की तरफ से कहा गया है कि Remdesivir के तीसरे चरण के ट्रायल में भी पॉजिटिव नतीजे सामने आए हैं। गौरतलब है कि लोग बेसब्री के साथ इस दवा के तीसरे चरण के नतीजों का इंतजार कर रहे थे।कैसे हुए हैं टेस्टRemdesivir का विट्रो (टेस्ट ट्यूब) और vivo (शरीर पर परीक्षण) टेस्ट जानवरों पर भी किया जा चुका है। जानवरों में MERS and SARS पर इस दवा का परीक्षण सफल रहा है। कोरोना वायरस भी इन्हीं बीमारियों के परिवार का हिस्सा है। कंपनी का कहना है कि जानवरों पर परीक्षण के बाद ही हमें अंदाजा हुआ कि इस दवा का असर कोरोना के इलाज में किया जा सकता है।कंपनी ने बताया है कि 22 मार्च को Remdesivir के compassionate-use के लिए भेजने की मांग आई हैं। compassionate-use उस इलाज को कहा जाता है जिसे डॉक्टर इस्तेमाल तो करते हैं लेकिन इसका पूरी तरह से बीमारी को लेकर टेस्ट नहीं हुआ होता है। इलाज के दौरान जब कोई थेरेपी का ऑप्शन नहीं होता है तो डॉक्टर इसका इस्तेमाल करते हैं।compassionate-use programme के तहत Remdesivir का इस्तेमाल कोरोना के इलाज के लिए किया गया है। ये उन मरीजों पर किया गया जिनका इलाज अधिकृत दवाओं से नहीं हो पा रहा था। कंपनी का कहना है कि इसके बाद compassionate use के तहत इस दवा की मांग की बाढ़ आ गई।सिंगल आर्म ट्रायल के नतीजेदवाओं के पहले और दूसरे फेज के ट्रायल में दो ग्रुप का इस्तेमाल होता है वहीं remidesivir के सिंगल आर्म ट्रायल फेज में दो ग्रुप बनाने की जगह दवा का ट्रायल लोगों पर रैंडम तरह से किया जाता है। यानी जहां पहले दोनों फेजेस में एक कंट्रोल और एक थैरेपी एक्पेरिमेंटल ग्रुप था। दोनों ही ग्रुप एक ही बीमारी से पीड़ित होते हैं। पहले ग्रुप को दवा दी जाती है जबकि दूसरे ग्रुप को दवा नहीं दी जाती। बाकी सारा माहौल दोनों ग्रुप का एक जैसा होता है। तय अवधि के बाद दोनों ग्रुप्स की सेहत में पड़े फर्क का मूल्यांकन किया जाता है। अगर थैरेपी ग्रुप में फर्क पड़ा है तो यह मान लिया जाता है कि दवा प्रभावी रही। और जब यह दवा प्रभावी हो जाती है तो फिर उसे तीसरे फेज के ट्रायल में रखा जाता है जहां कोई कंट्रोल ग्रुप नहीं होता। बड़े स्तर में इसका प्रयोग रैंडम तरह से होता है। इसे ही सिंगल आर्म ट्रायल कहते हैं। remidesivir के नतीजे दो फेजेस के बाद हुए सिंगल आर्म ट्रायल में सकारात्मक आए हैं।orphan drug का दर्जा23 मार्च को Remdesivir को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने orphan drug का दर्जा दिया था। ये दर्जा उन दवाओं को दिया जाता है जिनमें किसी रोग को ठीक कर सकने की संभावित क्षमता दिखाई देती है। इन्हें orphan या अनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका व्यावसायिक उत्पादन रुका होता है और इसके लिए सरकारी सपोर्ट की जरूरत होती है। गौरतलब है कि Remdesivir को इबोला महामारी के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। इस दर्जे की वजह से कंपनी Gilead Sciences को कई रियायतें मिलेंगी। जैसे सात साल तक बाजार में दवा बनाने का एकाधिकार। साथ ही टैक्स में भी छूट मिलती है जिसका उपयोग दवा को विकसित करने में किया जा सके।तीसरे चरण का ट्रायलकंपनी ने एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए बताया है, 'Gilead कोरोना वायरस की दवा बनाने के लिए remdesivir पर चल रहे प्रयोगों में वैश्विक स्वास्थ्य संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही है।' गौरतलब है कि Gilead ने इस दवा का तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है। remdesivir का प्रभाव जानने के लिए सैकड़ों बीमारों पर दवा का परीक्षण किया जा चुका है। एक आंकड़े के मुताबिक सामान्य तौर जो दवाएं तीसरे चरण के परीक्षण में जाती हैं, वो सक्सेसफुल रहती ही हैं। तीसरे चरण के नतीजों के अप्रैल के आखिरी में आने की बातें कही गई थीं। अब कंपनी का कहना है कि उसे पॉजिटिव डेटा मिले हैं। जल्द ही कंपनी इस पर और ज्यादा जानकारी दे सकने की स्थिति में होगी।भारत के लिए कीमत रखेगी मायनेव्यावसायिक तौर पर बाजार में आने के बाद इस दवा की कीमत बहुत मायने रखेगी। विशेष तौर पर भारत जैसे देश के लिए। संभव है कि Gilead इसके लिए भारत में कोई लोकल पार्टनर की तलाश कर ले। जिससे भारत में ये दवा उचित दामों में मुहैया हो सके।Remdesivir दवा की खोज 2010 के दशक के मध्य में हुई थी। शुरुआत में जानवरों पर किए गए टेस्ट से सिद्ध हुआ था कि ये दवा इबोला के इलाज में सटीक काम करेगी। लेकिन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में हुए तीसरे चरण के बड़े परीक्षण के दौरान पता चला कि ये दवा इबोला को पूरी तरह ठीक कर पाने में उतनी कारगर नहीं है। लेकिन अब कोरोना के सार्स और मर्स से काफी मिलने के कारण माना जा रहा है कि ये दवा कोरोना के इलाज में कारगर साबित होगी। शोधकर्ताओं का मानना है कि तीसरे चरण के ट्रायल के बाद अमेरिका का फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग दवा को अप्रूव करने में तेजी दिखाएगा। जैसा कि इसने 1987 में HIV/AIDS को लेकर बनाई गई दवा azidothymidine- AZT के मामले में किया था। लेकिन अब सब कुछ तीसरे चरण के परिणामों पर निर्भर करता है।