AajTak : Apr 13, 2020, 01:23 PM
अमेरिका: पिछले कुछ दिनों से भारत में बनने वाली मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की खूब चर्चा हो रही है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के अलावा, 30 से ज्यादा देशों ने भारत से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति के लिए कहा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन उत्पादक देश है। यह एंटी मलेरिया दवाई है जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कोरोना वायरस की लड़ाई में कई बार गेमचेंजर बता चुके हैं। इसकी भारी मांग को देखते हुए भारत ने इस दवाई के निर्यात पर आंशिक रूप से पाबंदी हटाने की घोषणा कर दी थी।
दुनिया भर में मेड इन इंडिया हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की बढ़ती मांग के बीच वैज्ञानिक और तमाम देशों के हेल्थ एक्सपर्ट्स अब कोरोना वायरस से लड़ाई में इस दवा की भूमिका को खारिज करने लगे हैं। कई वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के खिलाफ आगाह भी किया है।सीमित प्रभाव हाइड्रोक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल सामान्य तौर पर आर्थराइटिस, लूपस और मलेरिया के उपचार में किया जाता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने लोगों को बिना चिकित्सीय परामर्श के हाइड्रोक्लोरोक्वीन ना लेने की सलाह दी है क्योंकि क्लोरोक्वीन की सही डोज ना लेने पर खतरनाक साइड इफेक्ट हो सकते हैं। आईसीएआर के वैज्ञानिक रमन गांगेडकर का कहना है कि लैब से पुष्ट कोरोना वायरस संक्रमित के संपर्क में आने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और घर के सदस्यों के लिए इस ड्रग का इस्तेमाल किया जा सकता है। आईसीएमआर ने अपनी एडवाइजरी में कहा है कि हाइड्रोक्लोरोक्वीन लैब स्टडीज में कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ शुरुआती बचाव में मददगार साबित हुई है। हालांकि, क्लीनिकल ट्रायल में ड्रग की सीमित सफलता ही दिखी है।पिछले महीने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबायल एजेंट (आईजेएए) में प्रकाशित फ्रेंच वैज्ञानिकों की एक स्टडी में बताया गया था कि 20 मरीजों के हाइड्रोक्लोरोक्वीन से इलाज के बाद उनमें वायरल लोड में कमी आई। इसके अलावा, बाकी मरीजों की तुलना में इस दवा का इस्तेमाल करने वालों के शरीर में वायरस ज्यादा लंबे समय तक मौजूद नहीं रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी स्टडी का हवाला देते हुए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लगातार गेमचेंजर बताया लेकिन अब स्टडी के प्रकाशकों ने कहा है कि यह तमाम मानकों के अनुरूप नहीं है।इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ एंटीमाइक्रोबायल एजेंट ने इस स्टडी को लेकर तमाम सवाल खड़े किए हैं। अधिकारियों का कहना है कि शोधकर्ताओं ने अपने डेटा में उन मरीजों को शामिल नहीं किया था जिन पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ट्रीटमेंट का अच्छा असर नहीं देखने को मिला।शोधकर्ताओं ने 26 मरीजों के साथ प्रयोग की शुरुआत की थी लेकिन 6 मरीजों को ट्रायल के बीच में ही छोड़ना पड़ा। स्टडी के मुताबिक, ट्रायल में शामिल तीन मरीजों को आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा, चौथे मरीज की मौत हो गई जबकि एक मरीज को उल्टी की शिकायत होने पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन देना बंद कर दिया गया।स्वीडन के अस्पतालों ने भी कोरोना वायरस के मरीजों में मलेरिया के ड्रग का इस्तेमाल बंद कर दिया है। इससे मरीजों में भयानक सिर दर्द और विजन लॉस जैसी समस्याएं हो रही थीं। इस दवा को देने के कुछ दिन बाद ही कई मरीजों में माइग्रेन, उल्टी, आंखों की रोशनी कम होने जैसे साइड इफेक्ट नजर आने लगे। 100 में से एक में क्लोरोक्वीन की वजह से हार्ट बीट में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। हार्टबीट तेजी से बढ़ने या घटने की वजह से हार्ट अटैक तक की नौबत भी आ सकती है।मेडिकल वेबसाइट ड्रग डेटा फीयर्स फार्मा के मुताबिक, यूरोप में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल तक सीमित रखा जा रहा है। चीन और फ्रांस में ट्रायल में शुरुआती सफलता के बावजूद, यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) ने कहा है कि कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के असरदार होने की बात अभी तक साबित नहीं हुई है।वहीं, ब्रिटेन ने क्लीनिकल ट्रायल खत्म ना होने तक डॉक्टरों को इस दवा का इस्तेमाल करने से रोक दिया है। यूके के जाने-माने डॉक्टर प्रोफेसर एंथोनी गार्डन ने डेली मेल से बताया कि अभी तक इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना वायरस के इलाज में असरदार है।यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को लेकर एक गाइडलाइन छापी थी लेकिन इसी सप्ताह इसे हटा दिया गया है। सीडीसी ने अपडेट में लिखा है कि इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल अभी जारी है। विश्लेषकों का कहना है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर सीडीसी की गाइडलाइन होने से डॉक्टरों को कोरोना वायरस के इलाज में इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहन मिल रहा था। जबकि अभी तक एक भी क्लीनिकल ट्रायल में इस दवा के असरदार और सुरक्षित होने की पुष्टि नहीं हो सकी है।
दुनिया भर में मेड इन इंडिया हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की बढ़ती मांग के बीच वैज्ञानिक और तमाम देशों के हेल्थ एक्सपर्ट्स अब कोरोना वायरस से लड़ाई में इस दवा की भूमिका को खारिज करने लगे हैं। कई वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के खिलाफ आगाह भी किया है।सीमित प्रभाव हाइड्रोक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल सामान्य तौर पर आर्थराइटिस, लूपस और मलेरिया के उपचार में किया जाता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने लोगों को बिना चिकित्सीय परामर्श के हाइड्रोक्लोरोक्वीन ना लेने की सलाह दी है क्योंकि क्लोरोक्वीन की सही डोज ना लेने पर खतरनाक साइड इफेक्ट हो सकते हैं। आईसीएआर के वैज्ञानिक रमन गांगेडकर का कहना है कि लैब से पुष्ट कोरोना वायरस संक्रमित के संपर्क में आने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और घर के सदस्यों के लिए इस ड्रग का इस्तेमाल किया जा सकता है। आईसीएमआर ने अपनी एडवाइजरी में कहा है कि हाइड्रोक्लोरोक्वीन लैब स्टडीज में कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ शुरुआती बचाव में मददगार साबित हुई है। हालांकि, क्लीनिकल ट्रायल में ड्रग की सीमित सफलता ही दिखी है।पिछले महीने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबायल एजेंट (आईजेएए) में प्रकाशित फ्रेंच वैज्ञानिकों की एक स्टडी में बताया गया था कि 20 मरीजों के हाइड्रोक्लोरोक्वीन से इलाज के बाद उनमें वायरल लोड में कमी आई। इसके अलावा, बाकी मरीजों की तुलना में इस दवा का इस्तेमाल करने वालों के शरीर में वायरस ज्यादा लंबे समय तक मौजूद नहीं रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी स्टडी का हवाला देते हुए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लगातार गेमचेंजर बताया लेकिन अब स्टडी के प्रकाशकों ने कहा है कि यह तमाम मानकों के अनुरूप नहीं है।इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ एंटीमाइक्रोबायल एजेंट ने इस स्टडी को लेकर तमाम सवाल खड़े किए हैं। अधिकारियों का कहना है कि शोधकर्ताओं ने अपने डेटा में उन मरीजों को शामिल नहीं किया था जिन पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन ट्रीटमेंट का अच्छा असर नहीं देखने को मिला।शोधकर्ताओं ने 26 मरीजों के साथ प्रयोग की शुरुआत की थी लेकिन 6 मरीजों को ट्रायल के बीच में ही छोड़ना पड़ा। स्टडी के मुताबिक, ट्रायल में शामिल तीन मरीजों को आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा, चौथे मरीज की मौत हो गई जबकि एक मरीज को उल्टी की शिकायत होने पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन देना बंद कर दिया गया।स्वीडन के अस्पतालों ने भी कोरोना वायरस के मरीजों में मलेरिया के ड्रग का इस्तेमाल बंद कर दिया है। इससे मरीजों में भयानक सिर दर्द और विजन लॉस जैसी समस्याएं हो रही थीं। इस दवा को देने के कुछ दिन बाद ही कई मरीजों में माइग्रेन, उल्टी, आंखों की रोशनी कम होने जैसे साइड इफेक्ट नजर आने लगे। 100 में से एक में क्लोरोक्वीन की वजह से हार्ट बीट में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। हार्टबीट तेजी से बढ़ने या घटने की वजह से हार्ट अटैक तक की नौबत भी आ सकती है।मेडिकल वेबसाइट ड्रग डेटा फीयर्स फार्मा के मुताबिक, यूरोप में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल तक सीमित रखा जा रहा है। चीन और फ्रांस में ट्रायल में शुरुआती सफलता के बावजूद, यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) ने कहा है कि कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के असरदार होने की बात अभी तक साबित नहीं हुई है।वहीं, ब्रिटेन ने क्लीनिकल ट्रायल खत्म ना होने तक डॉक्टरों को इस दवा का इस्तेमाल करने से रोक दिया है। यूके के जाने-माने डॉक्टर प्रोफेसर एंथोनी गार्डन ने डेली मेल से बताया कि अभी तक इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना वायरस के इलाज में असरदार है।यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को लेकर एक गाइडलाइन छापी थी लेकिन इसी सप्ताह इसे हटा दिया गया है। सीडीसी ने अपडेट में लिखा है कि इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल अभी जारी है। विश्लेषकों का कहना है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर सीडीसी की गाइडलाइन होने से डॉक्टरों को कोरोना वायरस के इलाज में इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहन मिल रहा था। जबकि अभी तक एक भी क्लीनिकल ट्रायल में इस दवा के असरदार और सुरक्षित होने की पुष्टि नहीं हो सकी है।