कोरोना वायरस / इंसान के शरीर में कैसे काम करती है वैक्सीन?

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम प्राकृतिक रूप से कीटाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करता है। जब रोगाणु शरीर पर हमला करता है तो शरीर का इम्यून सिस्टम इससे लड़ने के लिए विशेष कोशिकाओं को भेजता है। कभी-कभी इम्यून सिस्टम स्वाभाविक रूप से इतना मजबूत नहीं होता है कि रोगाणु को खत्म कर शरीर को बीमारी से बचा सके। इम्यून सिस्टम को बढ़ाने का एक तरीका है और वो है वैक्सीन।

AajTak : Apr 28, 2020, 02:10 PM
Coronavirus: कोरोना वायरस की दवा और वैक्सीन को लेकर दुनिया भर में कोशिशें जारी हैं लेकिन अब तक कोई नतीजा सामने नहीं आ सका है। कई वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी वैक्सीन इस साल के अंत तक आ जाएगी। पूरी दुनिया की निगाहें कोरोना वायरस की वैक्सीन पर टिकी हैं। आइए जानते हैं कि आखिर वैक्सीन क्या है और यह कैसे काम करती है।

वैक्सीन क्या है?

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम प्राकृतिक रूप से कीटाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करता है। जब रोगाणु शरीर पर हमला करता है तो शरीर का इम्यून सिस्टम इससे लड़ने के लिए विशेष कोशिकाओं को भेजता है। कभी-कभी इम्यून सिस्टम स्वाभाविक रूप से इतना मजबूत नहीं होता है कि रोगाणु को खत्म कर शरीर को बीमारी से बचा सके। इम्यून सिस्टम को बढ़ाने का एक तरीका है और वो है वैक्सीन।

वैक्सीन संक्रमण का एक नमूना बनाकर इम्यून सिस्टम को रोगाणु या अन्य रोगजनक से लड़ने के लिए तैयार करती है। इस रोगाणु से पहले लड़े बिना ही वैक्सीन इम्यून सिस्टम को उस रोगाणु की 'स्मृति' बनाने में मदद करती है। इससे इम्यून सिस्टम वायरस, जीवाणु या अन्य सूक्ष्म जीवों जैसे रोगजनक का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है। आमतौर पर वैक्सीनेशन या टीकाकरण कराने वाला व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता है।

वैक्सीन ने कई गंभीर बीमारियों से बचाया

वैक्सीन आने से पहले बच्चे अक्सर खसरा, पोलियो, चेचक और डिप्थीरिया जैसी घातक बीमारियों के शिकार हो जाते थे। टिटनेस के बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर एक साधारण खरोंच भी जानलेवा साबित होती थी। हालांकि वैक्सीन ने अब इन खतरों को दूर कर दिया है। चेचक और पोलियो दुनिया से लगभग पूरी तरह से चले गए हैं। खसरा और डिप्थीरिया के मामले भी गिने-चुने बचे हैं। दुनिया भर में टिटनेस के संक्रमण भी काफी कम हो गए हैं।

वैक्सीन से आती है 'हर्ड इम्यूनिटी'

वैक्सीनेशन उन लोगों की भी रक्षा करने में भी मदद करता है जिन्हें वैक्सीन नहीं लगाई जा सकती है, जैसे कि नवजात शिशु, अत्यधिक बीमार या बुजुर्ग। जब समुदाय के पर्याप्त लोगों को किसी विशेष संक्रामक बीमारी की वैक्सीन दी जाती है, तो उस बीमारी की एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने की संभावना बहुत कम हो जाती है। इस प्रकार की सामुदायिक सुरक्षा को डॉक्टर 'हर्ड इम्यूनिटी' कहते हैं।

वैक्सीन कैसे काम करती है?

हमारे शरीर की संरचना ऐसी है जो बाहरी कीटाणुओं से लड़ती है। इसके लिए शरीर को बाहरी हानिकारक तत्वों से खुद को अलग करने की क्षमता होनी चाहिए और यह काम इम्यून सिस्टम का है। इसके लिए इम्यून सिस्टम बाहरी तत्वों की खोज करता रहता है जिसे वैज्ञानिक एंटीजन भी कहते हैं।

रोगाणु छोटे-छोटे कणों से बनते हैं। चूंकि यह मानव शरीर में बिल्कुल अलग से दिखते हैं, इम्यून सिस्टम अपने एंटीजन के जरिए इन रोगाणुओं पर हमला करता है। यह एंटीजन अलग-अलग रोगाणु पर अलग तरीके से काम करते हैं। जैसे फ्लू और खसरा वायरस के लिए अलग-अलग एंटीजन होते हैं। यहां तक कि दो अलग-अलग प्रकार के फ्लू वायरस के भी कुछ अलग एंटीजन हो सकते हैं।

जब कोई रोगाणु शरीर में प्रवेश करता है, इसे रोकने के लिए इम्यून सिस्टम अपने विशेष कणों यानी एंटीबॉडीज को भेजता है। ये वाई आकार के एंटीबॉडी प्रोटीन विशेष एंटीजन के लिए काम करते हैं। जब इन्हें ऐसे रोगाणु का पता चलता है जिनका सामना यह पहले भी कर चुके हैं, एंटीबॉडी इनसे निपटने का काम शुरू करता है। इनके दो काम हैं। एक तो एंटीजन को रोककर रखना ताकि रोगाणु को कमजोर किया जा सके और वो शरीर को कम से कम नुकसान पहुंचा सके। दूसरा अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संक्रमण का संकेत देना। यह अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाएं कीटाणुओं को नष्ट कर उन्हें शरीर से निकालती हैं। जब शरीर किसी नए रोगाणु का सामना करता है तो इस पूरी प्रक्रिया में कई दिन लग जाते हैं।

शरीर से संक्रमण दूर हो जाने के बाद भी इम्यून सिस्टम उस रोगाणु के एंटीजन को अपनी स्मृति में बिठा लेता है जिन्हें B कोशिकाएं भी कहा जाता है। यह स्मृति कोशिकाएं एंटीबॉडी को उस विशिष्ट रोगाणु के एंटीजन को पहचानने और उसे रोक कर रखने का काम करती हैं। इस तरह अगर वही रोगाणु फिर से शरीर में प्रवेश करते हैं, तो यह नया एंटीबॉडी इसे तुरंत पहचान लेता है। इससे पहले कि यह रोगाणु शरीर में संक्रमण को फैलाए, एंटीबॉडी इम्यून सिस्टम को शरीर से रोगाणु को नष्ट करने का संकेत देता है।

बीमारियों के खिलाफ इस तरह की सुरक्षा को प्रतिरक्षा यानी इम्यूनिटी कहा जाता है। यही वजह है कि अगर किसी बच्चे को एक बार चेचक हो चुका है तो उसे इस तरह की बीमारी दोबारा नहीं हो सकती। संक्रमण के जरिए भी शरीर में इम्यूनिटी बनती है। उदाहरण के तौर पर, जो व्यक्ति इबोला से संक्रमित होने के बाद ठीक हो चुका हो उसे फिर यही बीमारी दोबारा नहीं होगी।

चूंकि संक्रमण किसी को भी नुकसान पहुंचा सकता है या मार सकता है इसलिए शरीर में इम्यूनिटी बनाने का दूसरा तरीका वैक्सीन है। किसी भी बीमारी से बचने का यह एक सुरक्षित विकल्प है। हालांकि अब तक कई बीमारियां ऐसी हैं जिनकी वैक्सीन खोजने में वैज्ञानिक असफल रहे हैं और इनमें से इबोला एक ऐसी बीमारी है जिसके लिए अभी तक कोई वैक्सीन मौजूद नहीं है।