Baba Bageshwar: सनातन धर्म में जाति-पांति के विरोध को लेकर शुरू हुई धीरेन्द्र शास्त्री की पदयात्रा पर बदरिकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। शंकराचार्य ने आरोप लगाया है कि धीरेन्द्र शास्त्री एक राजनीतिक दल के एजेंट बन गए हैं, जो उनके लिए हिंदू वोट बैंक जुटाने का काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, जाति और वर्ण सनातन धर्म की मूल विशेषताएं हैं, और इन्हें समाप्त करने की बात करना हिंदू धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
शंकराचार्य का आरोप
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “धीरेन्द्र शास्त्री यह प्रचार कर रहे हैं कि जाति-पांति की विदाई करो और हिंदू-हिंदू भाई-भाई बनो। लेकिन जैसे ही आप जाति और वर्ण की विदाई की बात करते हैं, आप सनातनी नहीं रह जाते।” उनका कहना है कि जब कोई व्यक्ति सनातनी नहीं रहेगा तो फिर ‘भाई-भाई’ की भावना कैसे रह पाएगी? उन्होंने आगे कहा कि धीरेन्द्र शास्त्री का यह कदम सनातन धर्म की परंपराओं के विपरीत है और इसे केवल एक राजनीतिक एजेंडे के तहत प्रचारित किया जा रहा है।
पहचान और जाति व्यवस्था
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने जाति व्यवस्था को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अंग बताया। उन्होंने कहा, “आंदोलन इस बात के लिए होना चाहिए कि वर्णाश्रम को मानते हुए हम किसी से घृणा न करें और न ही किसी को नीचा दिखाएं। लेकिन यदि जाति को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए तो हमारी पहचान भी समाप्त हो जाएगी।”पुरी के शंकराचार्य ने तो यहां तक कहा कि वे धीरेन्द्र शास्त्री के हाथ का पानी तक नहीं पीएंगे, क्योंकि उनके विचार सनातन धर्म के सिद्धांतों से मेल नहीं खाते।
धीरेन्द्र शास्त्री के बयान
धीरेन्द्र शास्त्री ने हाल ही में एक कार्यक्रम में हिंदू राष्ट्र को लेकर बयान दिया था, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ। उन्होंने कहा था कि भारत में जात-पात, ऊंच-नीच, छुआछूत और भेदभाव को समाप्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया था कि सरकार को केवल दो जातियां माननी चाहिए, और तभी भारत समृद्ध हो सकेगा।धीरेन्द्र शास्त्री ने यह भी कहा था कि वर्तमान में हो रहे अंधविश्वास को रोकने की आवश्यकता है और इसके लिए केवल सरकार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। उन्होंने अपने अनुयायियों को खुद सरकार बनने की प्रेरणा दी और कहा कि हर युवा को बागेश्वर बाबा की तरह बनना पड़ेगा, तभी हिंदू राष्ट्र की स्थापना संभव हो पाएगी।
विवाद का मुख्य बिंदु
यह विवाद सनातन धर्म की परंपराओं और उनके आधुनिक पुनर्व्याख्या के बीच खिंचाव को उजागर करता है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जहां परंपरागत वर्णाश्रम व्यवस्था को बनाए रखने के पक्षधर हैं, वहीं धीरेन्द्र शास्त्री इसे समाप्त कर एकता और समानता पर जोर दे रहे हैं। यह टकराव सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों को भी छूता है।
निष्कर्ष
सनातन धर्म की प्राचीन परंपराओं और वर्तमान समय की सामाजिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाना एक जटिल मुद्दा है। धीरेन्द्र शास्त्री और शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के विचार इस बात का प्रमाण हैं कि हिंदू धर्म के भीतर भी सुधार और परंपरा को लेकर गहरी बहस चल रही है। इस विवाद से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण और सामंजस्यपूर्ण संवाद की आवश्यकता है।