देश / डीआरडीओ ने बनाई कार्बाइन, एक मिनट में दागेगी 700 गोलियां

दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अचूक मारक क्षमता वाली कार्बाइन के फाइनल ट्रायल को भी पूरा कर लिया है। डीआरडीओ के अनुसार यह अब सेना के उपयोग के लिए हर तरह से तैयार है। बता दें कि इस कार्बाइन को DRDO की पुणे लैब और कानपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने मिलकर बनाया है।

Vikrant Shekhawat : Dec 26, 2020, 05:49 PM
दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अचूक मारक क्षमता वाली कार्बाइन के फाइनल ट्रायल को भी पूरा कर लिया है। डीआरडीओ के अनुसार यह अब सेना के उपयोग के लिए हर तरह से तैयार है।

बता दें कि इस कार्बाइन को DRDO की पुणे लैब और कानपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने मिलकर बनाया है।डीआरडीओ  ने कहा कि इस कार्बाइन के निर्माण से सीआरपीएफ और बीएसएफ की तरह राज्य की केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के शस्त्रागार का आधुनिकीकरण करने में भी मदद मिलेगी।

क्या है खासियत
रक्षा मंत्रालय के अनुसार 5.56x30 मिमी प्रोटेक्टिव कार्बाइन का गर्मियों में उच्चतम तापमान और सर्दियों में हाई एल्टीट्यूट वाले क्षेत्रों में परीक्षण की एक श्रृंखला का यह अंतिम चरण था। जॉइन्ट वेंचर प्रोटेक्टिव कार्बाइन ने शानदार मारक क्षमता और सटीक निशाने के कड़े  मानदंडों को पूरा किया है।

एक मिनट में दागेगी 700 गोलियां
जेवीपीसी को कभी-कभी मॉडर्न सब मशीन कार्बाइन (MSMC) भी कहा जाता है जो 700 राउंड प्रति मिनट की दर से फायर कर सकती है। इस हथियार का प्राथमिक उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाए बिना टारगेट पर हमला करना है।इस कार्बाइन के लिए गोलियां पुणे की एम्यूनेशन फैक्टरी में तैयार होंगी।

कार्बाइन एक ऐसा हथियार है, जिसमें राइफल की तुलना में छोटा बैरल होता है। इसे भारतीय सेना के जवानों की आवश्यकताओं  के अनुसार डिजाइन किया गया है जिससे वे दुश्मनों को पटखनी दे सके।

1980 में INSAS का निर्माण शुरू हुुुुआ था
1980 के आखिर में ARDE (Armament Research & Development Establishment) ने 5.56 x 45 mm क्षमता के छोटे हथियारों को बनाना शुरू किया था जिसे बाद में INSAS (Indian Small Arms System) नाम दिया गया। हथियारों के इस श्रेणी में राइफल, लाइट मशीन गन (LMG) के साथ-साथ इनके गोला-बारूद और सामान भी शामिल थे।

INSAS पर कई तरह के टेस्ट
INSAS पर कई तरह के टेस्ट किए गए। कई तरह के वातावरण में इनको इस्तेमाल किया गया और 1994 में लॉन्च किया गया।