देश / डेढ़ साल बाद चुनाव, हरसिमरत ने यूं ही नहीं चला किसान बिल पर इस्तीफे का दांव

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को मोदी कैबिनेट से कृषि संबंधी विधेयकों का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया। हरसिमरत ने ऐसे ही मोदी कैबिनेट की कुर्सी नहीं छोड़ी है बल्कि डेढ़ साल बाद पंजाब में होने वाले चुनाव के समीकरण को साधने का दांव चला है। शिरोमणि अकाली दल ने केंद्रीय मंत्री पद त्यागकर गुरुवार को पंजाब के किसानों के बीच अपनी खिसकती जमीन तलाशने की कोशिश की है।

AajTak : Sep 18, 2020, 09:45 AM
Delhi: केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को मोदी कैबिनेट से कृषि संबंधी विधेयकों का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया। हरसिमरत ने ऐसे ही मोदी कैबिनेट की कुर्सी नहीं छोड़ी है बल्कि डेढ़ साल बाद पंजाब में होने वाले चुनाव के समीकरण को साधने का दांव चला है। शिरोमणि अकाली दल ने केंद्रीय मंत्री पद त्यागकर गुरुवार को पंजाब के किसानों के बीच अपनी खिसकती जमीन तलाशने की कोशिश की है। अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने हरसिमरत कौर के इस्तीफे को पार्टी द्वारा किसानों के लिए एक बड़े बलिदान के रूप में पेश किया है।

अकाली दल की तरफ से मोदी सरकार में हरसिमरत कौर बादल ही एकमात्र कैबिनेट मंत्री थीं। पंजाब की यह पार्टी बीजेपी का सबसे पुराना सहयोगी दल है। पंजाब में अकाली दल का राजनीतिक प्रभाव बीजेपी से ज्यादा है और यहां की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी रहती है। यही वजह है कि कृषि विधेयकों को लेकर लोकसभा में सुखबीर बादल ने कहा कि मोदी सरकार से उनकी पार्टी की एकमात्र मंत्री इस्तीफा दे देंगी। इसके फौरन बाद हरसिमरत कौर ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। मंत्री का पद त्यागने के कदम से अकाली दल पंजाब के किसानों की नाराजगी को खत्म करना चाहती है। 

दरअसल, अकाली दल ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है, जब पंजाब और हरियाणा के किसानों में कृषि से जुड़े इन विधेयकों के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है। कृषि विधायकों को लेकर किसान संगठनों के द्वारा यह कहा जा रहा है कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र जरिया है, अध्यादेश इसे भी खत्म कर देगा। इसके अलावा कहा जा रहा है कि ये अध्यादेश साफ तौर पर मौजूदा मंडी व्यवस्था का खात्मा करने वाले हैं। पंजाब में किसान पिछले तीन महीने से इन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। 

पंजाब में कांग्रेस इस मुद्दे पर किसानों और किसान संगठनों का सहयोग हासिल करने के मामले में अकाली दल को काफी पीछे छोड़ चुकी है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कृषि से जुड़े अध्यादेशों के खिलाफ 28 अगस्त को विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर खुद को किसानों का हमदर्द बताने की कवायद पहले ही कर चुकी है। एनडीए के सहयोगी होने के चलते कांग्रेस ने पंजाब में अकाली दल को 'किसान विरोधी' और सत्ता की लालची पार्टी के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है। यही वजह है कि इन दिनों राज्य भर में कृषि बिलों के खिलाफ चल रहे किसान संगठनों के विरोध प्रदर्शनों में मोदी सरकार के साथ-साथ अकाली दल की भी आलोचना हो रही थीं।

दरअसल, पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नजरअंदाज कर अपना वजूद कायम रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में किसानों के कर्ज माफी के वादे ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी में कराई थी जबकि उससे पहले किसानों को मुफ्त बिजली वादे के बदौलत ही अकाली दल सत्ता पर काबिज होती रही है। किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के बीच कांग्रेस का कर्ज माफी का वादा अकाली दल की दस साल पुरानी सरकार को सत्ता से बेदखल करने में कारगर रहा था। 

पंजाब विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ साल का ही समय बचा है। कृषि विधेयक के खिलाफ पंजाब के किसान सड़क पर हैं। पंजाब में किसान इतने आंदोलित हैं कि उन्होंने चेतावनी दी गई है कि जो भी सांसद इन बिलों के साथ होगा, उसे राज्य में घुसने नहीं दिया जाएगा। ऐसे में पंजाब की राजनीति करने वाली अकाली दल के लिए किसानों के उग्र तेवरों को देखते हुए सरकार के साथ खड़ा होना मुश्किल बनता जा रहा था। राजनीतिक समीकरण को देखते हुए किसानों की नाराजगी को अकाली दल अपने सिर नहीं लेना चाहती है। यही वजह है कि अकाली दल ने किसानों के सुर में सुर मिलाते हुए विधेयक के विरोध करने का रास्ता चुना। 

अकाली दल की नजर 2022 में होने वाले पंजाब के चुनावों पर है। ऐसे में अकाली दल के लिए उसके अपने वजूद का सवाल है। ऐसे में वह केंद्र सरकार में रहकर अपना राजनैतिक वजूद दांव पर नही लगाना चाहती है। यही वजह है कि हरसिमरत कौर ने मोदी कैबिनेट की कुर्सी छोड़ दी है और कहा कि मैंने किसान विरोध अध्यादेश व कानूनों के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। अकाली पहली बार मोदी सरकार द्वारा लाए गए विधेयक के खिलाफ मुखर होकर खुद को पंजाब के किसानों का सच्चा हितैषी साबित करने की कोशिश में जुट गई है। 

हालांकि, अकाली दल ने मोदी सरकार से बाहर आने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन एनडीए से बाहर निकलने का फैसला पार्टी ने नहीं लिया है। हरसिमरत के इस्तीफे को अकाली दल की मजबूरी से भी जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि किसानों से जुड़े बिलों के विरोध के चलते आने वाले चुनावों में किसानों का वोटबैंक सीधे कांग्रेस के खाते में जा सकता था। यही वजह है कि कांग्रेस हरसिमरत कौर के इस्तीफे को अकाली का नाटक बता रही है।