Zee News : Aug 04, 2020, 07:47 AM
नई दिल्ली: क्रिकेट (Cricket) के सबसे रोमांचक टूर्नामेंट में से एक कहे जाने वाले इंडियन प्रीमियर लीग (Indian Premier League- IPL) के आयोजन का रास्ता भले ही साफ हो गया हो, लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के अड़ियल रुख के चलते उसके बहिष्कार की मांग जोर पकड़ने लगी है।
कोरोना (Coronavirus) संकट के बीच आईपीएल-2020 सितंबर में होगा। जायज है क्रिकेट के चाहने वालों को यह सबसे बड़ी खबर है, लेकिन BCCI ने चीनी कंपनी के साथ करार तोड़ने से इंकार करके क्रिकेट के इस मिनी कुंभ को खतरे में डाल दिया है। विभिन्न संगठनों ने बोर्ड के इस रुख पर नाराजगी जताई है, वहीं सोशल मीडिया पर भी IPL के बहिष्कार की मांग की जा रही है।लद्दाख हिंसा के बाद से चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चल रहा है। सरकार ने भी कई चीनी कंपनियों पर कार्रवाई की है। ऐसे में लोगों को उम्मीद थी कि BCCI देशहित में वीवो मोबाइल से नाता तोड़ लेगी। आपको बता दें कि चीनी कंपनी वीवो आईपीएल की टाइटल स्पॉन्सर है। हालांकि, बोर्ड ने देशहित से ज्यादा पैसों को तवाज्जो दी और अब अपने इसी रुख के चलते उसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर लोग हैशटैग boycott IPL के साथ अभियान चला रहे हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने इस संबंध में गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखा है। कन्फेडरेशन का कहना है कि BCCI का वीवो से नाता नहीं तोड़ना दर्शाता है कि उसके लिए पैसा ही सबकुछ है। गौरतलब है कि आईपीएल 19 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस साल टूर्नामेंट को यूएई स्थानांतरित किया गया है। दुबई, अबू धाबी और शारजाह में सभी मैच होंगे।अब समझते हैं कि आखिर बोर्ड के लिए चीनी कंपनी से नाता तोड़ना इतना मुश्किल क्यों हो रहा है? दरअसल, 2018 के बाद से बोर्ड को मीडिया राइट्स से करीब INR 3,300 करोड़ प्राप्त हुए हैं। वहीं, उसने प्रायोजकों से 700 करोड़ रुपये की कमाई की है। Vivo प्रति वर्ष टाइटल स्पॉन्सरशिप के लिए BCCI को 440 करोड़ का भुगतान करता है। हालांकि, यह सबकुछ BCCI की जेब में नहीं जाता।आईपीएल के राजस्व का आधा हिस्सा आठ फ्रेंचाइजी में वितरित किया जाता है। इसके बाद बीसीसीआई के पास बतौर आय लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये बचते हैं। जायज है ऐसे में उसके लिए Vivo का साथ छोड़ना आसान नहीं है। ऐसा करके उसे सीधे तौर पर 440 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। वैसे, बात अकेले 440 करोड़ की ही नहीं है। यदि बोर्ड चीनी कंपनी को खुद से अलग करता है तो उसे कानूनी कार्रवाइयों में भी उलझना पड़ सकता है। क्योंकि 2018 में वीवो ने INR 2,199 करोड़ की बोली लगाकर पांच साल तक आईपीएल की टाइटल स्पॉन्सरशिप का करार हासिल किया है और कथित तौर पर एग्जिट क्लॉज Vivo के पक्ष में है।
कोरोना (Coronavirus) संकट के बीच आईपीएल-2020 सितंबर में होगा। जायज है क्रिकेट के चाहने वालों को यह सबसे बड़ी खबर है, लेकिन BCCI ने चीनी कंपनी के साथ करार तोड़ने से इंकार करके क्रिकेट के इस मिनी कुंभ को खतरे में डाल दिया है। विभिन्न संगठनों ने बोर्ड के इस रुख पर नाराजगी जताई है, वहीं सोशल मीडिया पर भी IPL के बहिष्कार की मांग की जा रही है।लद्दाख हिंसा के बाद से चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चल रहा है। सरकार ने भी कई चीनी कंपनियों पर कार्रवाई की है। ऐसे में लोगों को उम्मीद थी कि BCCI देशहित में वीवो मोबाइल से नाता तोड़ लेगी। आपको बता दें कि चीनी कंपनी वीवो आईपीएल की टाइटल स्पॉन्सर है। हालांकि, बोर्ड ने देशहित से ज्यादा पैसों को तवाज्जो दी और अब अपने इसी रुख के चलते उसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर लोग हैशटैग boycott IPL के साथ अभियान चला रहे हैं। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने इस संबंध में गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखा है। कन्फेडरेशन का कहना है कि BCCI का वीवो से नाता नहीं तोड़ना दर्शाता है कि उसके लिए पैसा ही सबकुछ है। गौरतलब है कि आईपीएल 19 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस साल टूर्नामेंट को यूएई स्थानांतरित किया गया है। दुबई, अबू धाबी और शारजाह में सभी मैच होंगे।अब समझते हैं कि आखिर बोर्ड के लिए चीनी कंपनी से नाता तोड़ना इतना मुश्किल क्यों हो रहा है? दरअसल, 2018 के बाद से बोर्ड को मीडिया राइट्स से करीब INR 3,300 करोड़ प्राप्त हुए हैं। वहीं, उसने प्रायोजकों से 700 करोड़ रुपये की कमाई की है। Vivo प्रति वर्ष टाइटल स्पॉन्सरशिप के लिए BCCI को 440 करोड़ का भुगतान करता है। हालांकि, यह सबकुछ BCCI की जेब में नहीं जाता।आईपीएल के राजस्व का आधा हिस्सा आठ फ्रेंचाइजी में वितरित किया जाता है। इसके बाद बीसीसीआई के पास बतौर आय लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये बचते हैं। जायज है ऐसे में उसके लिए Vivo का साथ छोड़ना आसान नहीं है। ऐसा करके उसे सीधे तौर पर 440 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। वैसे, बात अकेले 440 करोड़ की ही नहीं है। यदि बोर्ड चीनी कंपनी को खुद से अलग करता है तो उसे कानूनी कार्रवाइयों में भी उलझना पड़ सकता है। क्योंकि 2018 में वीवो ने INR 2,199 करोड़ की बोली लगाकर पांच साल तक आईपीएल की टाइटल स्पॉन्सरशिप का करार हासिल किया है और कथित तौर पर एग्जिट क्लॉज Vivo के पक्ष में है।