AMAR UJALA : Apr 17, 2020, 09:46 PM
Coronavirus: चीन में पिछले साल दिसंबर में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था और उसके बाद से लेकर अबतक इस वायरस ने दुनियाभर में तबाही मचा रखी है। इसकी अबतक न तो कोई निश्चित दवा बन पाई है और न ही जनसाधारण के लिए कोई वैक्सीन ही तैयार हो पाई है। इसके लक्षणों से लेकर बचाव और इलाज को लेकर लगातार शोध हो रहे हैं। इन चार महीनों में इससे जुड़े मेडिकल साइंस में कई ऐसे नए शब्द सामने आए, जिनके बारे में हमने या तो पहली बार सुना या फिर बहुत कम ही सुना हो। पहले जहां क्वारंटीन, आइसोलेशन, लॉकडाउन और हॉटस्पॉट जैसे शब्द सामने आए तो वहीं पिछले कुछ दिनों में एंटीबॉडी टेस्ट, पूलिंग सैंपल जैसे शब्द सामने आए हैं। आइए, जानते हैं इनके बारे में: सबसे पहले जानते हैं एंटीबॉडी के बारे मेंहर व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है, जो हमें बीमारियों से बचाती है। मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र से आप कई तरह के रोगों से बिना इलाज के ही सुरक्षित रहते हैं और आपके प्रतिरक्षा तंत्र में एंटीबॉडी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शरीर में एंटीजन के प्रवेश करने के बाद एंटीबॉडी का बनना शुरू हो जाता है। एंटीबॉडी को इम्युनोग्लोबुलिन भी कहा जाता है। यह शरीर द्वारा पैदा होने वाला ऐसा प्रोटीन है, जो एंटीजन नामक बाहरी हानिकारक तत्वों से लड़ने में मदद करता है। एक स्वस्थ शरीर में हजारों की संख्या में एंटीबॉडी होते हैं। क्या होता है एंटीबॉडी टेस्टइसे सिरोलॉजिकल टेस्ट भी कहा जा सकता है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल महामारी के विस्तार का पता लगाने में किया जाता है। इसे हम रैपिड टेस्टिंग भी कहते हैं। इसका मरीज की जांच में इस्तेमाल नहीं होता। क्योंकि, 80% मामलों में ही इस जांच से संक्रमण की पुष्टि हो पाती है। ये मामले 10 दिन या करीब दो सप्ताह में पता चलते हैं। जबकि मरीज की जांच के लिए शत प्रतिशत गुणवत्ता चाहिए होती है।दो तरह की एंटीबॉडी जांच एंटीबॉडी जांच दो तरह की होती है। इसमें पहली है आईजीएम जांच, जिसके जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि संक्रमित मरीज में विषाणु हाल ही में आया है। जबकि दूसरी आईजीजी जांच से पता चलता है कि संक्रमण काफी दिन पुराना है।क्या होता है पूलिंग सैंपलसंक्रमण दर 2 फीसदी से कम वाले जिलों में सैंपल पूलिंग पद्धति पर काम होता है। केजीएमयू लखनऊ में इस पर अध्ययन भी हुआ। ऐसे भी समझ सकते हैं, अगर अपार्टमेंट में 20 फ्लैट हैं और हर में 5-5 लोग रहते हैं तो आमतौर पर सर्विलांस के लिए सभी 100 लोगों की जांच अनिवार्य है लेकिन अगर पूलिंग पद्धति पर काम करें तो हर फ्लैट में से एक-एक यानी 20 की जांच होती है। इसमें संक्रमित मिलने के बाद उन्हीं के फ्लैट के बाकी लोगों की जांच होती है। इसमें सैंपल जांच के लिए आरटी पीसीआर का इस्तेमाल किया जाता है जिसे मॉलीक्यूलर जांच भी कहते हैं।इसमें व्यक्ति का ब्लड सैंपल लेकर एंटीबॉडी टेस्ट या सीरोलॉजिकल यानी सीरम से जुड़े टेस्ट किए जाते हैं। इसके लिए व्यक्ति की उंगली से महज एक-दो बूंद खून की जरूरत होती है। इससे ये पता चल जाता है कि हमारे इम्यून सिस्टम ने वायरस को बेअसर करने के लिए एंटीबॉडीज बनाए हैं या नहीं। ऐसे में जिन लोगों में कोरोना के संक्रमण के लक्षण कभी नहीं दिखते, उनमें भी ये आसानी से समझा जा सकता है कि वह संक्रमित है या नहीं, या पहले संक्रमित था या नहीं।