गुंजन सक्सेना Review / बिना किसी ड्रामा के प्रेरणा देती है फिल्म

पुरूष प्रधान देश में महिलाओं को अपना सपना पूरा करने के लिए कुछ ज्यादा और बेहतर मेहनत कर खुद को साबित करना होता है। और किसी बेटी को यदि पिता का साथ मिल जाएं तो वह सब कुछ हासिल कर ही लेती हैं। ऐसी ही हैं गुंजन की कहानी। जहां पापा का साथ पाकर गुंजन घर में मां और भाई की सोच के साथ साथ बाहर समाज की सोच में बदलाव लाती है।

Vikrant Shekhawat : Aug 13, 2020, 06:09 PM
न्यूज हैल्पलाइन . मुम्बई | पुरूष प्रधान देश में महिलाओं को अपना सपना पूरा करने के लिए कुछ ज्यादा और बेहतर मेहनत कर खुद को साबित करना होता है। और किसी बेटी को यदि पिता का साथ मिल जाएं तो वह सब कुछ हासिल कर ही लेती हैं। ऐसी ही हैं गुंजन की कहानी। जहां पापा का साथ पाकर गुंजन घर में मां और भाई की सोच के साथ साथ बाहर समाज की सोच में बदलाव लाती है।

लखनऊ के आर्मी परिवार की बेटी गुंजन, जो बचपन से एक पायलट बनना चाहती है। उसके इस सपने में केवल उसके पिता ही उसका साथ देते हैं। पायलट वो बन नहीं पाती तो वो एयरफोर्स में अप्लाई करती है। सिलेक्शन में काफी रुकावट आती है लेकिन यह सब पार कर गुंजन अकादमी ट्रेनिंग के लिए पहुंच जाती है और यहां पर भी अपने सीनियर्स और पुरुष सहकर्मियों की उपेक्षा का सामना करके वो आखिर में युद्ध के मैदान में पहुंचती हैं।

किरदारों का अभिनय

हालांकि इस फिल्म में जान्हवी के कम डॉयलॉग हैं पर जान्हवी अपने मासूम चहेरे और आंखों से सारी बाजी मार लेती हैं। गुंजन के दु:ख और दर्द को अपने बोल से नहीं अपने कर्म में सफलता पाकर दिखा देती है। वहीं जान्हवी यानि गुंजन के पिता का किरदार निभा रहे पंकज त्रिपाठी अपने किरदार में हर बार की तरह ही बेहतरीन रहें। बेटी-पिता के रिश्तों को पूरे भावुक अंदाज में पेश कर बेटी के लिए तत्पर खड़े रहें। पंकज और जान्हवी के कई सीन्स आंखों में पानी ला देते हैं। और यहीं अनोखा रिश्ता इस फिल्म को मजबूती देता है

फिल्म में बखूबी बताया गया कि किस तरह से रक्षा सेना में महिलाओं को कम आंका जाता हैं। और ऐसे में जब गुंजन करगिल युद्ध के दौरान फंसे हुए सैनिकों को सूझ बूझ और साहस से बचाती हैं तो गुंजन के प्रति सबका दृष्टिकोण बदल जाता है। 

 बिना किसी ड्रामा और प्रेम प्रसंग के संघर्ष से भरी कहानी

 फिल्म 'गुंजन सक्सेना -द करगिल गर्ल ' की कहानी को फिल्म के लेखक निखिल मल्होत्रा और डायरेक्टर शरण शर्मा ने साधारण तरीके से प्रस्तुत की। जो भारत की पहली एयरफोर्स पायलट गुंजन की हैं। जिन्होंने भारत पाकिस्तान के 1999 युद्ध में बहुतों की जान बचायी थी। फिल्म की ख़ास बात है कि बाकी युद्ध पर आधारित फिल्मों की तरह देश भक्ति का नारा नहीं लगाया गया है और ना ही गुंजन के प्रेम प्रसंग दिखाए गए हैंहैं। अब तक शादी ब्याह , रोमांस, युवाओं और विदेश में बसे भारतीयों पर फिल्में बनाने वाले करण जोहर इस फिल्म के प्रोड्यूसर है। इस बार उनकी कंपनी और टीम ने कुछ हटके बनाने की पुरजोर कोशिश की हैं।

वैसे इस साल गुंजन सक्सेना के बाद जल्द ही एयरफाॅर्स ऑफिसर्स की ज़िन्दगी पर और फिल्म आ रही है। एक है विजय कार्णिक की ज़िन्दगी पर आधारित अजय देवगन की 'भुज द प्राइड ऑफ़ इंडिया '...तो वहीं पर करण जौहर भी कप्तान विक्रम मल्होत्रा के जीवन पर आधारित 'शेरशाह' लेकर आएंगे।