देश / पीएफ कटौती के बाद कितनी बढ़ जाएगी आपकी सैलरी? EPFO ने दिया जवाब

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने केंद्र सरकार द्वारा ईपीएफ योगदान को 12 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किए जाने के संबंध में कई जानकारियां दी है। आर्थिक राहत पैकेज में इस ऐलान के बाद कर्मचारियों और नियोक्ताओं द्वारा कुछ बातों को लेकर स्पष्टता की मांग की जा रही​ थी। सरकार द्वारा इसे नोटिफाई करने के बाद ईपीएफओ ने इस बारे में अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से जानकारी दी है

News18 : May 24, 2020, 06:42 AM
नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने केंद्र सरकार द्वारा ईपीएफ योगदान (EPF Contribution Rules) को 12 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किए जाने के संबंध में कई जानकारियां दी है। आर्थिक राहत पैकेज में इस ऐलान के बाद कर्मचारियों और नियोक्ताओं द्वारा कुछ बातों को लेकर स्पष्टता की मांग की जा रही​ थी। सरकार द्वारा इसे नोटिफाई करने के बाद ईपीएफओ ने इस बारे में अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से जानकारी दी है

आत्मनिर्भर भारत पैकेज में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) ने ऐलान किया था कि ईपीएफ योगदान को अगले 3 महीने के लिए 12 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया जाएगा। सरकार ने यह फैसला लिया था ताकि कोविड-19 के इस संकट में कर्मचारियों की टेक होम सैलरी बढ़ जाए और उनके पास पैसे की कमी न हो। वित्त मंत्री ने बताया कि इस फैसले से करीब 6।5 लाख नियोक्ताओं के 4।3 करोड़ कर्मचारी व सब्सक्राइबर्स को लाभ मिल सकेगा। हालां​कि, केंद्रीय कर्मचारियों के पीएफ में यह कटौती नहीं की जाएगी।

अब EPFO ने साफ कर दिया है कि जो नियोक्ता कॉस्ट टू कंपनी (CTC- Cost To Company) मॉडल को फॉलो करते हैं, उन्होंने अगर EPF योगदान 10 फीसदी करने का फैसला किया है तो इसका लाभ उन्हें कर्मचारियों को देना होगा। हालांकि, EPFO द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, यह कर्मचारी और नियोक्ताओं के लिए अनिवार्य नहीं है। EPFO ने कहा, इन तीन महीनों के दौरान योगदान के लिए 10 फीसदी की रकम न्यूनतम है। कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों इससे अधिक योगदान कर सकते हैं।


CTC पर क्या असर पड़ेगा?

EPFO ने साफ किया है कि अगर कोई नियोक्ता (Employer) अपने कर्मचारी के पीएफ अकाउंट (PF Account) में 10 फीसदी की योगदान करने का फैसला करता है तो इससे कर्मचारी के CTC पर होने वाले नुकसान की भरपाई करनी होगी। इसका मतलब है कि अगर नियोक्ता भी 10 फीसदी का योगदान करता है तो उसे अपने कर्मचारी को अन्य 2 फीसदी की रकम देनी होगी, क्योंकि यह पूरी रकम कर्मचारी के CTC का हिस्सा है।


ऐसे में 4 तरह की ​संभानाएं हैं, जिसपर पर निर्भर करेगा कि कर्मचारियों की सैलरी कितनी बढ़ेगी।


1। पहला तो यह कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों ही ईपीएफ में 10-10 फीसदी का योगदान करें। ऐसे में कर्मचारी की सैलरी में दोनों तरफ से बाकी 2-2 फीसदी यानी कुल 4 फीसदी की सैलरी का इजाफा होगा। बता दें कि ईपीएफ योगदान का यह 12 फीसदी कर्मचारी की बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते के आधार पर कैलकुलेट किया जाता है।

मान लीजिए कि किसी कर्मचारी की बेसिक और महंगाई भत्ता मिलाकर 10 हजार रुपये बनता है। इस आधार पर दोनों की तरफ से ईपीएफ योगदान 1,200-1,200 रुपये बनता है। लेकिन, 10 फीसदी के नियम के हिसाब से यह 1,000-1,000 रुपये हो जाएगा। इस प्रकार कर्मचारी की सैलरी में कुल 400 रुपये प्रति महीने का इजाफा होगा।

2। दूसरा यह कि अगर कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों ही 12-12 फीसदी का योगदान जारी रखते हैं। ऐसी स्थिति में कर्मचारी की टेक होम सैलरी में कोई इजाफा नहीं होगा। उन्हें पहले की तरह ही सैलरी मिलेगी।

3। तीसरी स्थिति में अगर कर्मचारी अपना योगदान 12 फीसदी जारी रखता है और नियोक्ता अपना योगदान 10 फीसदी कर देता है तो इससे कर्मचारी की टेक होम सैलरी उनके बेसिक + महंगाई भत्ते की 2 फीसदी बढ़ जाएगी।

4। चौथी स्थिति में अगर कर्मचारी अपना योगदान 10 फीसदी रखता है, लेकिन नियोक्ता अपना योगदान 12 फीसदी ही जारी रखता है। ऐसी स्थिति में भी कर्मचारी की टेक होम सैलरी नके बेसिक + महंगाई भत्ते की 2 फीसदी बढ़ जाएगी।

टैक्स पर पड़ेगा असर

कम EPF योगदान और टेक होम सैलरी में इजाफा होने का असर कर्मचारी के टैक्स पर भी पड़ेगा। दरअसल, टैक्स तो इनकम टैक्स स्लैब के आधार पर ही लागू होगा। ऐसे में इन तीन महीनों के लिए आपकी बढ़ी हुई सैलरी भी इनकम टैक्स स्लैब के दायरे में आएगी।

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि आपकी प्रति माह सैलरी 1,000 रुपये बढ़ जाती है और आप उच्च टैक्स ब्रैकेट में आते हैं तो टेक होम सैलरी केवल 700 रुपये ही बढ़ेगी। बाकी की रकम टैक्स के तौर पर कट जाएगी।

बढ़ेगा टैक्स बचाने का झंझट

कर्मचारी इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act, 1961) के सेक्शन 80C के तहत EPF योगदान पर टैक्स छूट का लाभ लेते हैं। चूंकि, अब EPF योगदान कम होने पर कर्मचारी को सेक्शन 80C का पूरा लाभ लेने के लिए अन्य इन्वेस्टमेंट विकल्प की तरफ मुड़ना पड़ेगा। अगर कर्मचारी ऐसा नहीं करता है तो उन्हें ज्यादा टैक्स देना होगा।