बॉलीवुड / सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से कैसे शूट होंगे फिल्मों में रोमांटिक सीन? सुभाष घई ने दिया ये जवाब

पूरा देश कोरोना के प्रकोप से जूझ रहा है। ऐसे में एक तरफ जहां सितारे आर्थिक मदद के लिए आगे आ रहे हैं तो वहीं फैंस को इस मुश्किल के वक्त में समझदारी दिखाने की भी बात कर रहे हैं। दरअसल हाल फिलहाल में सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे पोस्ट सामने आए जहां एक धर्म विशेष पर टिप्पणी की गई थी। ऐसे में अब निर्देशक सुभाष घई ने अमर उजाला के साथ कोरोना के मुद्दे पर बात की।

AMAR UJALA : Apr 18, 2020, 04:34 PM
मुंबई:  पूरा देश कोरोना के प्रकोप से जूझ रहा है। ऐसे में एक तरफ जहां सितारे आर्थिक मदद के लिए आगे आ रहे हैं तो वहीं फैंस को इस मुश्किल के वक्त में समझदारी दिखाने की भी बात कर रहे हैं। दरअसल हाल फिलहाल में सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे पोस्ट सामने आए जहां एक धर्म विशेष पर टिप्पणी की गई थी। ऐसे में अब निर्देशक सुभाष घई ने अमर उजाला के साथ कोरोना के मुद्दे पर बात की।

कोरोना में धार्मिक रंग देने वालों पर सुभाष घई ने कहा, 'कहर इंसान पर आया है, न हिंदू पर आया है और न मुसलमान पर। ऐसे में हम सभी को एक इंसान की तरह आगे आना है, मदद करनी है। हमारे पीएम साहब कहते हैं कि गरीबों की मदद करें और शेल्टर दें, ऐसे में ये वक्त निकल जाएगा। आप सोचिए बाद में आप कितना अच्छा महसूस करेंगे। अगर आप गरीब हैं तो संयम रखिए और अमीर हैं तो गरीबों की मदद करिए। एक दूसरे की मदद करने के बाद ही हम शक्तिशाली बन सकते हैं।'

कोरोना का बड़ा असर सिनेमा पर भी देखने को मिला है। इस पर सुभाष कहते हैं, 'हमारी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान हुआ है, सिनेमा बंद हो गए हैं, शूट बंद हैं। नुकसान बहुत हुआ है और आगे भी होगा। लेकिन सवाल इस बात का है कि क्या हम देश के नागरिक हैं। हम हिट फिल्म भी देते हैं और फ्लॉप भी देते हैं। हम कर्ज में भी रहते हैं, हम कर्ज देते भी हैं। हालात चाहें जो भी हैं, लेकिन हम जानते हैं कि हम इससे ऊबर जाएंगे। हम अपनी कला से वापस लौटेंगे, हालांकि धीरे धीरे ये सब डिजिटल हो जाएगा। ओटीटी की ओर सिनेमा का रुख बढ़ जाएगा।'सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से फिल्मों के प्रेम दृश्य में बदलाव को लेकर सुभाष कहते हैं,'देखिए सोशल डिस्टेंसिंग  हुई है लेकिन इमोशनल डिस्टेंसिंग नहीं। मैं सिर्फ आपके साथ जुड़कर ही जानें कितने लोगों के साथ इमोशनली जुड़ गया हूं। फिजिकल अलग कर दिया गया, ठीक है, कोई बात नहीं। ये कोई बड़ी तकलीफ नहीं है, इसका भी समाधान निकल जाएगा। देखिए हो सकता है कोरोना पर ही कहानी बनेगी, दो प्रेमी थे, कोरोना आ गया और दोनों अलग हो गए। जो भी कहानी बनेगी वो हमारे जोश से बनेगी और समझ से बनेगी। वहीं जिसको जैसे काम करना होगा, वैसा समाधान निकल जाएगा।हॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में हैं जो ऐसी समस्याओं पर बनी दिखती हैं, लेकिन बॉलीवुड में ऐसा कुछ खास देखने को नहीं मिलता। इस पर सुभाष घई कहते हैं, 'हमारी रामायण पर कितने फिल्में बनीं, महाभारत पर कितनी फिल्में बनीं। ये सब वही है। राम हैं तो लखन भी हैं, कृष्ण योद्धा भी हैं तो बांसुरी भी हैं उनके हाथ में। आप देखें तो हमारी कहानी कहने का तरीका जो है वो संकटकाल को पकड़कर मनोरंजन से कैसे बताना, यही हमारा आर्ट है। कोरोना पर भी आपको कई कहानियां देखने को मिलेंगी, किसी का स्ट्रगल होगा तो कोई घर नहीं पहुंच पाया, किसी की नौकरी छूट गई आदि। कई लोग जुदा होंगे, कई मिलेंगे। इसको कोई डाक्यूमेंट्री दिखाएगा तो कोई मनोरंजक, लेकिन क्योंकि सिनेमा एक मनोरंजन का मुख्य जरिया है तो उसे वैसे ही दिखाया जाएगा। फिल्मों का अलग अलग रूप है तो जिसका जैसा नजरिया है, फिल्म आपको वैसे ही देखने को मिलेंगी।'सिनेमा के नुकसान पर सरकार से अपेक्षा पर सुभाष ने कहा, 'देखिए मैं ये सोचता हूं कि सरकार को सिर्फ सिनेमा नहीं, बल्कि हर क्षेत्र के बारे में सोचना पड़ेगा। क्योंकि कोरोना का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। सब चीजें उनके सामने आएंगी, सरकार को एंटरटेनमेंट और मीडिया की महत्वता मालूम है और वक्त आने पर मदद मिलेगी। लेकिन सिर्फ सरकार के भरोसे क्यों रहना। जैसे फिल्म इंडस्ट्री अलग अलग फंड बनाकर लोगों की मदद कर रहे हैं तो वैसे ही हर मालिक को अपने कर्मचारियों की मदद करनी चाहिए।