Vikrant Shekhawat : Nov 24, 2024, 11:48 AM
Cop-29: अजरबैजान की राजधानी बाकू में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज है। भारत ने जलवायु वित्त से संबंधित एक अहम प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसे 2035 तक ग्लोबल साउथ के देशों के लिए कुल 300 अरब अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। भारत ने इसे ‘‘बहुत कम एवं बहुत दूर की कौड़ी’’ करार दिया, और कहा कि यह आंकड़ा विकासशील देशों की वास्तविक आवश्यकताओं से कहीं कम है। इस विरोध के बाद भारत की वैश्विक स्तर पर और भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान एक बार फिर शिखर पर पहुंच गया।भारत ने 300 अरब डॉलर के प्रस्ताव को खारिज कियाभारत ने स्पष्ट रूप से इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ग्लोबल साउथ के देशों की वास्तविक आवश्यकताओं को नजरअंदाज करता है। आर्थिक मामलों की विभागीय सलाहकार चांदनी रैना ने भारत की ओर से बयान देते हुए कहा, ‘‘300 अरब अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा उन 1.3 लाख करोड़ डॉलर से बहुत कम है, जिसकी मांग पिछले तीन वर्षों से विकासशील देशों द्वारा की जा रही है।’’ रैना ने यह भी कहा कि यह लक्ष्य 2035 तक पूरा करने के लिए निर्धारित किया गया है, जो कि बहुत दूर की बात है और इससे जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर गंभीरता से निपटा नहीं जा सकता।ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुका भारतआज भारत को ग्लोबल साउथ की प्रमुख आवाज माना जाता है। इससे पहले भी भारत ने जलवायु परिवर्तन पर हो रही बातचीतों में विकासशील देशों की पक्षधरता को मजबूती से प्रस्तुत किया है। इस बार भी भारत ने अकेले ही इस प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा खोला और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि जब बात ग्लोबल साउथ के हितों की हो, तो भारत पीछे नहीं हटेगा। रैना ने कहा, ‘‘हम इस प्रक्रिया से नाखुश और निराश हैं। इस एजेंडे को अपनाए जाने पर हम आपत्ति जताते हैं, क्योंकि यह समावेशिता और देशों के रुख का सम्मान नहीं करता।’’भारत को मिला वैश्विक समर्थनभारत के इस साहसिक कदम से न केवल विकासशील देशों के प्रतिनिधियों में, बल्कि वैश्विक समुदाय में भी समर्थन मिला। नाइजीरिया ने भारत का समर्थन करते हुए 300 अरब डॉलर के जलवायु वित्त पैकेज को ‘‘मजाक’’ करार दिया, जबकि मलावी और बोलीविया ने भी भारत की स्थिति को उचित बताया। इन देशों ने भारत के पक्ष में अपनी आवाज उठाई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अब ग्लोबल साउथ की आवाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।जलवायु वित्त का असली सवालभारत ने स्पष्ट किया कि जलवायु वित्त का मुद्दा केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं होना चाहिए। रैना ने कहा कि 2030 तक प्रति वर्ष 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, जो विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि 300 अरब डॉलर का पैकेज ‘‘सीबीडीआर’’ (साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारी) और समानता के सिद्धांत के खिलाफ है, जो जलवायु परिवर्तन के समाधान में सभी देशों की समान जिम्मेदारी को मान्यता देता है।भारत ने प्रस्ताव को अस्वीकार कियारैना ने अपने बयान में यह भी कहा कि यह प्रस्ताव विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन क्षमता को और कमजोर करेगा और उनके विकास लक्ष्यों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘भारत इस प्रस्ताव को वर्तमान स्वरूप में स्वीकार नहीं करता।’’ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए यह नया पैकेज 2009 में तय किए गए 100 अरब डॉलर के लक्ष्य का स्थान लेगा, जो अब तक नहीं पूरा हो सका है।समाप्तिइस सम्मेलन में भारत ने न केवल अपनी दृढ़ता का परिचय दिया, बल्कि विकासशील देशों की वास्तविक जरूरतों को भी प्रमुखता से उठाया। भारत का यह कदम केवल ग्लोबल साउथ के देशों के लिए ही नहीं, बल्कि समग्र रूप से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। भारत ने साबित किया कि जब बात जलवायु संकट की होती है, तो न केवल उसकी चिंता होती है, बल्कि वह पूरी दुनिया के विकासशील देशों के हितों की भी रक्षा करता है।