Vikrant Shekhawat : Nov 26, 2024, 01:00 AM
COP29 Summit: दुनिया जलवायु परिवर्तन की गहराती मार का सामना करने में सक्षम नहीं दिख रही। इसका सबसे बड़ा प्रमाण वे गरीब और विकासशील देश हैं जो जलवायु आपदाओं का सबसे अधिक शिकार हो रहे हैं। बावजूद इसके, उन्हें जो आर्थिक सहायता मिल रही है, वह उनकी जरूरतों से बहुत कम और उनकी पीड़ा का मजाक जैसा प्रतीत होता है।COP29 सम्मेलन, जो हाल ही में अजरबैजान की राजधानी बाकू में संपन्न हुआ, ने इस संकट को उजागर किया। इस बैठक का मुख्य एजेंडा जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) था, लेकिन परिणाम ने निराशा ही बढ़ाई। ज़रूरत 1.3 ट्रिलियन डॉलर की है, लेकिन विकसित देशों ने सिर्फ 300 बिलियन डॉलर का वादा किया है, वह भी 2035 तक।
जलवायु वित्त का संकट
जलवायु वित्त का उद्देश्य उन गरीब और विकासशील देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यह पैसा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, आपदा राहत में मदद करने, और जलवायु अनुकूल नीतियां बनाने में लगाया जाता है।हालांकि, विकसित देशों की आर्थिक सहायता न केवल अपर्याप्त है, बल्कि उसमें देरी और शर्तें इसे और जटिल बना देती हैं।- 2009 में तय किया गया था कि 2020 से 2025 तक हर साल 100 बिलियन डॉलर गरीब देशों को दिए जाएंगे।
- लेकिन यह रकम 2022 में ही देना शुरू हुई।
भारत और अन्य देशों का विरोध
भारत ने इस बार के क्लाइमेट फाइनेंस पैकेज को सीधे खारिज कर दिया।- भारतीय प्रतिनिधि चांदनी रैना ने कहा, "यह दस्तावेज महज दिखावा है और इससे स्पष्ट है कि विकसित देश अपनी जिम्मेदारियों को लेकर गंभीर नहीं हैं।"
- भारत को नाइजीरिया, मलावी, और बोलीविया जैसे देशों का समर्थन मिला।
अमीर देशों का दृष्टिकोण
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने दावा किया कि वर्तमान वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक संकट के चलते इससे ज्यादा वित्तीय सहायता संभव नहीं है।- उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि क्लाइमेट फाइनेंस देने वाले देशों की लिस्ट को अपडेट किया जाना चाहिए।
- इसमें चीन, कतर, और सिंगापुर जैसे देशों को शामिल करने की मांग की गई।
विकासशील देशों की वित्तीय मांग
संयुक्त राष्ट्र की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार:- 2030 तक विकासशील देशों को जलवायु संकट से बचाने के लिए हर साल 2.4 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
- अरब देशों ने 1.1 ट्रिलियन डॉलर की वार्षिक मांग रखी है।
- भारत और अफ्रीकी देशों ने 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की मांग की है।
कर्ज बनाम अनुदान: विवाद की जड़
गरीब देशों ने 300 बिलियन डॉलर के प्रस्ताव की यह कहते हुए आलोचना की कि यह राशि कर्ज के रूप में दी जाएगी, जबकि उनकी मांग थी कि इसे अनुदान के रूप में दिया जाए।- यह कर्ज विकासशील देशों पर आर्थिक बोझ बढ़ा सकता है, जो पहले से ही वित्तीय संकट झेल रहे हैं।
- अमीर देश "लॉस एंड डैमेज" (घाटा और नुकसान) के लिए सीधे अनुदान देने से बच रहे हैं।
बहुपक्षीय बैंकों का संभावित समाधान
Multilateral Development Banks (MDBs), जैसे विश्व बैंक और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक, जलवायु वित्त जुटाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।- इन संस्थानों से हर साल 120 बिलियन डॉलर जुटाने की उम्मीद है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि COP30 में इस पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।
क्या COP30 से उम्मीदें हैं?
अगले साल ब्राजील में होने वाले COP30 सम्मेलन से गरीब और विकासशील देशों को अधिक आशा है।- उम्मीद है कि अमीर और विकासशील देशों के बीच की खाई को पाटने के लिए नए वित्तीय लक्ष्य तय होंगे।
- साथ ही "लॉस एंड डैमेज" के लिए स्पष्ट फंडिंग व्यवस्था की जाएगी।