भारत—चीन सीमा विवाद / रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा 17 सितंबर को राज्यसभा में दिया गया वक्तव्य

भारत के रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने भारत और चीन के विवाद के संबंध में राज्यसभा में बयान दिया है। सिंह सभी बिंदुओं से विस्तार से जानकारी दी है। आइए जानते हैं क्या बोले राजनाथसिंह

Vikrant Shekhawat : Sep 17, 2020, 06:06 PM
भारत के रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने भारत और चीन के विवाद के संबंध में राज्यसभा में बयान दिया है। सिंह सभी बिंदुओं से विस्तार से जानकारी दी है। आइए जानते हैं क्या बोले राजनाथसिंह।

“माननीय सभापति महोदय,

  • मैं आज लद्दाख की सीमाओं पर विगत कुछ महीनों में घटित घटनाओं का ब्यौरा सदन के सम्मानित सदस्यों के सामने रखने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। हमारा यह महान देश भारत अनगिनत देशवासियों के त्याग एवं तपस्या के फलस्वरूप आज कीस्थिति तक पहुंचा है। स्वतंत्र भारत में भारत की सेनाओं ने देश की सुरक्षा के लिएअपना सर्वोच्च न्योछावर करने में कभी कोई कोताही नहीं बरती है। आप सबको ज्ञात है कि दिनांक 15 जून 2020 को गलवान घाटी में कर्नल संतोष बाबू के साथ हमारे 19 और बहादुर जवानों ने भारत माता की सीमा की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं लद्दाख जाकर वीर जवानों का हौसला बढ़ाया है। मैंने भी बहादुर जवानों से मिलकर उनके शौर्य और अटूट साहस काअनुभव किया है। इस सदन से मैं अनुरोध करता हूँ कि गलवान में शहीद हुए बीसजवानों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की जाए।
  • 2.सबसे पहले मैं संक्षेप में चीन के साथ हमारेसीमा संबंधी विषय के बारे में बताना चाहता हूं । जैसा कि सदन इस बात से अवगत है कि भारत एवं चीनकी सीमा का प्रश्न अभी तक  अनसुलझा है। भारत और चीनकी सीमा का आचारिक और परम्परागत संरेखण चीन नहीं मानता है- कि यह सीमा-रेखा, ठीक प्रकार से स्थापितभौगोलिक सिद्धांतों पर आधारित है, जिसकी पुष्टि न केवल संधियों और समझौतों द्वारा, बल्कि ऐतिहासिक त्थयों और परिपाटियों द्वारा भी हुई है। इससे दोनों देश सदियों से अवगत हैं। जबकि चीन यह मानता है कि सीमा अभी भी औपचारिक रूप से निर्धारित नहीं है। साथ ही चीन यह भी मानता है कि ऐतिहासिक क्षेत्राधिकार के आधार पर जो परम्परागत प्रथागत सीमा है, उसके बारे में दोनों देशों की अलग-अलग व्याख्या है।  दोनों देश, 1950 एवं 1960 के दशक में इस पर बातचीत कर रहे थे, परन्तु इस पर पारस्परिक रुप से स्वीकार्य समाधान नहीं निकल पाया।
  • जैसा कि यह सदन अवगत है चीन, लद्दाख में भारत की लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का अनधिकृत कब्जा किए हुए है। इसके अलावा 1963 में एक तथाकथित सीमा समझौते के तहत, पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े वाले कश्मीर की 5180 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन अवैध रूप से चीन को सौंप दी है। चीन अरूणाचल प्रदेश की सीमा से लगे हुए लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र को भी अपना बताता है।
    भारत तथा चीन दोनों ने औपचारिक तौर पर यह माना है कि सीमा का प्रश्न एक जटिल मुद्दा है जिसके समाधान के लिए धैर्य की आवश्यकता है तथा इस मुद्दे का स्पष्ट, न्यायसंगतऔर परस्पर स्वीकार्य समाधान शांतिपूर्ण बातचीत के द्वारा निकाला जाए। अंतरिम रूप से दोनों पक्षों ने यह मान लिया है कि सीमा पर शांति और स्थिर ताबहाल रखना द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
    मैं यह भी बताना चाहता हूँ, कि अभी तक भारत-चीन के सीमा क्षेत्र में साझा रूप से निरूपित वास्तविक नियंत्रण रेखा नहीं है और एलएसी को लेकर दोनों की धारणा अलग-अलग है। इसलिए शांतिऔर स्थिरता बहाल रखने के लिए दोनों देशों के बीच कई तरह के समझौते और संधि पत्र हैं।
    इन समझौतों के अंतर्गत दोनों देशों ने यह माना है कि एलएसी पर शांतिऔर स्थिरताबहाल रखी जाएगी, जिसपर एलएसी की अपनी-अपनी स्थिति और सीमा के प्रश्न का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस आधार पर वर्ष 1988 के बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में काफी विकास हुआ। भारत का मानना है कि, द्विपक्षीय संबंधों को विकसित किया जा सकता है, तथा साथ ही साथ सीमा के मुद्दे के समाधान के बारे में चर्चा भी की जा सकती है। परन्तु एलएसी पर शांतिऔर स्थिरता में किसी भी प्रकार की गम्भीर स्थिति का द्विपक्षीय संबंधों पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा।
  • वर्ष 1993 एवं 1996 के समझौते में इस बात का जिक्र है कि एलएसी के पास दोनों देश अपनी सेनाओं की संख्या कम से कम रखेंगे। समझौते में यह भी है कि जब तक सीमा के मुद्दे का पूर्ण समाधान नहीं होता है, तब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से आदर और अनुपालन किया जाएगा तथा उसका उल्लंघन नहीं किया जाएगा। इन समझौतों में भारत व चीनएलएसी के स्पष्टीकरण द्वारा एक परस्पर स्वीकार्य समझपर पहुँचने के लिए भी प्रतिबद्ध हुए थे । इसके आधार पर 1990 से 2003 तक दोनों देशों द्वारा विस्तविक नियंत्रण रेखा पर एक साझा समझ बनाने की कोशिश की गई लेकिन इसके बाद चीन ने इस कार्यवाही को आगे बढ़ाने पर सहमति नहीं जताई। इसके कारण कई जगहों पर चीन तथा भारत के बीच एलएसी की धारणा में आपसी अतिक्रमण हैं ।
  • इन क्षेत्रों में तथा सीमा के कुछ अन्य इलाकों में दूसरे समझौतों के आधार पर दोनों की सेनाएं टकराव आदि की स्थिति का समाधान निकालती हैं, जिससे कि शांति स्थापित रहे।
    इससे पहले कि मैं सदन को वर्तमान स्थिति के बारे में बताऊॅं मैं यह बताना चाहता हूं कि सरकार की विभिन्न गुप्तचर संस्थाओंके बीच समन्वय की एक विस्तृतऔर समयबद्ध प्रक्रिया है जिसमें केंद्रीय पुलिस बलों और तीनों सशस्त्र बलों की खुफिया एजेंसियां शामिल हैं। तकनीकी और मानवीय आधार पर एकत्रित खुफिया सूचनाओं को लगातार समन्विततरीके से इकट्ठा किया जाता है तथा सशस्त्र बलों से उनकानिर्णय लेने के लिए साझा किया जाता है।
    अब मैं सदन को इस साल उत्पन्न परिस्थितियों से अवगत कराना चाहता हूं । अप्रैल माह से पूर्वी लद्दाख की सीमा पर चीन की सेनाओं की संख्या तथा उनके हथियारों में वृद्धि देखी गई। मई महीने के प्रारंभ में चीन ने गलवान घाटी क्षेत्र में हमारी सैन्य टुकड़ियों की सामान्य पारंपरिक गश्ती की प्रक्रिया में व्यवधान शुरू किया जिसके कारण टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई। वहां तैनात कमांडरों द्वारा इस समस्या को सुलझाने के लिए विभिन्न समझौतों तथा प्रक्रियाओं के तहत वार्ता की जा रही थी कि इसी बीच मई महीने के मध्य में चीन द्वारापश्चिमी सेक्टरमें कई स्थानों पर एलएसी का अतिक्रमण करने की कोशिश की गई। इनमें कोंगका-ला गोगरा और पैंगोंग झील का उत्तरी किनारा शामिल है। इन कोशिशों को हमारी सेनाओं ने समय पर देख लिया तथा उसके लिए आवश्यक जवाबी कार्यवाही की।
  • हमने चीन को कूटनीतिक तथा सैन्य प्रक्रियाओं के माध्यम से यह अवगत करा दियाकि इस प्रकार की गतिविधियाँ, यथास्थिति को एकतरफा ढंग से बदलने का प्रयास हैं।यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि यह प्रयास हमें किसी भी सूरत में मंजूर नहीं हैं ।
  • एलएसी के ऊपर टकरावबढ़ता हुआ देख कर दोनों तरफ के सैन्य कमांडरों ने 6 जून 2020 को बैठक की, तथा इस बात पर सहमति बनी कि पारस्परिक तौर तरीकों के द्वारा फौजों की वापसी की जाए। दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए कि वास्तविक नियंत्रण रेखा को माना जाएगा तथा कोई ऐसी कार्रवाई नहीं की जाएगीजिससे यथास्थिति में परिवर्तन हो । किन्तु इस सहमति के उल्लंघन में चीन द्वारा एक हिंसक टकराव की स्थिति 15 जून को गलवान में की गई। हमारे बहादुर सैनिकों ने अपनी जान का बलिदान दिया पर साथ ही चीनी पक्ष को भी भारी क्षति पहुँचाई और अपनी सीमा की सुरक्षा में सफल रहे।
    इस पूरी अवधि के दौरान हमारे बहादुर जवानों ने जहाँ संयम की जरूरत थी वहां संयम रखा तथा जहाँ शौर्य की जरुरत थी वहां शौर्य प्रदर्शित किया। मैं सदन से यह अनुरोध करता हूँ कि हमारे सैनिकों की वीरता एवं बहादुरी की भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिये। हमारे बहादुर जवान अत्यंत मुश्किल परिस्थतियों में अपने अथक प्रयास से समस्त देशवासियों को सुरक्षित रख रहे हैं।
  • एक ओर किसी को भी हमारे सीमा की सुरक्षा के प्रति हमारे दृढ़ निश्चयके बारे में संदेह नहीं होना चाहिए, वहीं भारत यह भी मानता है कि पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण संबंधों के लिए आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता रखना आवश्यक है।  चूंकि हम मौजूदा स्थिति का बातचीत के जरिए समाधान चाहते हैंहमने चीनी पक्ष के साथ कूटनीतिक और सैन्य संपर्क बनाए रखा है। इन वार्ताओं में तीन मुख्य सिद्धांत हमारे रुख़ को तय करते हैं: (i) दोनों पक्षों को एलएसी का सम्मान और कड़ाई से पालन करना चाहिए; (ii) किसी भी पक्ष को अपनी तरफ से यथास्थिति का उल्लंघन करने का प्रयास नहीं करना चाहिए; और (iii) दोनों पक्षों के बीच सभी समझौतों और समझका पूर्णतया पालन होना चाहिए।  चीन के पक्ष की यह स्थिति है कि स्थिति को एक जिम्मेदार ढंग से संचालित किया जाना चाहिए और द्विपक्षीय समझौतों एवं संधि पत्रों के अनुसार शांति एवं सद्भाव/स्थिरता सुनिश्चित की जानी चाहिए। परंतु चीन की गतिविधियों से स्पष्ट है कि उसकी कथनी और करनी में अंतर है इसका प्रमाण है कि जब बातचीत चल ही रही थी किचीन की तरफ से 29 और 30 अगस्त की रात को उकसावे वाली सैनिक कार्रवाई की गईजो पैंगोंग झील के दक्षिणी तट क्षेत्रमें यथा स्थितिको बदलने का प्रयास थी । लेकिन एक बार फिर हमारे सशस्त्र बलों द्वारा समयबद्ध और दृढ़ कार्रवाई के कारण उनके ये प्रयास सफल नहीं हुए।
  • जैसा कि उपर्युक्त घटनाक्रम से स्पष्ट है, चीन की कार्रवाई से हमारे विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों के प्रति उसकी असम्मान की भावना प्रकट होती है । चीन द्वारा सैन्य बलों की भारी मात्रा में तैनाती किया जाना 1993 और 1996 के समझौतों का उल्लंघन है। एलएसी का सम्मान करना और उसका कड़ाई से पालन किया जाना, सीमा क्षेत्रों में शांति और सद्भाव का आधार है, और इसे 1993 एवं 1996 के समझौतों में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है। जबकि हमारेसशस्त्र बल इसका पूरी तरह पालन करते हैं, चीनी पक्ष की ओर से ऐसा नहीं हुआ है।
  • उनकी कार्रवाई के कारण एलएसी के आसपास समय- समयपर टकराव और घर्षण की स्थिति पैदा हुई है। जैसा कि मैंने पहले भी उल्लेख किया है इन समझौतों में टकराव की स्थिति से निपटने के लिए विस्तृत प्रक्रियाएं और तौर तरीक़े निर्धारित हैं। तथापि इस वर्ष हाल की घटनाओं में चीन की सेना का हिंसक व्यहवार सभी साझा स्वीकार्य तौर तरीक़ों का पूर्णतया उल्लंघन है।
  • अभी की स्थिति के अनुसारचीनी पक्ष ने एलएसी और अपने अंदरूनी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सैनिक टुकड़ियां और गोला बारूद जमा किया हुआ है। पूर्वी लद्दाख और गोगरा,कोंगका-ला और पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर टकराव के कई क्षेत्र हैं। चीन की कार्रवाई के जवाब में हमारे सशस्त्र बलोंने भी इन क्षेत्रों में उपयुक्त जवाबी तैनाती की है ताकि भारत की सीमा पूरी तरह सुरक्षित रहे।
  • अध्यक्ष महोदय सदन को आश्वस्त रहना चाहिए कि हमारे सशस्त्र बलइस चुनौती का सफलता से सामना करेंगे और इसके लिए हमें उनपर गर्व है। अभी जो स्थिति बनी हुई है उसमें संवेदनशील सामरिक मुद्दे शामिल हैं। इसलिए मैं इस बारे में ज्यादा ब्यौरे का खुलासा नहीं करना चाहूंगा, और मैं आश्वस्त हूं कि यह सदन इस संवेदनशीलता को समझेगा।
  • कोविड19 के चुनौती भरे समय में हमारे सशस्त्रबल और आईटीबीपी की तेजी से तैनाती हुई है। उनके प्रयासों की प्रशंसा किये जाने की ज़रूरत है। यह इसलिए भी संभव हुआ हैक्योंकि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में ढांचागत व्यवस्था के विकास को काफी अहमियत दी है। सदन को जानकारी है कि पिछले कई दशकों में चीन ने बड़े पैमाने पर अवसंरचना निर्माण संबंधी गतिविधियां शुरू की हैं, जिनसे सीमावर्ती क्षेत्रों में उनकी तैनाती की क्षमता बढ़ी है। इसके जबाव में हमारी सरकार ने भी सीमा पर अवसंरचना के विकास के लिए बजट बढ़ाया है जो पहले से लगभग दोगुना हुआ है। इसके फलस्वरूप सीमावर्ती क्षेत्रों में काफी सड़कें एवं पुल बने हैं। इससे न केवल स्थानीय जनता को जरूरी सड़क सम्पर्क मिला है बल्कि हमारे सशस्त्र बलों को बेहतर ढुलाई संबंधी सहारा भी मिला है। इसके कारण वे सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिक चौकन्ने रह सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर बेहतर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। आने वाले समय में भी सरकार इस उद्देश्य के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहेगी।देश हित में हमें कितना ही बड़ा और कड़ा कदम उठाना पड़े हम पीछे नहीं हटेंगे।
     
माननीय सभापति महोदय,

  •  मैं इस बात पर बल देना चाहूंगा कि भारत हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूदा मुद्दों का हल शांति पूर्ण बातचीत और विचार विमर्श के ज़रिये किये जाने के प्रति प्रतिबद्ध है। इस उद्देश्य से मैं अपने चीनी समकक्ष से 4 सितंबर को मॉस्को में मिला और उनसे हमारीमौजूदा स्थिति के बारे में व्यापक चर्चा हुई। मैंने स्पष्ट तरीके से हमारी चिन्ताओं को चीनी पक्ष के समक्ष रखा जो उनकी बड़ी संख्या में सैन्य बलों की तैनाती, आक्रामक रवैया और यथास्थिति में एकतरफा परिवर्तन की कोशिश (जो द्विपक्षीय समझौतों के उल्लंघन) से सम्बंधित था I मैंने यह भी स्पष्ट किया कि हम इस मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल करना चाहते हैं और हम चाहते हैं कि चीनी पक्ष हमारे साथ मिलकर काम करेंIवहीं हमने यह भी स्पष्ट कर दिया कि हम भारत की सम्प्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। इसके बाद मेरे सहयोगी विदेश मंत्री जयशंकर जी भी 10 सितंबर को मॉस्को में चीन के विदेश मंत्री से मिले । दोनों एक समझौते पर पहुंचे कि यदि चीनी पक्ष द्वारा गंभीरता से और ईमानदारी से समझौते का कार्यान्वयन किया जाता है तो सेना की पूर्ण वापसी प्राप्त की जा सकती हैऔर सीमा क्षेत्र में शांति स्थापित हो सकती है।
  •  जैसे कि सदस्यों को जानकारी है, बीते समय में भी चीन के साथ हमारे सीमावर्ती क्षेत्र में लम्बे टकराव की स्थिति कई बार बनी है जिसका शांतिपूर्ण तरीके से समाधान किया गया था। हालांकि इस वर्ष की स्थिति चाहे वो सैन्य बलों की सहभागिता का स्तर हो या टकराव वाले बिंदुओं की संख्या हो पहले से बहुत अलग है फिर भी हम मौजूदा स्थिति के शांतिपूर्ण समाधान के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
  • सदन के माध्यम से मैं हमारे 130 करोड़ देशवासियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम देश का मस्तक झुकने नहीं देंगे । यह हमारा हमारे राष्ट्र के प्रति दृढ संकल्प है ।
  • अध्यक्ष महोदयइस सदन की एक गौरवशाली परम्परा रही हैकि जब भी देश के समक्ष कोई बड़ी चुनौती आयी है तो इस सदन ने भारतीय सेनाओं की दृढ़ता और संकल्प के प्रति अपनी पूरी एकता और भरोसा दिखाया है। साथ हीसीमा क्षेत्र में तैनात अपने बहादुर सेना के जवानों के शौर्य, पराक्रम और सीमा की सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर पूरा विश्वास व्यक्त किया है ।
  • मैं आपके माध्यम से देशवासियों को यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि हमारे सशस्त्र बलों के जवानों का जोश एवं हौसला बुलंद है और हमारे जवान किसी भी संकट का सामना करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। इस बार भीसीमा पर हमारे वीरों ने किसी भी प्रकार की आक्रामकता दिखाने की बजाय धैर्य और साहस का परिचय दिया है । हमारे यहाँ कहा गया है कि ‘साहसे खलु श्री वसति’। यानी साहस में ही लक्ष्मी (विजय) का निवास होता है। हमारे सैनिक तो साहस के साथसाथ संयमशक्ति, शौर्य और पराक्रम की जीतीजागती प्रतिमूर्ति हैं। महोदय माननीय प्रधानमंत्री के बहादुर जवानों के बीच जाने के बाद हमारे कमांडर तथा जवानों में यह संदेश गया है कि देश के 130 करोड़ देशवासी जवानों के साथ हैं। उनके लिए बर्फीली ऊंचाइयों के अनुरूप विशेष प्रकार के गरम कपड़े, उनके रहने के विशेष टेंटतथा उनके सभी अस्त्रशस्त्र एवं गोला बारूद की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। महोदय हमारे जवानों का हौसला बुलंद है । दुर्गम ऊॅंचाइयों परजहां आक्सीजन की कमी हैतथा तापमान शून्य से नीचे हैउनके उत्साह में कोई कमी नहीं आती है, और वे सियाचीन, कारगिल आदि ऊंचाइयों पर अपना कर्तव्य इतने वर्षों से निभाते आ रहे हैं ।
  • सभापति महोदय, यह सच है कि हम लद्दाख में एक चुनौती के दौर से गुजररहे हैं, लेकिन साथ ही मुझे पूरा भरोसा है कि हमारा देश और हमारे वीर जवान इसचुनौती पर खरा उतरेंगे। मैं इस सदन से अनुरोध करता हूं कि हम एक ध्वनि से अपनीसेनाओं की बहादुरी और उनके अदम्य साहस के प्रति सम्मान प्रदर्शित करें। इस सदनसे दिया गया एकता व पूर्ण विश्वास का संदेश पूरे देश और पूरे विश्व में गूंजेगा औरहमारे जवान जो कि चीनी सेनाओं से आंख से आंख मिलाकर अडिग खड़े हैं उनमेंएक नये मनोबल, ऊर्जा व उत्साह का संचार होगा। 

जय हिंद’’