Sri Lanka Crisis / महंगाई आसमान पर और ईंधन का अकाल, जानें कैसे बर्बादी की कगार पर पहुंची सोने की लंका?

चीनी कर्ज के जाल में फंसकर द्विपीय देश श्रीलंका में हालत हर दिन के साथ बदतर होते जा रहे हैं। विदेश मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है तो वहीं महंगाई इतिहास के सभी रिकॉर्ड तोड़ती जा रही है। डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई मुद्रा बुरी तरह से टूट चुकी है। कोविड-महामारी की मार से उबर पाने से पहले ही सोने की लंका दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी है। आइए जानते हैं क्या हैं इस समय देश के हालात और क्या है इनके पीछे की वजह?

Vikrant Shekhawat : Mar 28, 2022, 02:32 PM
चीनी कर्ज के जाल में फंसकर द्विपीय देश श्रीलंका में हालत हर दिन के साथ बदतर होते जा रहे हैं। विदेश मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है तो वहीं महंगाई इतिहास के सभी रिकॉर्ड तोड़ती जा रही है। डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई मुद्रा बुरी तरह से टूट चुकी है। कोविड-महामारी की मार से उबर पाने से पहले ही सोने की लंका दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी है। आइए जानते हैं क्या हैं इस समय देश के हालात और क्या है इनके पीछे की वजह?

इतिहास का सबसे बड़ा वित्तीय संकट

श्रीलंका इन दिनों अपने इतिहास के सबसे बड़े वित्तीय संकट से जूझ रहा है। कोरोना महामारी से पहले से ही देश के हालात खराब हो चुके थे और उस पर रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ने इन हालातों को और भी खराब कर दिया है। इसके चलते इस द्विपीय देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। जिसे संभालना भी मुश्किल होता जा रहा है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म होता जा रहा है। सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के अनुसार, जनवरी में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2.36 अरब डॉलर रह गया था। गौरतलब है कि करीब 2.2 करोड़ आबादी वाले देश में पेट्रोल-डीजल समेत अन्य ईंधन की भारी किल्ल्त हो चुकी है। जबकि, महंगाई बेहिसाब बढ़ रही है। इससे देशवासियों के सामने खाने का विकराल संकट पैदा हो गया है।

महंगाई ने तोड़ दिए सारे रिकॉर्ड

देश के विदेशी मुद्रा संकट के बीच पेट्रोलियम की कीमतें आसमान छू गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका की सरकार के पार पेट्रोल और डीजल खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची है जिससे ये संकट और भी गहरा गया है। कुछ दिनों पहले श्रीलंका से ऐसी तस्वीरे आईं कि लोग पेट्रोल खरीदने के लिए पेट्रोल पंप पर टूट पड़े हैं और लोगों को नियंत्रित करने के लिए सेना बुलानी पड़ी। हजारों लोग घंटों तक कतार में इंतजार करके तेल खरीद रहे हैं। देश में डॉलर की कमी ने सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। देश में फरवरी में महंगाई 17.5 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई जो कि पूरे एशिया में सबसे ज्यादा है। 

45 फीसदी तक टूटा श्रीलंकाई रुपया

श्रीलंका में संकट कितना गहरा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई रुपया सिर्फ मार्च महीने में भी अब तक 45 फीसदी टूट चुका है। एक मार्च से अब तक श्रीलंका की मुद्रा डॉलर की तुलना में टूटकर 292.5 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ चुकी है। देश के प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे की मानें तो इस साल देश को 10 अरब डॉलर का व्यापारिक घाटा हो सकता है। वहीं दिवालिया होने की कगार पर पहहुंच चुके श्रीलंका के हालात पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां बढ़ रही हैं और सरकारी ऋण काफी उच्च स्तर पर पहुंच गया है। आईएमएफ ने गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे देश की अर्थव्यवस्था में तत्काल सुधारों का आह्वान किया।

आयात पर अधिक निर्भरता का असर

गौरतलब है कि श्रीलंका अपनी जरूरत ज्यादातर चीजें आयात करता है। इसमें दवा से लेकर तेल तक सब शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के कुल आयात में पेट्रोलियम उत्पादों की हिस्सेदारी पिछले साल दिसंबर में 20 फीसदी थी। लेकिन, विदेश मुद्रा भंडार में आई कमी के चलते श्रीलंका की सरकार ईंधन समेत जरूरी चीजों का आयात करने में विफल हो रही है। इससे देश में जरूरी सामनों की किल्लत होती जा रही है और इनके दाम दिन-ब-दिन आसमान छूते जा रहे हैं या फिर कहें तो देश के आम लोगों की पहुंच रोजमर्रा के जरूरत के सामनों से दूर होती जा रही है। श्रीलंका पेट्रोलियम, भोजन, कागज, चीनी, दाल, दवाएं और परिवहन उपकरण भी आयात करता है। फिलहाल की बात करें तो देश में कागज की सप्लाई प्रभावित होने की वजह से जहां न्यूजपेपर बंद हो गए तो दूसरी ओर विद्यालय परीक्षाओं का आयोजन नहीं हो पा रहा है। 

पर्यटन उद्योग पर सबसे ज्यादा मार

बता दें कि देश की अर्थव्यस्था के बर्बादी की कगार पर पहुंचने के लिए एक कारण देश में पर्यटन उद्योग का पतन है। बता दें कि कोरोना महामारी के कारण देश की जीडीपी में अहम योगदान देने वाला श्रीलंका का पर्यटन क्षेत्र पहले से ही संकट के दौर से गुजर रहा था, जो अब तक उबर नहीं सका है। टूरिज्म इंडस्ट्री का देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में लगभग 10 प्रतिशत का योगदान है। 2019 में कोलंबो में हुए सीरियल बम धमाकों के बाद से पर्यटन उद्योग को झटका लगा था और कोरोना महमारी ने इसे इतना बढ़ा दिया कि इसे उबारना भी मुश्किल हो गया। इसका असर भी सीधे तौर पर श्रीलंका की विदेशी मुद्रा आय पर पड़ा। इसके अलावा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, श्रीलंका में एफडीआई में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। बता दें कि यदि किसी देश में एफडीआई घटती है, तो उसके भंडार में विदेशी मुद्रा भी कम हो जाती है। 

खाने-पीने को मोहताज देशवासी

चीन सहित कई देशों के कर्ज तले दबे श्रीलंका का जनवरी में विदशी मुद्रा भंडार 70 फीसदी से ज्यादा घटकर 2.36 अरब डॉलर रह गया था, जिसमें लगातार गिरावट आती जा रही है। विदेशी मुद्रा की कमी के चलते ही देश में ज्यादातर जरूरी सामानों दवा, पेट्रोल-डीजल का विदेशों से आयात नहीं हो पा रहा है। बीते दिनों आई रिपोर्ट की मानें तो देश में कुकिंग गैस और बिजली की कमी के चलते करीब 1,000 बेकरी बंद हो चुकी हैं और जो बची हैं उनमें भी उत्पादन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है। लोगों को एक ब्रेड का पैकेट भी 0.75 डॉलर (150) रुपये में खरीदना पड़ रहा है। यहीं नहीं एक किलोग्राम चावल और चीनी की कीमत 290 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। मौजूदा समय में एक चाय के लिए लोगों के 100 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं। 

आलू 200, तो मिर्च 700 रुपये किलो 

गौरतलब है कि पिछले साल 30 अगस्त को, श्रीलंका सरकार ने मुद्रा मूल्य में भारी गिरावट के बाद राष्ट्रीय वित्तीय आपातकाल की घोषणा की थी और उसके बाद खाद्य कीमतों में काफी तेज बढ़ोतरी हुई। इस संबंध में बीते दिनों आई एक रिपोर्ट में देश में महंगाई को आंकड़ों के साथ पेश किया गया था। जनवरी में आई इस रिपोर्ट में बताया गया था कि नवंबर 2021 से दिसंबर 2021 के बीच महज एक महीने के भीतर ही श्रीलंका में खाद्य वस्तुओं की महंगाई 15 प्रतिशत बढ़ गई थी। इसके बाद जो हालात बने उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में एक किलो मिर्च की कीमत 710 रुपये हो गई, एक ही महीने में मिर्च की कीमत में 287 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं  बैंगन की कीमत में 51 फीसदी बढ़ी,  तो प्याज के दाम 40 फीसदी तक बढ़ गए। एक किलो आलू के लिए  200 रुपये तक चुकाने पड़े। 

कर्ज के बोझ से बेहाल इकोनॉमी

श्रीलंका पर करीब 32 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है। इस तरह श्रीलंका की सरकार के सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ उसे विदेशी कर्ज का पेमेंट करना है तो दूसरी तरफ अपने लोगों को मुश्किल से उबारना है। सरकार के सामने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से आर्थिक मदद लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका की सरकार को विदेशी कर्ज को जुलाई तक रीस्ट्रक्चर करना होगा। इसकी वजह यह है कि जुलाई में एक अरब डॉलर का कर्ज लौटाने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। 

दिवालिया होने की कगार पर देश

मुद्रास्फीति का रिकॉर्ड स्तर, खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल और कोरोना महामारी से पैदा हुई परेशानियों के कारण देश के खजाने सूख रहे हैं। हालात यहां तक खराब हो चुके हैं कि इस देश के इस साल दिवालिया होने की आशंका है। एक पूर्व रिपोर्ट में कहा गया है कि देश को अगले कुछ महीनों में घरेलू और विदेशी ऋणों में अनुमानित 7.3 अरब डॉलर चुकाने की जरूरत है, जबकि उसके पास देश चलाने के लिए भी पैसे नही बचे हैं। 

पांच लाख से ज्यादा लोग गरीबी में फंसे

विश्व बैंक की ओर से बीते साल अनुमान जताया गया था कि कोरोना महामारी के शुरू होने के बाद से देश में 500,000 लोग गरीबी के जाल में फंस गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जो परिवार पहले संपन्न माने जाते थे, उनके लिए भी दो जून की रोटी जुटानी मुश्किल पड़ रही है। देश के अधिकांश परिवारों के लिए अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने लाले पड़े हैं। देश में आर्थिक आपातकाल की स्थिति के बीच यात्रा और पर्यटन क्षेत्र में ही करीब दो लाख से ज्यादा लोगों का रोजगार खत्म हो चुका है और यही हालात दूसरे क्षेत्रों में बने हुए हैं।