Zee News : Aug 25, 2020, 04:04 PM
संयुक्त राष्ट्र: आईएसआईएस (ISIS) की कथित हार और उसके नेता बगदादी (Abu Baghdadi) के मारे जाने के बाद भी सीरिया और इराक के लिए ये संगठन बड़े खतरे के रूप में मौजूद है। खुद संयुक्त राष्ट्र ने माना है कि सीरिया और इराक में आईएस के करीब 10,000 लड़ाके मौजूद हैं और सक्रिय हैं। ये न सिर्फ छिटपुट हमले कर रहे हैं, बल्कि अपना विस्तार भी कर रहे हैं।
यूएन के आतंकवाद रोधी विभाग के मुखिया व्लादिमीर वोरोन्कोव (U।N। counter-terrorism chief Vladimir Voronkov) ने ये दावा किया। उन्होंने कहा कि अपनी हार के दो साल के बाद भी आईएसआईएस (ISIS-ISIL) के लड़ाके न सिर्फ फिर से उभर रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपनी गतिविधियों को बढ़ाते हुए कई हमले भी किए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बोलते हुए वोरोन्कोव ने कहा कि इन दोनों देशों में छोटे छोटे समूह में बंचकर आईएसआईएस के आतंकवादी अपनी कार्रवाई जारी रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि ये लड़ाके सिर्फ सीरिया-इराक तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने अन्य क्षेत्रीय गुटों के साथ संपर्कों को भी बढ़ाया है। हालांकि सीधी लड़ाई वाले क्षेत्रों के बाहर उनकी गतिविधिया् कम रही हैं, हो सकता है कि इसके पीछे की वजह कोरोना हो, क्योंकि कोरोना के चलते पूरे इलाके में आर्थिक, यातायात प्रतिबंध लगे हुए हैं।हालांकि वोरोन्कोव ने ये भी कहा कि आईएसआईएस से जुड़े प्रोपेगेंडा गुटों से प्रभावित और उनसे मदद पाकर कुछ जगहों पर छोटे हमले हुए। वैसे, वोरोन्कोव ने ये बात भी जोड़ी है कि इन लॉकडाउन का फायदा आईएसआईएस के आतंकवादी खुद को संगठित और मजबूत करने में उठा रहे हैं। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि आईएसआईएस के कामकाज में उसके नए नेता अबू-इब्राहीम अल -हशीमी अल-कुरैशी के नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं आया है। वो पहले की ही तरह आतंकवादियों की भर्ती कर रहा है और पैसे जुटा रहा है।
अफ्रीका महाद्वीप में आईएसआईएस की पहुंच का जिक्र करते हुए वोरोन्कोव ने कहा कि यहां आईएसआईएस बेहद मजबूत हुआ है, खासकर पश्चिमी अफ़्रीका में(Islamic State in West Africa Province)। आईएसआईएस के इस गुट में 3500 से अधिक लड़ाके हैं, और ग्रेटर सहारा रेंज में आईएसआईएस को लगातार मजबूत कर रहे हैं। और मदद भी पहुंचा रहे हैं। आईएसआईएस मौजूदा समय में बुर्किना फासो, माली और नाइजर के त्रिकोणीय हिस्से में सबसे मजबूत ताकत बने हुए हैं। हालांकि लीबिया में आईएसआईएस के महज कुछ सौ लड़ाके ही बचे हैं। वोरोन्कोव ने कहा कि आईएसआईएस के लड़ाके स्थानीय जातीय लड़ाइयों का फायदा उठा रहे हैं, जो सीमाई क्षेत्रों पर अहं असर डाल सकते हैं। वोरोन्कोव ने केंद्रीय अफ्रीकी देशों मेें आईएसआईएस के बढ़ते हमलों को लेकर चिंता जताई, खासकर कांगो और मोजाम्बिक में। जहां आईएसआईएस आतंकियों ने न सिर्फ खतरनाक हमले किये हैं, बल्कि कुछ गांवों तक पर नियंत्रण कर लिया था। यूरोपीय देशों में आईएसआईएस की बढ़ती पकड़ पर वोरोन्कोव ने कहा कि यूरोपीय देशों में इंटरनेट के माध्यम से आईएसआईएस अपना प्रोपेगेंडा चला रहा है और इसी कड़ी में अबतक फ्रांस में तीन ऐर ब्रिटेन में दो हमले हो चुके हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि खतरनाक कैदियों की रिहाई ऐर उनके सही पुनर्वास की ठोस योजना के न होने के चलते ये सब हो रहा है।अफगानिस्तान पर बात करते हुए वोरोन्कोव ने कहा कि आईएसआईएस ने काबुल समेत देश के कई हिस्सों में बड़े हमले किए हैं। आईएसआईएस अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कर पूरी दुनिया में खुद को मजबूत करना चाहता है। और अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इसीलिए वो तालीबान-अमेरिका शांति वार्ता का भी विरोध कर रहा है।वहीं, एशिया के अन्य हिस्सों की बात करें को आईएस ने अप्रैल महीने में मालदीव में हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी। और दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में अक्सर सरकारी सुरक्षा बलों से इनकी भिड़ंत भी होती रही है।इस मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए यूएन में अमेरिकी एंबेसडर केली क्राफ्ट ने कहा कि हम सीरिया-इराक में आईएसआईएस को हराने के बाद चैन से नहीं बैठ सकते, वर्ना उनकी औरतें और बच्चे आगे चलकर हमें आईएसआईएस 2।0 जैसी चुनौती पेश कर सकते हैं। यूएन में रूस के एंबेसडर वेस्लेय नेबेन्जिआ ने कहा कि आईएसआईएस के उभरने का खतरा बना हुआ है। और उसके लड़ाके फिर से खिलाफत लाने का सपना भी देख रहे हैं।
यूएन के आतंकवाद रोधी विभाग के मुखिया व्लादिमीर वोरोन्कोव (U।N। counter-terrorism chief Vladimir Voronkov) ने ये दावा किया। उन्होंने कहा कि अपनी हार के दो साल के बाद भी आईएसआईएस (ISIS-ISIL) के लड़ाके न सिर्फ फिर से उभर रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपनी गतिविधियों को बढ़ाते हुए कई हमले भी किए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बोलते हुए वोरोन्कोव ने कहा कि इन दोनों देशों में छोटे छोटे समूह में बंचकर आईएसआईएस के आतंकवादी अपनी कार्रवाई जारी रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि ये लड़ाके सिर्फ सीरिया-इराक तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने अन्य क्षेत्रीय गुटों के साथ संपर्कों को भी बढ़ाया है। हालांकि सीधी लड़ाई वाले क्षेत्रों के बाहर उनकी गतिविधिया् कम रही हैं, हो सकता है कि इसके पीछे की वजह कोरोना हो, क्योंकि कोरोना के चलते पूरे इलाके में आर्थिक, यातायात प्रतिबंध लगे हुए हैं।हालांकि वोरोन्कोव ने ये भी कहा कि आईएसआईएस से जुड़े प्रोपेगेंडा गुटों से प्रभावित और उनसे मदद पाकर कुछ जगहों पर छोटे हमले हुए। वैसे, वोरोन्कोव ने ये बात भी जोड़ी है कि इन लॉकडाउन का फायदा आईएसआईएस के आतंकवादी खुद को संगठित और मजबूत करने में उठा रहे हैं। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि आईएसआईएस के कामकाज में उसके नए नेता अबू-इब्राहीम अल -हशीमी अल-कुरैशी के नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं आया है। वो पहले की ही तरह आतंकवादियों की भर्ती कर रहा है और पैसे जुटा रहा है।
अफ्रीका महाद्वीप में आईएसआईएस की पहुंच का जिक्र करते हुए वोरोन्कोव ने कहा कि यहां आईएसआईएस बेहद मजबूत हुआ है, खासकर पश्चिमी अफ़्रीका में(Islamic State in West Africa Province)। आईएसआईएस के इस गुट में 3500 से अधिक लड़ाके हैं, और ग्रेटर सहारा रेंज में आईएसआईएस को लगातार मजबूत कर रहे हैं। और मदद भी पहुंचा रहे हैं। आईएसआईएस मौजूदा समय में बुर्किना फासो, माली और नाइजर के त्रिकोणीय हिस्से में सबसे मजबूत ताकत बने हुए हैं। हालांकि लीबिया में आईएसआईएस के महज कुछ सौ लड़ाके ही बचे हैं। वोरोन्कोव ने कहा कि आईएसआईएस के लड़ाके स्थानीय जातीय लड़ाइयों का फायदा उठा रहे हैं, जो सीमाई क्षेत्रों पर अहं असर डाल सकते हैं। वोरोन्कोव ने केंद्रीय अफ्रीकी देशों मेें आईएसआईएस के बढ़ते हमलों को लेकर चिंता जताई, खासकर कांगो और मोजाम्बिक में। जहां आईएसआईएस आतंकियों ने न सिर्फ खतरनाक हमले किये हैं, बल्कि कुछ गांवों तक पर नियंत्रण कर लिया था। यूरोपीय देशों में आईएसआईएस की बढ़ती पकड़ पर वोरोन्कोव ने कहा कि यूरोपीय देशों में इंटरनेट के माध्यम से आईएसआईएस अपना प्रोपेगेंडा चला रहा है और इसी कड़ी में अबतक फ्रांस में तीन ऐर ब्रिटेन में दो हमले हो चुके हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि खतरनाक कैदियों की रिहाई ऐर उनके सही पुनर्वास की ठोस योजना के न होने के चलते ये सब हो रहा है।अफगानिस्तान पर बात करते हुए वोरोन्कोव ने कहा कि आईएसआईएस ने काबुल समेत देश के कई हिस्सों में बड़े हमले किए हैं। आईएसआईएस अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कर पूरी दुनिया में खुद को मजबूत करना चाहता है। और अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इसीलिए वो तालीबान-अमेरिका शांति वार्ता का भी विरोध कर रहा है।वहीं, एशिया के अन्य हिस्सों की बात करें को आईएस ने अप्रैल महीने में मालदीव में हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी। और दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में अक्सर सरकारी सुरक्षा बलों से इनकी भिड़ंत भी होती रही है।इस मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए यूएन में अमेरिकी एंबेसडर केली क्राफ्ट ने कहा कि हम सीरिया-इराक में आईएसआईएस को हराने के बाद चैन से नहीं बैठ सकते, वर्ना उनकी औरतें और बच्चे आगे चलकर हमें आईएसआईएस 2।0 जैसी चुनौती पेश कर सकते हैं। यूएन में रूस के एंबेसडर वेस्लेय नेबेन्जिआ ने कहा कि आईएसआईएस के उभरने का खतरा बना हुआ है। और उसके लड़ाके फिर से खिलाफत लाने का सपना भी देख रहे हैं।