देश / जानिए 'हलधर नाग' की कहानी, जो गमछा और बनियान पहने नंगे पैर 'पद्मश्री पुरस्कार' लेने पहुंचे थे

ओडिशा के रहने वाले 71 वर्षीय हलधर नाग 'कोसली भाषा' के प्रसिद्ध कवि हैं. इनका जन्म सन 1950 में ओडिशा के बारगढ़ ज़िले के एक ग़रीब परिवार में हुआ था. 'सादा जीवन, उच्च विचार'... ये कहावत 21वीं सदी में फ़िट नहीं बैठती है. इसके पीछे का प्रमुख कारण है पैसा. इंसान आज सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसों के पीछे भाग रहा है, लेकिन इस देश में एक ऐसा इंसान भी है जो क़ाबिल होने के बावजूद धन-दौलत की इस मोह माया से ख़ुद को कोसों दूर रखता है.

Vikrant Shekhawat : Oct 06, 2021, 11:01 AM
'सादा जीवन, उच्च विचार'... ये कहावत 21वीं सदी में फ़िट नहीं बैठती है. इसके पीछे का प्रमुख कारण है पैसा. इंसान आज सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसों के पीछे भाग रहा है, लेकिन इस देश में एक ऐसा इंसान भी है जो क़ाबिल होने के बावजूद धन-दौलत की इस मोह माया से ख़ुद को कोसों दूर रखता है. 

साहिब! मेरे पास दिल्ली आने के पैसे नहीं हैं कृपया पुरस्कार (पद्मश्री) डाक से भिजवा दीजिए. ये बात कहने वाले शख़्स थे साल 2016 में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार से 'पद्मश्री पुरस्कार' पाने वाले ओड़िशा के मशहूर लोक कवि हलधर नाग(Haldhar Nag).

आइए जानते हैं आख़िर ऐसी क्या ख़ास बात है हलधर नाग की? 


5 साल पहले की बात है. सफ़ेद धोती, गमछा और बनियान पहने हलधर नाग जब नंगे पांव राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से 'पद्मश्री पुरस्कार' ग्रहण करने पहुंचे, तो उन्हें देखकर हर किसी की आखें फटी की फटी रह गई थी. इस दौरान देश के न्यूज़ चैनलों पर इस बात की बहस चल रही थी कि आख़िर एक काबिल इंसान ऐसा जीवन जीने को क्यों मजबूर है  

कौन हैं हलधर नाग? 

ओडिशा के रहने वाले 71 वर्षीय हलधर नाग(Haldhar Nag) 'कोसली भाषा' के प्रसिद्ध कवि हैं. इनका जन्म सन 1950 में ओडिशा के बारगढ़ ज़िले के एक ग़रीब परिवार में हुआ था. महज 10 साल की उम्र में मां-बाप का देहांत होने के बाद उन्होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी. अनाथ की ज़िंदगी जीते हुये एक ढाबा में जूठे बर्तन साफ़ कर कई साल गुज़ारे.  


इसके बाद हलधर नाग(Haldhar Nag)( ने 16 साल तक एक स्थानीय स्कूल में बावर्ची के रूप में काम किया. कुछ साल बाद उन्होंने बैंक से 1000 रुपये क़र्ज़ लेकर स्कूल के सामने ही कॉपी, किताब, पेन और पेंसिल आदि की एक छोटी सी दुकान खोल ली. इससे वो कई सालों तक अपना गुज़रा करते रहे. इस दौरान वो कुछ न कुछ लिखते ही रहते थे और उन्होंने अपने लिखने के इस शौक़ को मरने नहीं दिया. 

सन 1990 में हलधर नाग ने अपनी पहली कविता 'धोडो बरगच' (द ओल्ड बनयान ट्री) लिखी. इस कविता के साथ उन्होंने अपनी 4 अन्य कविताएं एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेजा और उनकी सभी रचनाएं प्रकाशित हुई. इसके बाद उनके लिखने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है.

नाग कहते हैं 'ये मेरे लिए बड़े सम्मान की बात थी और इस वाक़ये ने ही मुझे और अधिक लिखने के लिए प्रोत्साहित किया. इसके बाद मैंने अपने आस-पास के गांवों में जाकर लोगों अपनी कविताएं सुनानी शुरू की. इस दौरान मुझे लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली'.  

आज तक जो कुछ भी लिखा है वो सब याद है

हलधर नाग(Haldhar Nag) की सबसे ख़ास बात ये है कि उन्होंने आज तक 20 महाकाव्य के अलावा जितनी भी कविताएं लिखी हैं, वो सभी उन्हें ज़ुबानी याद हैं. वो जो कुछ भी लिखते हैं, उसे याद कर लेते हैं. आपको बस कविता का नाम या विषय बताने की ज़रूरत है. आज भी उन्हें अपने द्वारा लिखे एक-एक शब्द याद हैं.  

नाग कहते हैंः मुझे इस बात की ख़ुशी है कि युवा पीढ़ी 'कोसली भाषा' में लिखी गई कविताओं में खासा दिलचस्पी रखता है. मेरे विचार में कविता का वास्तविक जीवन से जुड़ाव और उसमें एक समाजिक सन्देश का होना बेहद आवश्यक है'.  

ओडिशा में 'लोक कवि रत्न' के नाम से मशहूर हलधर नाग की कविताओं के विषय ज़्यादातर प्रकृति, समाज, पौराणिक कथाओं और धर्म पर आधारित होते हैं. वो अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने की ओर भी तत्पर रहते हैं. 

बता दें आज हलधर नाग किसी पहचान के मोहताज़ नहीं हैं. ओडिशा के 'संबलपुर विश्वविद्यालय' में उनके लेखन के एक संकलन 'हलधर ग्रन्थावली-2' को पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है.