Vikrant Shekhawat : Mar 23, 2021, 01:21 PM
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने लोन मोरेटोरियम मामले में अपना फैसला सुना दिया है। न्यायालय ने सरकार की लोन मोरेटोरियम पॉलिसी पर दखल देने से इनकार कर दिया है। साथ ही न्यायालय ने लोन मोरेटोरियम अवधि बढ़ाने से भी इनकार कर दिया है। कोर्ट ने किसी और वित्तीय राहत की मांग को भी खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार छोटे कर्जदारों का चक्रवृद्धि ब्याज पहले ही माफ कर चुकी है। इससे ज्यादा राहत देने के लिए कोर्ट आदेश नहीं दे सकता। हम सरकार के आर्थिक सलाहकार नहीं हैं। महामारी की वजह से सरकार को भी कम टैक्स मिला है। इसलिए ब्याज को पूरी तरह से माफ नहीं किया जा सकता है।कोर्ट ने मोरेटोरियम की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि मोरिटोरिम के दौरान अवधि के लिए कोई चक्रवृद्धि ब्याज नहीं लिया जाएगा। यानी चक्रवृद्धि ब्याज या दंड ब्याज उधारकर्ताओं से नहीं लिया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी बैंक ने ब्याज पर ब्याज वसूला है, तो वह लौटाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आर्थिक नीति क्या हो, राहत पैकेज क्या हो ये सरकार और केंद्रीय बैंक परामर्श के बाद तय करेंगे। जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने यह फैसला सुनाया है।बैंकों को राहतइस फैसले से बैंकों को तो राहत मिली है, लेकिन वहीं दूसरी ओर ब्याज माफी की मांग कर रहे रियल एस्टेट सेक्टर जैसे कई अन्य क्षेत्रों को झटका लगा है। उच्चतम न्यायालय ने रियल एस्टेट और बिजली क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्रों के व्यावसायिक संघों की उन याचिकाओं पर फैसला सुनाया, जिसमें उन्होंने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ऋण किस्त स्थगन और अन्य राहत का विस्तार किए जाने का आवेदन किया था। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल 17 दिसंबर को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।पिछली सुनवाई में केंद्र ने न्यायालय को बताया था कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रिजर्व बैंक द्वारा छह महीने के लिए ऋण की किस्तों के भुगतान स्थगित रखने जाने की छूट की योजना के तहत सभी वर्गो को यदि ब्याज माफी का लाभ दिया जाता है तो इस मद पर छह लाख करोड़ रुपये से ज्यादा धनराशि छोड़नी पड़ सकती है। केंद्र ने कहा था कि अगर बैकों को यह बोझ वहन करना होगा तो उन्हें अपनी कुल शुद्ध परिसंपत्ति का एक बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ेगा, जिससे अधिकांश कर्ज देने वाले बैंक संस्थान अलाभकारी स्थिति में पहुंच जायेंगे ओर इससे उनके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा।न्यायालय ने गत वर्ष 27 नवंबर को सरकार को निर्देश था दिया कि वह कोरोना वायरस महामारी के असर को देखते हुए आठ अलग-अलग श्रेणियों के दो करोड़ रुपये तक के सभी ऋणों पर वसूली स्थगन की अवधि का ब्याज छोड़ने के उसके निर्णय को लागू करने के हर जरूरी उपाय सुनिश्चित कराए। रिजर्व बैंक द्वारा वसूली स्थगतन की घोषित अवधि तीन मार्च से 31 अगस्त 2020 तक छह माह के लिए थी।क्या है मामला?दरअसल, मोरेटोरियम अवधि के ईएमआई के भुगतान को लेकर कई सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट में ब्याज पर ब्याज का मामला पहुंचा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा कि वह मोरेटोरियम अवधि (मार्च से अगस्त तक) के दौरान ब्याज पर ब्याज को माफ करने के लिए तैयार हो गई है। सरकार के सूत्रों ने ब्याज की माफी की लागत करीब 6,500 करोड़ रुपये आंकी थी।