News18 : Jan 07, 2020, 10:27 AM
1979 में शांति का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) जीतने वाली मदर टेरेसा आज ही के दिन 1929 में भारत आई थीं। भारत के गरीबों के लिए मदर टेरेसा ने जो काम किए उसकी भरपाई किसी अवॉर्ड से नहीं की जा सकती। लेकिन फिर भी दुनिया ने उन्हें वो सम्मान देने की कोशिश की, जिसकी वो हकदार थीं। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई प्रतिष्ठित अवॉर्ड होगा, जो मदर टेरेसा को न मिला हो। भारत सरकार उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित कर चुकी हैं। अमेरिका और रूस ने भी अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से उन्हें नवाजा है।मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेंस गोंझा बोयाजिजू था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया में हुआ था। जब वो सिर्फ 9 साल की थीं, उनके सिर से पिता का साया उठ गया। मां पर घर की जिम्मेदारी आ गई। मदर टेरेसा ने सिलाई कढ़ाई करके अपनी मां का हाथ बंटाया। शायद बचपन के अभावों की वजह से ही उनके दिल में अभावग्रस्त लोगों की मदद करने की भावना जगी। और ये भावना ऐसी प्रबल हुई कि उन्होंने पूरी जिंदगी बेसहारों की कल्याण में लगा दी।
ग्रैजुएशन के बाद ली नन की ट्रेनिंग
ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने ईसाई मिशनरीज के लिए काम करने का फैसला कर लिया। वो नन बन गईं। नन की कड़ी ट्रेनिंग लेकर उन्होंने बंगाल के कोलकाता में स्कूलों में काम करना शुरू किया। यहां से शुरू हुआ उनका सफर कई पड़ावों को पार करता हुआ ऐसे मुकाम पर पहुंचा कि वो मानवता की सबसे सच्ची मिसाल बन गईं। लेकिन एक सवाल ये उठता है कि उन्होंने भारत को ही अपनी कर्मभूमि क्यों चुना?मदर टेरेसा 1920 में पहली बार बंगाल के शहर कोलकाता आई थीं। यहां उन्होंने सेंट टेरेसा स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। यहीं पर उन्होंने सबसे पहली बार भारत की भयावह गरीबी, भुखमरी, लाचारी और बेबसों की मजबूरी देखी। शायद यहीं पर उनकी अंतरात्मा जागी और उन्होंने यहां के गरीबों के लिए कुछ करने की सोची। इसके बाद वो कुछ साल लिए यहां से चली गईं। वापस लौटीं तो सबसे पहले यहां के गरीबों के लिए स्लम स्कूल खोला। यहीं पर उन्होंने स्कूल की सीढ़ियों के पास अपनी पहली डिस्पेंसरी खोली।
भारत की भयावह गरीबी देखकर दुखी थीं मदर टेरेसामदर टेरेसा 1931 में भारत लौटीं। उस वक्त द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। युद्ध की वजह से भारत के गरीबों को भूखे मरने की नौबत आ पड़ी थी। बच्चों और महिलाओं की स्थिति सबसे दयनीय थी। मदर टेरेसा ने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। गरीबों के सम्मान के साथ जीने की शिक्षा दी। बीमारों की मदद के लिए उनका इलाज करना शुरू किया। मदर टेरेसा ने सभी को बताना शुरू किया कि ईश्वर की सभी संतान एक हैं। सभी को सम्मान के साथ जीने का हक है।1947 में जब देश आजाद हुआ उस वक्त भयानक दंगे हुए। मदर टेरेसा उस वक्त भी दंगा पीड़ितों की सेवा में जुटी रहीं। उस वक्त मदर टेरेसा ने निर्मल ह्रिदय नाम की एक चैरिटी संस्था खोली और दिनरात गरीबों की सेवा में जुट गईं। उनकी संस्था ने धर्म और जाति से उठकर लोगों की सेवा करनी शुरू की। उनका संस्थान गरीबों की लावारिस हालत में मौत होने पर उनके धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार करता। गरीबों का सम्मान मदर टेरेसा के लिए सबसे बड़ी बात थी।
ग्रैजुएशन के बाद ली नन की ट्रेनिंग
ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने ईसाई मिशनरीज के लिए काम करने का फैसला कर लिया। वो नन बन गईं। नन की कड़ी ट्रेनिंग लेकर उन्होंने बंगाल के कोलकाता में स्कूलों में काम करना शुरू किया। यहां से शुरू हुआ उनका सफर कई पड़ावों को पार करता हुआ ऐसे मुकाम पर पहुंचा कि वो मानवता की सबसे सच्ची मिसाल बन गईं। लेकिन एक सवाल ये उठता है कि उन्होंने भारत को ही अपनी कर्मभूमि क्यों चुना?मदर टेरेसा 1920 में पहली बार बंगाल के शहर कोलकाता आई थीं। यहां उन्होंने सेंट टेरेसा स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। यहीं पर उन्होंने सबसे पहली बार भारत की भयावह गरीबी, भुखमरी, लाचारी और बेबसों की मजबूरी देखी। शायद यहीं पर उनकी अंतरात्मा जागी और उन्होंने यहां के गरीबों के लिए कुछ करने की सोची। इसके बाद वो कुछ साल लिए यहां से चली गईं। वापस लौटीं तो सबसे पहले यहां के गरीबों के लिए स्लम स्कूल खोला। यहीं पर उन्होंने स्कूल की सीढ़ियों के पास अपनी पहली डिस्पेंसरी खोली।
भारत की भयावह गरीबी देखकर दुखी थीं मदर टेरेसामदर टेरेसा 1931 में भारत लौटीं। उस वक्त द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। युद्ध की वजह से भारत के गरीबों को भूखे मरने की नौबत आ पड़ी थी। बच्चों और महिलाओं की स्थिति सबसे दयनीय थी। मदर टेरेसा ने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। गरीबों के सम्मान के साथ जीने की शिक्षा दी। बीमारों की मदद के लिए उनका इलाज करना शुरू किया। मदर टेरेसा ने सभी को बताना शुरू किया कि ईश्वर की सभी संतान एक हैं। सभी को सम्मान के साथ जीने का हक है।1947 में जब देश आजाद हुआ उस वक्त भयानक दंगे हुए। मदर टेरेसा उस वक्त भी दंगा पीड़ितों की सेवा में जुटी रहीं। उस वक्त मदर टेरेसा ने निर्मल ह्रिदय नाम की एक चैरिटी संस्था खोली और दिनरात गरीबों की सेवा में जुट गईं। उनकी संस्था ने धर्म और जाति से उठकर लोगों की सेवा करनी शुरू की। उनका संस्थान गरीबों की लावारिस हालत में मौत होने पर उनके धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार करता। गरीबों का सम्मान मदर टेरेसा के लिए सबसे बड़ी बात थी।