Science / धरती में आई नई दरार, छिपे हुए आठवें महाद्वीप ने बनाया सबडक्शन जोन

धरती के छिपे हुए आठवें महाद्वीप ने हमारी पृथ्वी का सीना चीर दिया है। उसने एक और बड़ी दरार यानी सबडक्शन जोन बना दिया है। ये सबडक्शन जोन न्यूजीलैंड के पास समुद्र के नीचे बना है। यानी न्यूजीलैंड की समुद्री सतह के नीचे एक और टेक्नोनिक प्लेट बन गई है। अगर इस टेक्टोनिक प्लेट में हलचल होती है तो न्यूजीलैंड के आसपास भयानक भूकंप और सुनामी आ सकती है।

Vikrant Shekhawat : May 11, 2021, 06:50 AM
Delhi: धरती के छिपे हुए आठवें महाद्वीप ने हमारी पृथ्वी का सीना चीर दिया है। उसने एक और बड़ी दरार यानी सबडक्शन जोन बना दिया है। ये सबडक्शन जोन न्यूजीलैंड के पास समुद्र के नीचे बना है। यानी न्यूजीलैंड की समुद्री सतह के नीचे एक और टेक्नोनिक प्लेट बन गई है। अगर इस टेक्टोनिक प्लेट में हलचल होती है तो न्यूजीलैंड के आसपास भयानक भूकंप और सुनामी आ सकती है। ये सबडक्शन जोन टैसमैन सागर (Tasman Sea) के नीचे बना है। ये इलाका न्यूजीलैंड से दक्षिण में स्थित है।

न्यूजीलैंड से दक्षिण में स्थित पीसगर ट्रेंच (Puysegur Trench) पर यह सबडक्शन जोन बना है। इस सबडक्शन जोन के बनने से यहां पर ऑस्ट्रेलियन टेक्टोनिक प्लेट खिसक कर पैसिफिक टेक्नोटनिक प्लेट के नीचे चली गई है। यहां पर जरा सी भी हलचल होती है तो साल 2004 में आई सुनामी की तरह तबाही मच सकती है। करीब 7।2 तीव्रता या उससे ज्यादा का भूकंप आ सकता है। वैज्ञानिक इस बात का दावा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये सबडक्शन जोन अभी युवा है। 

धरती का यह आठवां महाद्वीप ऑस्ट्रेलिया से दक्षिण पूर्व की ओर न्यूजीलैंड के ऊपर है। हाल ही में इसका नक्शा बनाया गया था। जिससे पता चलता है कि यह 50 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है। यानी यह भारत के क्षेत्रफल से करीब 17 लाख वर्ग किलोमीटर बड़ा है। भारत का क्षेत्रफल 32।87 लाख वर्ग किलोमीटर है। इस आठवें महाद्वीप का नाम है जीलैंडिया (Zealandia)। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह करीब 2।30 करोड़ साल पहले समुद्र में डूब गया था।

जीलैंडिया (Zealandia) ऑस्ट्रेलियन टेक्टोनिक प्लेट और पैसिफिक टेक्टोनिक प्लेट की सीमा पर स्थित है। ऑस्टिन स्थित द यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के शोधकर्ता ब्रैंडन शक ने कहा कि ऐसे सबडक्शन जोन के अध्ययन से हम धरती के सीने पर बन रही और दरारों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जमा कर पाएंगे। साथ ही हमें यह भी पता चलेगा कि ऐसे सबडक्शन जोन बनने से किस स्तर का भूकंप आ सकता है। हालांकि अभी तक यह पता नहीं चला है कि आखिर ये दरार बनी कैसे? इसकी शुरुआत कहां से हुई है।

जीलैंडिया सुपरकॉन्टीनेंट गोंडवानालैंड से 7।90 करोड़ साल पहले टूटा था। इस महाद्वीप के बारे में पहली बार चार साल पहले पता चला था। तब से इस पर लगातार वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। पिछले साल न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने इसका टेक्टोनिक और बैथीमेट्रिक नक्शा तैयार किया था। ताकि इससे जुड़ी भूकंपीय गतिविधियां और समुद्री जानकारियों के बारे में पता किया जा सके। जीएनएल साइंस के जियोलॉजिस्ट निक मोरटाइमर ने कहा कि ये नक्शा हमें दुनिया के बारे में बताते हैं। ये एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि हैं।

निक ने बताया कि आठवें महाद्वीप का कॉन्सेप्ट 1995 में आया था। लेकिन इसे खोजने में 2017 तक समय लगा और फिर इसे खोए हुए आठवें महाद्वीप की मान्यता दी गई। जीलैंडिया प्रशांत महासागर के अंदर 3800 फीट की गहराई में मौजूद है। नए नक्शे से पता चला है कि जीलैंडिया में बेहद ऊंची-नीची जमीन है। कहीं बेहद ऊंचे पहाड़ हैं तो कहीं बेहद गहरी घाटियां। 

जीलैंडिया का पूरा हिस्सा समुद्र के अंदर है, लेकिन लॉर्ड होवे आइलैंड के पास बॉल्स पिरामिड नाम की चट्टान (फोटो में) समुद्र से बाहर निकली हुई है। इसी जगह से पता चलता है कि समुद्र के नीचे एक और महाद्वीप है। ब्रैंडन कहते हैं कि सबडक्शन जोन का बनना, बिगड़ना और खत्म हो जाना एक रहस्य है। जब कोई समुद्री परत किसी महाद्वीप की परत के नीचे जाती है या ऊपर आती है, तब सतह पर ऊंची-नीची पहाड़ियों जैसी आकृतियां बनती हैं। सतह टूटती है। खराब होती है। इससे भूकंप और सुनामी आने का खतरा बना रहता है।

पीसगर ट्रेंच (Puysegur Trench) के नीचे बने नए सबडक्शन जोन का इतिहास एकदम नया है। इसलिए इसके अध्ययन से वैज्ञानिकों को कई नई जानकारियां मिलेंगी। हालांकि इस जगह का अध्ययन इतना आसान नहीं है। ये जानलेवा है। यहां पर 20 फीट ऊंची लहरें उठती हैं। 48 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवा चलती है। ऐसा सामान्य दिनों में होता है। अगर आप टैसमैन सागर के नीचे पता करेंगे तो वहां लहरों की गति और तेज होती है। 

ब्रैंडन शक ने कहा कि हम लोग साल 2018 में रिसर्च वेसल मार्कस लैंगसेथ में सवार होकर इस इलाके का अध्ययन करने गए थे, जो कि बेहद खतरनाक था। दिन का एक चौथाई हिस्सा तो किसी द्वीप पर पत्थरों के पीछे छिपकर बिताने में चला जाता था क्योंकि यहां हवा और लहरें इतनी तेज थी कि वो आपके शरीर को कहीं से उठाकर कहीं फेंक सकती थीं। जब ये थोड़ी शांत होती थीं तब हम वापस अध्ययन करने बीच समुद्र में जाते थे। 


ब्रैंडन ने बताया कि हमारा वेसल समुद्र में हर समय द्वीपों के किनारे-किनारे चलता था। लहरें और हवा इतनी तेज होती थी कि वेसल हमेशा एक तरफ 20 डिग्री झुका रहता था। खराब मौसम के बावजूद हमने समुद्री के अंदर सीस्मोमीटर (Seismometers) लगाए ताकि समुद्र की सतह पर होने वाली भूकंपीय गतिविधियों की जांच कर सकें। इस यंत्र से साउंड वेव छोड़ी जाती हैं जो समुद्र के अंदर मौजूद अलग-अलग प्रकार की भौगोलिक आकृतियों के आधार पर थ्रीडी नक्शा तैयार करती है। 

22 अप्रैल 2021 को ब्रैंडन शक और उनकी टीम का यह अध्ययन जर्नल टेक्टोनिक्स में प्रकाशित हुआ है। ब्रैंडन कहते हैं कि इस सबडक्शन जोन प्लेट के बनने की शुरुआत 45 मिलियन यानी 4।50 करोड़ साल पहले हुआ है। यह ऑस्ट्रेलियन और पैसिफिक प्लेट के बीच में बनी है। इस दरार के बनने से दो प्लेटें थोड़ी दूर हो गईं। जिससे धरती के केंद्र में मौजूद गर्म लावा ऊपर आने लगा। उसकी वजह से नए पत्थर बन गए। धीरे-धीरे इन पत्थरों के जुड़ने से पूरी की पूरी नई प्लेट बन गई।

ऐसी भूगर्भीय हरकतें सिर्फ न्यूजीलैंड के पास आठवें महाद्वीप जीलैंडिया के नीचे नहीं हुआ है। ब्रैंडन ने बताया कि इससे थोड़ा ज्यादा उम्र की नई प्लेट अलास्का के दक्षिण में और वैंकूवर के उत्तर में बनी है। इसे क्वील शार्लोट फॉल्ट (Queen Charlotte Fault) कहा जाता है। साइंटिस्ट मानते हैं कि यह फॉल्ट आगे चलकर एक नया सबडक्शन जोन बना सकता है।

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की जियोफिजिसिस्ट कैरोलीन इयाकिन ने बताया कि पीसगर ट्रेंच (Puysegur Trench) के पास ही एक समुद्र के अंदर ऊंचाई वाला स्थान है। इसे मैक्वायर रिज (Macqaurie Ridge) कहते है। यह समुद्र के अंदर करीब 1000 किलोमीटर नीचे हैं। लेकिन इसकी चौड़ाई 25 किलोमीटर और ऊंचाई करीब 6 किलोमीटर है। यह रिज भी भविष्य में खतरनाक साबित हो सकता है। अब वैज्ञानिक इस साल नवंबर में इसके अध्ययन के लिए समुद्र में यंत्र भेजेंगे।

पिछली बार जब मैक्वायर रिज के अध्ययन के लिए साइंटिस्ट गए थे, तब उन्हें 109 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से चल रही हवा का सामना करना पड़ा था। ऐसे बुरा माहौल में वैज्ञानिकों के रिसर्च के समय का 38 फीसदी हिस्सा खुद को सुरक्षित रखने और बचने में चला गया। नवंबर 2021 में उम्मीद है कि ज्यादा बेहतर रिसर्च किया जा सकेगा, अगर मौसम ने साथ दिया तो।