देश / न टेस्‍ट की झंझट, न पैसे खर्च करने की जरूरत, बस खांसने की आवाज से होगी कोरोना की जांच

COVID-19 को समझने, इसका पता लगाने और इससे बचने के लिए दुनिया भर के शोधकर्ता कई तरह के उपकरण बना रहे हैं और वायरस से बचने के सैकड़ों तरीकों का विश्लेषण कर रहे हैं। पिट्सबर्ग में कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रीता सिंह ने एक ऐसा टूल बनाया है जो व्यक्ति की खांसी की आवाज, उसके बोलने के तरीके, यहां तक कि सांस लेने की आवाज से COVID -19 के संक्रमण का पता लगा सकता है।

Zee News : Apr 18, 2020, 11:32 AM
नई दिल्ली: COVID-19 को समझने, इसका पता लगाने और इससे बचने के लिए दुनिया भर के शोधकर्ता कई तरह के उपकरण बना रहे हैं और वायरस से बचने के सैकड़ों तरीकों का विश्लेषण कर रहे हैं। पिट्सबर्ग में कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रीता सिंह ने एक ऐसा टूल बनाया है जो व्यक्ति की खांसी की आवाज, उसके बोलने के तरीके, यहां तक कि सांस लेने की आवाज से COVID -19 के संक्रमण का पता लगा सकता है।

वर्तमान में, शोधकर्ता मरीजों की आवाज और उनके खांसने की आवाज की रिकॉर्डिंग कर रहे हैं और फिर एआई एल्गोरिदम के जरिए इन रिकॉर्डिंग से ये पता लगया जाता है कि व्यक्ति को covid-19 संक्रमण है या नहीं है। COVID-19 वॉयस डिटेक्टर के बारे में प्रोफेसर सिंह कहती हैं कि यह व्यक्ति की आवाज की उन सूक्ष्म से सूक्ष्म हरकत को ट्रेस करता है जो सामान्य श्रोता को सुनाई नहीं देते, लेकिन फिर भी मौजूद होते हैं।

फेफड़ों या श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाली कोई भी स्थिति - जैसा कि COVID-19 संक्रमण के मामलों में पता लगा है - उसका आवाज पर प्रभाव पड़ता है। यह टूल मूल रूप से एक सेल्फ लर्निंग सिस्टम है जो सिर्फ सामान्य खांसी ही नहीं, बल्कि आवाज में मौजूद COVID-19 संक्रमण को समझने की कोशिश कर रहा है।

खांसी से सामने आएगा COVID?

इसी तरह की पहल मुंबई स्थित वाधवानी इंस्टीट्यूट फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा की जा रही है। वाधवानी का ‘cough against covid’ नाम का मोबाइल एप्प यूजर को अपनी खांसी की आवाज़ रिकॉर्ड करने के लिए कहता है जिससे covid-19 का टेस्ट होता है।

कोरोना वायरस ने दुनिया की रफ्तार को बहुत धीमा कर दिया है, ऐसे में वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस महामारी से निपटने के लिए टेक्नोलोलॉजी की मदद से कुछ बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं।


दो मीटर की दूरी पर्याप्त नहीं ?

एक तरफ जहां शोधकर्ता खांसी की आवाज से संक्रमण का पता लगाने पर काम कर रहे हैं, वहीं एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि निकट संपर्क से बचने के लिए दो मीटर की दूरी को सुरक्षित माना जाता है, वो भी उतनी सुरक्षित नहीं है। हाल ही के एक अध्ययन से पता चलता है कि अगर कोई आपकी दिशा में बिना मुंह को ढंके खांसता है, तो दो मीटर की दूरी भी पर्याप्त नहीं है।  

कनाडा के एक अस्पताल में वायरोलॉजिस्ट द्वारा की गई जांच से पता चलता है कि मनुष्यों की खांसी का वायु प्रवाह प्राकृतिक रूप से मौसमी फ्लू से संक्रमित होता है। अध्ययन के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बिना किसी सुरक्षात्मक उपकरण के कुछ मीटर की दूरी से भी खांसता है, तो खांसी आपके पास पहुंच जाती है और गतिमान रहती है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि करीब 10 प्रतिशत खांसी की महीन बूंदें चार सेकंड के बाद भी हवा में बनी रहती हैं। ये निष्कर्ष महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के फैसले को पूरी तरह से सही साबित करते हैं।

हाथ पोछें, सुखाएं नहीं

यूके की एक तीसरी स्टडी बताती है कि पेपर टॉवल से हाथ सुखाने पर अन्य सतहों पर वायरस कम फैलाता है। शोधकर्ताओं ने जानबूझकर एक हानिरहित वायरस से चार लोगों के हाथों को संक्रमित किया और उनके हाथों को चार अलग-अलग तरीकों से सुखाया। पाया गया कि पेपर टॉवल से हाथ सुखाने की तुलना में जेट एयर से सुखाए गए हाथों में संक्रमण 10 गुना ज्यादा था।