AMAR UJALA : Apr 02, 2020, 09:07 AM
Coronavirus outbreak: कोरोना वायरस की महामारी से जूझने के दौरान इसे लेकर नए-नए शोध भी जारी हैं। ऐसे ही एक शोध में फिलहाल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सुझाव पर अपनाए जा रहे सोशल डिस्टेंसिंग के मॉडल को गलत बताते हुए दावा किया गया है कि पीड़ित मरीज की खांसी या छींक से कोरोना वायरस हवा में न केवल 8 मीटर दूर तक सफर कर सकता है बल्कि घंटों तक हवा में मौजूद भी रह सकता है।शोध में भारत समेत विभिन्न देशों में अपनाए गए लॉकडाउन जैसे सख्त कदम में यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि लोगों के बीच 1-2 मीटर नहीं बल्कि 8-9 मीटर तक की दूरी बनाई जाए।अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ और अमेरिका रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के वर्तमान निर्देश 1930 के पुराने पड़ चुके मॉडल पर आधारित हैं, जिसमें यह बताया गया है कि खांसी, छींक और श्वसन प्रक्रिया से कैसे ‘गैस क्लाउड’ बनते हैं। हालांकि शोध की लेखिका और एमआईटी की एसोसिएट प्रोफेसर लीडिया बाउरोउइबा ने चेतावनी दी है कि खांसी या छींक के कारण पीड़ित के मुंह से निकलने वाली वायरसयुक्त सूक्ष्म बूंदे 23 से 27 फुट या 7 से 8 मीटर दूर तक जा सकती हैं।उन्होंने कहा कि वर्तमान निर्देश बूंदों के आकार की अति सामान्यकृत अवधारणाओं पर आधारित है और इस घातक महामारी के खिलाफ प्रस्तावित उपायों के प्रभावों को सीमित कर सकते हैं। एमआईटी की वैज्ञानिक ने कहा, हालिया खोजों में सामने आया है कि खांसी या छींक से हवा भरे हुए बादल बनाते हैं, जो परिवेशी वायु में दूर तक सफर करते हैं। इस बादल में विभिन्न आकार की बूंदे होती हैं, जो अलग-अलग दूरी तरह हवा में पहुंच जाती हैं।बदलना होगा सोशल डिस्टेंसिंग का फॉर्मूलानए शोध के हिसाब से देखा जाए तो फिलहाल डब्ल्यूएचओ के निर्देश पर चल रहा सोशल डिस्टेंसिंग का फॉर्मूला कोरोना वायरस से निपटने में बहुत ज्यादा प्रभावी साबित नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करते हुए लोगों को एक-दूसरे से 1 मीटर की दूरी बनाने के लिए कहा था, लेकिन नए शोध के हिसाब से देखा जाए तो एक मीटर के बजाय यह दूरी बढ़ाकर 8 से 9 मीटर तक करने पर ही असली लाभ मिल सकता है।