UP Madarsa Act / यूपी मदरसा एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला, योगी सरकार के लिए क्या मायने?

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की वैधता बरकरार रखी है। कोर्ट ने इसे संविधान सम्मत बताया और कहा कि यह धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं करता। फैसले से यूपी के मदरसों में पढ़ाई जारी रहेगी, जिससे 13,000 मदरसों में अध्ययनरत 17 लाख छात्रों का भविष्य सुरक्षित है।

Vikrant Shekhawat : Nov 05, 2024, 03:40 PM
UP Madarsa Act: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के 2004 के मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। मंगलवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इस अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप माना और इसे संविधान का उल्लंघन नहीं बताया। इस फैसले के साथ ही उत्तर प्रदेश में चल रहे मदरसों में पढ़ रहे लगभग 17 लाख छात्रों और 13 हजार मदरसों के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं रहेगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा

इससे पहले, 22 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि मदरसों के छात्रों को औपचारिक स्कूलों में भेजा जाए। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य में मदरसों की मान्यता समाप्त कर दी गई थी और राज्य सरकार ने निर्देश दिया था कि जो मदरसे आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करते, वे बंद कर दिए जाएंगे। इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, और कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर 5 अप्रैल को अंतरिम रोक लगा दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि यूपी मदरसा एक्ट किसी भी प्रकार से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। अदालत का मानना है कि शिक्षा के मानकों का नियंत्रण राज्य सरकार कर सकती है, परंतु यह हस्तक्षेप मदरसों के प्रशासन या धार्मिक शिक्षा में नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी माना कि यूपी मदरसा एक्ट का उद्देश्य केवल शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना है और यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है।

योगी सरकार की प्रतिक्रिया और मदरसा एक्ट में बदलाव की गुंजाइश

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का महत्व योगी सरकार के लिए भी काफी अधिक है। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील में कहा था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट को अधिनियम के सभी प्रावधानों को असंवैधानिक नहीं मानना चाहिए था। केवल उन प्रावधानों की समीक्षा की जानी चाहिए, जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ हो सकते हैं। राज्य सरकार की यह राय थी कि अधिनियम में सुधार की संभावना तो है, लेकिन इसे पूरी तरह खारिज करना सही नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से स्पष्ट हो गया है कि मदरसा एक्ट में सुधार किए जा सकते हैं, परंतु इसे पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता।

मदरसा बोर्ड अधिनियम 2004 क्या है?

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 में पारित किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य मदरसों में शिक्षा व्यवस्था को सुचारु और व्यवस्थित करना था। इसके तहत मदरसा बोर्ड का गठन किया गया, जो मदरसों को मान्यता देने और उनकी शैक्षिक गुणवत्ता सुनिश्चित करने का कार्य करता है। वर्तमान में, यूपी में करीब 13,000 मदरसे बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं, जबकि लगभग 8500 मदरसे बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं।

मदरसा शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए मुस्लिम समुदाय के कई नेताओं ने इसे एक सकारात्मक कदम बताया। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने इसे मदरसा शिक्षा के भविष्य के लिए राहतकारी बताया। उन्होंने कहा कि इस फैसले से लाखों छात्रों, उनके अभिभावकों, और शिक्षक समुदाय को राहत मिली है। वहीं, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि यह अधिनियम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाया गया था, और इसे असंवैधानिक मानना अनुचित था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने मदरसा शिक्षा को संरक्षित किया है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उत्तर प्रदेश में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था पर संकट को टाल दिया है और यह सुनिश्चित किया है कि मदरसों में पढ़ रहे लाखों छात्रों के भविष्य पर कोई नकारात्मक असर न पड़े। अब योगी सरकार को इस अधिनियम के तहत शिक्षा के मानकों में सुधार की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा, ताकि मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाई जा सके।