देश / सहकारी बैंकों को लेकर आए नए कानून से ग्राहकों के खाते में जमा पैसों पर होगा असर, जानिए इससे जुड़ी सभी बातें

जिस तरह सरकारी और प्राइवेट बैंक को RBI रेगुलेट करता है। उसी तरह अब सहकारी बैंकों पर भी RBI नजर रखेगा। देश में 1482 शहरी सहकारी बैंक और 58 मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं। कुल मिलाकर सभी 1540 सहकारी बैंक RBI के सीधे रेगुलेशन में आ गए हैं। अब क्या होगा ग्राहकों पर असर- एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये फैसला ग्राहकों के हित में है

News18 : Sep 15, 2020, 09:35 AM
नई दिल्ली। जिस तरह सरकारी और प्राइवेट बैंक को RBI रेगुलेट करता है। उसी तरह अब सहकारी बैंकों पर भी RBI नजर रखेगा। देश में 1482 शहरी सहकारी बैंक (Urban Cooperative bank) और 58 मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं। कुल मिलाकर सभी 1540 सहकारी बैंक RBI के सीधे रेगुलेशन में आ गए हैं।

अब क्या होगा ग्राहकों पर असर- एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये फैसला ग्राहकों के हित में है क्योंकि अगर अब कोई बैंक डिफॉल्ट करता है तो बैंक में जमा 5 लाख रुपये तक की राशि पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि वित्त मंत्री ने एक फरवरी 2020 को पेश किए बजट में इसे 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है।अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है तो उसके जमाकर्ताओं को अधिकतम 5 लाख रुपये ही मिलेंगे, चाहे उनके खाते में कितनी भी रकम हो। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की सब्सिडियरी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) के मुताबिक, बीमा का मतलब यह भी है कि जमा राशि कितनी भी हो ग्राहकों को 5 लाख रुपये मिलेंगे। DICGC एक्ट, 1961 की धारा 16 (1) के प्रावधानों के तहत, अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है, तो DICGC प्रत्येक जमाकर्ता को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है। उसकी जमा राशि पर 5 लाख रुपये तक का बीमा होता है।आपका एक ही बैंक की कई ब्रांच में खाता है तो सभी खातों में जमा अमाउंट पैसे और ब्‍याज जोड़ा जाएगा और केवल 5 लाख तक जमा को ही सुरक्षित माना जाएगा।यही नहीं, अगर आपके किसी एक बैंक में एक से अधिक अकाउंट और FD हैं तो भी बैंक के डिफॉल्ट होने या डूब जाने के बाद आपको एक लाख रुपये ही मिलने की गारंटी है। यह रकम किस तरह मिलेगी, यह गाइडलाइंस DICGC तय करता है। क्या होगा बैंकों पर असर- एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस फैसले से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जनता में यह संदेश जाएगा कि उनका पैसा सुरक्षित है। रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि को-ऑपरेटिव बैंकों का पैसा किस क्षेत्र के लिए आवंटित किया जाना चाहिए। इसे प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग भी कहा जाता है।  इन बैंकों के रिज़र्व बैंक के अधीन आने पर इन्हें भी अब आरबीआई के नियम मानने होंगे जिससे देश की मौद्रिक नीति को सफल बनाने में आसानी होगी।  साथ ही, इन बैंकों को भी अपनी कुछ पूंजी RBI के पास रखनी होगी। ऐसे में इनके डूबने की आशंका कम हो जाएंगी। सरकार के इस फैसले से जनता का विश्वास देश के को-ऑपरेटिव बैंकों में और बढ़ेगा और देश में बैंकों की वित्तीय हालात ठीक होने के आसार बढ़ेंगे।