Vikrant Shekhawat : Nov 13, 2023, 06:30 PM
Rajasthan Election: राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों की अपने बागी नेताओं से जूझना पड़ रहा है. बागी नेताओं के मान-मनौव्वल की तमाम कोशिशों के बाद भी 737 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में है. निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले कई कैंडिडेट ऐसे हैं, जिन्हें बीजेपी और कांग्रेस से टिकट नहीं मिल सका तो आजाद उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक दी है. 2018 के चुनाव की तुलना में इस बार निर्दलीय प्रत्याशी भले ही कम हो, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी से बगावत कर उतरने वाले ज्यादा हैं.बीजेपी और कांग्रेस से बागी होकर 35 नेता चुनावी मैदान है, जिसके चलते दोनों ही पार्टियों की टेंशन बढ़ गई है. हालांकि, राजस्थान का चुनावी ट्रेंड देखें तो साफ है कि बीजेपी पर उसके बागी भारी पड़ते हैं, न खुद जीतने में सफल होते हैं और न ही पार्टी कैंडिडेट को जीतने देते हैं, जबकि कांग्रेस के बागी भले ही पार्टी का गणित बिगाड़ देते हैं, लेकिन अपना खेल बनाने में कामयाब रहते हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार बागी अपनी किस्मत बनाते हैं या फिर पार्टी का समीकरण बिगाड़ने का काम करेंगे?राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों में से 35 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार पर दांव लगा रहे हैं. बीजेपी और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय मुकाबले वाले इस राज्य में इस बार दोनों पार्टियों के ही बागी नेताओं कई सीटों पर त्रिकोणीय बना रखा है. राज्य में 135 ऐसी सीटें हैं, जहां लड़ाई केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच है जबकि 35 सीटों पर त्रिकोणीय और करीब 20 सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला माना जा रहा है. इस तरह से सत्ता में आने की उम्मीद लगाए बैठी बीजेपी-कांग्रेस की टेंशन बढ़ गई है.बता दें कि 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 15 बागी उम्मीदवार मैदान में उतरे थे तो बीजेपी भी करीब 14 प्रत्याशी थे. कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ने वाले 11 नेता विधायक बनने में सफल रहे थे जबकि बीजेपी से बगावत करने वाले एक भी नेता न खुद विधायक बना और न ही बीजेपी के प्रत्याशी को विधायक बनने दिया. बीजेपी के बागी कैंडिडेटों के उतरने का सियासी कांग्रेस को मिला. बीजेपी से बगावत कर जिन सीटों पर बागी उतरे, उन सीटों पर कांग्रेस जीतने में सफल रही.बीजेपी को बगावत महंगी पड़ीबीजेपी ने 2018 के चुनाव में करीब 70 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे थे, जिनमें से बड़ी संख्या में बागी उम्मीदवार उतर गए थे. वसुंधरा राजे ने तमाम नेताओं को मना लिया था, लेकिन उसके बाद भी एक दर्जन से ज्यादा बागी मैदान में डटे रहे. बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले कुलदीप धनखड़, देवी सिंह शेखावत, धन सिंह रावत, हेम सिंह भड़ाना दूसरे पायदान पर रहे थे. इनकी बगावत का जहां हुई वहां भाजपा के प्रत्याशी को भी हार का सामना करना पड़ा.उदाहरण के तौर पर धन सिंह रावत बांसवाड़ा सीट पर तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन 32 हजार से ज्यादा वोट काटने की वजह से बीजेपी के हरकु माइडा चुनाव हार गए थे. जैतारण सीट से सुरेंद्र गोयल, रतनगढ़ से राजकुमार रिणवा, महुआ सीट से ओमप्रकाश हुड़ला, सागवाड़ा से अनिता कटारा, डूंगरपुर से देवेंद्र कटारा, श्री डूंगरगढ़ से किसनाराम नाई और सिकराय सीट से गीता वर्मा न खुद जीते और न ही बीजेपी उम्मीदवार को जीतने दिया.कांग्रेस के बागियों का सियासी खेलाबीजेपी के बागियों ने भले ही जीत दर्ज नहीं कर सके, लेकिन कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले 90 फीसदी से ज्यादा उम्मीदवार विधायक बनने में सफल रहे. 2018 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिला तो करीब 15 नेता बागी होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए थे. इन 15 बागियों में से 11 जीतने में सफल रहे थे. पिछले चुनाव में कुल 13 निर्दलीय विधायक बने थे, जिनमें 11 कांग्रेस के बागी जीतकर आए थे. कांग्रेस सरकार बनी तो सभी 13 निर्दलीय विधायकों का गहलोत समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे थे. इनमें से 10 को सीएम गहलोत ने इस बार कांग्रेस का टिकट भी दिलवा दिया है. यानी इस चुनाव में वे कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.2018 में कांग्रेस से राजकुमार गौड़, महादेव सिंह, बाबूलाल नागर, बलजीत यादव, खुशवीर सिंह, संयम लोढ़ा, रमीला खड़िया, लक्ष्मण मीणा, आलोक बेनीवाल और रामकेश मीणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और काफी अंतर से जीत हासिल की थी. ऐसे ही ओम प्रकाश हुडला भाजपा के बागी थे जो इस बार कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं. 2013 में कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय उतरे राजकुमार गौड़, महादेव सिंह, बाबूलाल नागर, बलजीत यादव, खुशवीर सिंह, संयम लोढ़ा, रमीला खड़िया, लक्ष्मण मीणा, आलोक बेनीवाल, रामकेश मीणा जीतने में सफल रहे.कांग्रेस के बागी मैदान में उतरेकांग्रेस के बागी राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ से मौजूदा विधायक जौहरी लाल, बसेड़ी से वर्तमान विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा, नोखा से कन्हैयालाल झंवर, लूणकरणसर से वीरेंद्र बेनीवाल, छबड़ा से नरेश मीणा, सादुलशहर से ओम बिश्नोई, सवाई माधोपुर से अजीज आजाद, नागौर से हबीबुर्रहमान, शाहपुरा से आलोक बेनीवाल और सूरसागर से रामेश्वर दाधीच समेत अन्य बागी होकर चुनाव मैदान में हैं. इस तरह से बसेड़ी से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे खिलाड़ी लाल बैरवा को सचिन पायलट का करीबी माना जाता है तो जोधपुर के मेयर रह चुके हैं रामेश्वर दाधीच सीएम अशोक गहलोत के करीबी हैं.बीजेपी के बागी बढ़ा टेंशनराजस्थान में कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी में बागियों की संख्या ज्यादा है. बीजेपी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे नेताओं में पांच पूर्व मंत्री भी हैं. बीजेपी के बागी चित्तौड़गढ़ से मौजूदा विधायक चंद्रभान सिंह आक्या, शाहपुरा (भीलवाड़ा) से विधायक कैलाश मेघवाल, झोटवाड़ा सीट से राजपाल सिंह शेखावत, डीडवाना से यूनुस खान, कामां से मदन मोहन सिंघल, खंडेला से बंशीधर बाजिया चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं.कैलाश मेघवाल, राजपाल सिंह शेखावत और यूनुस खान को वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है. इसके अलावा युवा नेता रविंद्र सिंह भाटी ने शिव सीट से निर्दलीय उतरकर ताल ठोक दी है. भाटी कुछ दिन पहले बीजेपी में शामिल हुए थे, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो बागी होकर चुनाव में कूद गए हैं. भाटी छात्र संघ का चुनाव लड़ रहे थे तब एबीवीपी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय उतरकर जीत दर्ज की थी. इस बार जब बीजेपी ने प्रत्याशी नहीं बनाया तो फिर बागी बन गए हैं.बागी क्यों बढ़ा दी चुनौतीराजस्थान में इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है. ऐसे में बागी टेंशन बढ़ा दी है, क्योंकि 2018 के चुनाव में 29 सीटें ऐसी थी, जहां हार-जीत का अंतर 1000 से 5000 वोटों के बीच था. इसमें 13 पर बीजेपी, 9 कांग्रेस, चार अन्य और 3 निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई थी. वहीं, 9 सीटें ऐसी भी थीं, जहां पर 1000 से कम वोट पर हार-जीत हुई थी. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे प्रत्याशी अगर चार से पांच हजार वोट भी हासिल करने में कामयाब रहे तो सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा?