Vikrant Shekhawat : Sep 27, 2024, 11:40 AM
India-Turkey Relation: तुर्की ने कश्मीर पर अपने पुराने राग को छोड़ते हुए एक नई दिशा में कदम बढ़ाया है। यह पहली बार है जब तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। आम तौर पर, एर्दोगन हर साल अपने संबोधन में कश्मीर मुद्दे को उठाते थे, लेकिन इस बार उनकी चुप्पी ने भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है।ताजा घटनाक्रम2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, एर्दोगन ने बार-बार कश्मीर मुद्दे पर भारत की नीति की आलोचना की थी। उन्होंने यूएनजीए में कश्मीर की स्थिति को लेकर पाकिस्तानी दृष्टिकोण को भी समर्थन दिया। लेकिन इस बार, न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस विषय पर एक शब्द भी नहीं कहा। इसके बजाय, उन्होंने ब्रिक्स के साथ संबंधों को विकसित करने की अपनी इच्छा जताई, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है।एर्दोगन का पिछले वर्षों का रिकॉर्डपिछले पांच वर्षों में, एर्दोगन कश्मीर मुद्दे पर बात करने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष रहे हैं, सिवाय पाकिस्तान के। सितंबर 2019 में, उन्होंने कहा था कि दोनों देशों को संवाद के माध्यम से विवाद को सुलझाना चाहिए। 2020 में, उन्होंने कश्मीर को दक्षिण एशिया की शांति की कुंजी बताते हुए इसके समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया। 2021 और 2022 में भी उन्होंने कश्मीर की स्थिति पर चिंता व्यक्त की और दोनों पक्षों के बीच बातचीत की आवश्यकता को बताया।तुर्की की नीतियों में बदलावएर्दोगन की चुप्पी और कश्मीर पर कोई टिप्पणी न करने का निर्णय यह संकेत देता है कि तुर्की अब कश्मीर मुद्दे पर अधिक संतुलित और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास कर रहा है। यह परिवर्तन उस समय आया है जब तुर्की ब्रिक्स का हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है। इस संदर्भ में, एर्दोगन का रूस के कजान में होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेने की योजना इस बात का संकेत है कि तुर्की अपनी विदेश नीति में एक नई दिशा में कदम रख रहा है।निष्कर्षतुर्की की इस नई नीति को भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा जा सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर तुर्की की सक्रियता में कमी आई है। एर्दोगन की चुप्पी इस बात का संकेत हो सकती है कि तुर्की भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए इच्छुक है, खासकर जब वह ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। इस बदलाव से भविष्य में भारत-तुर्की संबंधों में सुधार की संभावना को बल मिल सकता है।