AajTak : Dec 23, 2019, 06:21 PM
झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों में झारखंड का बीजेपी के हाथ से खिसकना तय दिख रहा है। जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती जा रही है, बीजेपी की पकड़ कमजोर होती जा रही है। हालांकि, यह हालत तब है जब कुछ महीने पहले पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को मई 2019 के लोकसभा चुनावों में बंपर जीत मिली। उसके बाद यह तीसरा राज्य है जहां चुनाव हुए। हरियाणा में बीजेपी की वापसी हुई लेकिन उसे जेजेपी के साथ गठबंधन करना पड़ा। दूसरी ओर महाराष्ट्र बीजेपी के हाथ से निकल गया। अब झारखंड में भी सत्ता से बाहर होना तय है।यह बात तीनों राज्यों में रही कॉमन
लोकसभा के बाद हुए तीनों विधानसभा चुनावों की बात करें तो एक बात सब जगह कॉमन नजर आती है। दरअसल, जिस राज्य में जो वोट बैंक निर्णायक हुआ करता था, बीजेपी ने उसी को साधने में चूक की। बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में जो मुख्यमंत्री चेहरा जनता के सामने पेश किया वो सबसे बड़े वोट प्रतिशत वाले समुदाय का नहीं था। बीजेपी ने हरियाणा में गैर जाट मनोहर लाल खट्टर , महाराष्ट्र में गैर मराठी देवेंद्र फडणवीस और झारखंड में गैर आदिवासी रघुवर दास को सीएम फेस चुना।
झारखंड में गैर आदिवासी सीएम
झारखंड में आदिवासी वोट हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं। पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने किसी भी चेहरे को सीएम पद के लिए घोषित नहीं किया था। बाद में चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने गैर आदिवासी चेहरे रघुवर दास को मुख्यमंत्री बना दिया। इन चुनावों में भी बीजेपी ने रघुवर दास को ही आगे कर चुनाव लड़ा। जबकि दूसरी ओर जेएमएम के हेमंत सोरेन आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। हेमंत के पिता शिबू सोरेन भी झारखंड के बड़े आदिवासी नेता हैं।जेएमएम जोर शोर से यह प्रचारित करती रही कि एक गैर आदिवासी शख्स आदिवासियों की पीड़ा को नहीं समझ सकता। वहीं, जमीन अधिग्रहण कानून और टीनेंसी एक्ट से जुड़े कुछ फैसलों की वजह से भी रघुवर दास की आदिवासी विरोधी छवि बन गई।
महाराष्ट्र में गैर मराठीमहाराष्ट्र में बीजेपी ने 2019 चुनाव में भी गैर मराठी चेहरे के तौर पर देवेन्द्र फडणवीस पर दांव खेला। फडणवीस की छवि और सरकार के काम की बदौलत बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन को जनता ने स्पष्ट बहुमत दिया। लेकिन चुनाव बाद शिवसेना ने रिश्ते टूटने और बदले राजनीतिक समीकरणों की वजह से बीजेपी सरकार बनाने में नाकाम हुई और उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उधर, बीजेपी के सत्ता के बाहर जाते ही पार्टी के अंदर का विवाद सामने आने लगा।ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखने वाले फडणवीस पर पार्टी में पिछड़ों की अनदेखी करने का आरोप लगा। बीजेपी की बड़ी नेता पंकजा मुंडे की भी फडणवीस से नाराजगी की खबरें सामने आ चुकी हैं। बीजेपी नेता एकनाथ खडसे भी फडणवीस के खिलाफ बागी सुर अपनाते नजर आए।
हरियाणा में गैर जाट
हरियाणा में जाट वोट निर्णायक रहता है। यहां भी बीजेपी ने जाटों की भारी नाराजगी के बावजूद मनोहर लाल खट्टर को ही दूसरी बार मुख्यमंत्री चेहरा बनाया। चुनाव परिणामों में बीजेपी की यह गलती साफ नजर आई और बीजेपी के विधायकों की संख्या 40 के पार नहीं जा सकी। हालांकि बाद में बीजेपी राज्य में सरकार बनाने में सफल रही क्योंकि उसे जननायक जनता पार्टी ने समर्थन किया।
लोकसभा के बाद हुए तीनों विधानसभा चुनावों की बात करें तो एक बात सब जगह कॉमन नजर आती है। दरअसल, जिस राज्य में जो वोट बैंक निर्णायक हुआ करता था, बीजेपी ने उसी को साधने में चूक की। बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में जो मुख्यमंत्री चेहरा जनता के सामने पेश किया वो सबसे बड़े वोट प्रतिशत वाले समुदाय का नहीं था। बीजेपी ने हरियाणा में गैर जाट मनोहर लाल खट्टर , महाराष्ट्र में गैर मराठी देवेंद्र फडणवीस और झारखंड में गैर आदिवासी रघुवर दास को सीएम फेस चुना।
झारखंड में गैर आदिवासी सीएम
झारखंड में आदिवासी वोट हमेशा से ही निर्णायक भूमिका में रहे हैं। पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने किसी भी चेहरे को सीएम पद के लिए घोषित नहीं किया था। बाद में चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने गैर आदिवासी चेहरे रघुवर दास को मुख्यमंत्री बना दिया। इन चुनावों में भी बीजेपी ने रघुवर दास को ही आगे कर चुनाव लड़ा। जबकि दूसरी ओर जेएमएम के हेमंत सोरेन आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। हेमंत के पिता शिबू सोरेन भी झारखंड के बड़े आदिवासी नेता हैं।जेएमएम जोर शोर से यह प्रचारित करती रही कि एक गैर आदिवासी शख्स आदिवासियों की पीड़ा को नहीं समझ सकता। वहीं, जमीन अधिग्रहण कानून और टीनेंसी एक्ट से जुड़े कुछ फैसलों की वजह से भी रघुवर दास की आदिवासी विरोधी छवि बन गई।
महाराष्ट्र में गैर मराठीमहाराष्ट्र में बीजेपी ने 2019 चुनाव में भी गैर मराठी चेहरे के तौर पर देवेन्द्र फडणवीस पर दांव खेला। फडणवीस की छवि और सरकार के काम की बदौलत बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन को जनता ने स्पष्ट बहुमत दिया। लेकिन चुनाव बाद शिवसेना ने रिश्ते टूटने और बदले राजनीतिक समीकरणों की वजह से बीजेपी सरकार बनाने में नाकाम हुई और उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उधर, बीजेपी के सत्ता के बाहर जाते ही पार्टी के अंदर का विवाद सामने आने लगा।ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखने वाले फडणवीस पर पार्टी में पिछड़ों की अनदेखी करने का आरोप लगा। बीजेपी की बड़ी नेता पंकजा मुंडे की भी फडणवीस से नाराजगी की खबरें सामने आ चुकी हैं। बीजेपी नेता एकनाथ खडसे भी फडणवीस के खिलाफ बागी सुर अपनाते नजर आए।
हरियाणा में गैर जाट
हरियाणा में जाट वोट निर्णायक रहता है। यहां भी बीजेपी ने जाटों की भारी नाराजगी के बावजूद मनोहर लाल खट्टर को ही दूसरी बार मुख्यमंत्री चेहरा बनाया। चुनाव परिणामों में बीजेपी की यह गलती साफ नजर आई और बीजेपी के विधायकों की संख्या 40 के पार नहीं जा सकी। हालांकि बाद में बीजेपी राज्य में सरकार बनाने में सफल रही क्योंकि उसे जननायक जनता पार्टी ने समर्थन किया।