वैक्सीन / ब्रिटेन में 12-15 साल के बच्चों के लिए फाइज़र की कोविड-19 वैक्सीन के इस्तेमाल को मंज़ूरी

ब्रिटेन के दवा नियामकों ने शुक्रवार को कहा कि गहन समीक्षा के बाद उसने फाइज़र व बायोएनटेक द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन को 12-15 साल तक के बच्चों पर इस्तेमाल को मंज़ूरी दे दी है। बकौल नियामक, अब यह देश की टीकाकरण व प्रतिरक्षण की संयुक्त समिति पर निर्भर करेगा कि वह इस आयु वर्ग को टीका लगाना चाहेगी या नहीं।

Vikrant Shekhawat : Jun 04, 2021, 06:42 PM
लंदन: ब्रिटेन के रेगुलेटर ने फाइजर-बायोएनटेक की तरफ से तैयार की गई कोरोना वैक्सीन को 12 से 15 साल के किशोर आयुवर्ग को लगाने की मंजूरी दे दी है. ब्रिटेन के दवा नियामक ने शुक्रवार को कहा कि काफी गहन समीक्षा के बाद यह पाया गया कि फाइजर-बायोटेकी की वैक्सीन 12-15 साल के किशोर के लिए सुरक्षित है. इसी तरह का आकलन अमेरिकी और यूरोपीय यूनियन की तरफ से भी फाइजर की वैक्सीन के लिए किया गया था.

गौरतलब है कि यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए) ने फाइजर और बायोएनटेक की ओर से विकसित कोरोना वायरस रोधी टीकों को 12 से 15 साल तक के बच्चों को लगाये जाने की पिछले महीने ही सिफारिश की थी. फाइजर-बायोएनटेक के टीके को 27 देशों के यूरोपीय संघ में सबसे पहले मंजूरी मिली थी और दिसंबर में 16 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों को लगाने के लिए इसे लाइसेंस प्रदान किया गया था.

टीके की समीक्षा करने वाली EMA के प्रमुख मार्को कावलेरी ने कहा था- ‘‘एक सुरक्षित और प्रभावी टीके की सुरक्षा किशोर आबादी को प्रदान करना महामारी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है.’’ उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के नियामक को बच्चों और किशोरों के लिए टीके के इस्तेमाल को मंजूरी देने के लिए आवश्यक आंकड़े मिले थे और उन्होंने इसे कोविड-19 के खिलाफ अत्यंत प्रभावशाली पाया है.

अमेरिका में 2,000 किशोरों पर एक अध्ययन किया गया और परिणाम सामने आये. उन्होंने कहा था- ‘‘टीका काफी सुरक्षित पाया गया और इस आयुवर्ग में भी टीके के दुष्प्रभाव वैसे ही थे जैसे कम उम्र के वयस्कों में देखे गये और कोई चिंता की बात नजर नहीं आई.’’ उन्होंने बताया कि इस फैसले पर यूरोपीय आयोग की मुहर लगना जरूरी है और अलग-अलग देशों के नियामकों को तय करना होगा कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों को टीका लगाया जाएगा या नहीं.

इससे पहले कनाडा और अमेरिका के नियामकों ने पिछले अप्रैल में इसी तरह का फैसला किया था. विकसित देश अपनी अधिक से अधिक आबादी को टीका लगाने की दिशा में काम कर रहे हैं. अनुसंधानकर्ता अगले दो साल तक बच्चों में टीके के दीर्घकालिक प्रभाव पर नजर रखेंगे.