ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन गुरुवार (21 अप्रैल) से दो दिनों के दौरे पर भारत आ रहे हैं। रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ जारी हमलों के बीच जॉनसन का यह दौरा अपने आप में काफी अहम हो जाता है। खासकर ऐसे समय जब अमेरिका, ब्रिटेन के साथ यूरोपीय देश भी भारत से रूस के साथ व्यापार न करने की मांग उठा रहे हैं। ऐसे में जॉनसन के इस दौरे की अहमियत अपने आप बढ़ जाती है। जूम न्यूज को मिली जानकारी के मुताबिक, जॉनसन इस दौरे में भारत को रूस से हथियार या तेल खरीद कम करने को लेकर किसी तरह का भाषण नहीं देंगे। हालांकि, वे मोदी सरकार को रूसी उत्पादों के विकल्पों को लेकर प्रस्ताव जरूर दे सकते हैं। ऐसे में जूम न्यूज आपको बता रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा के क्या मायने हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात में किन अहम मुद्दों को लेकर चर्चा हो सकती है। इसके अलावा आखिर दोनों नेता किस तरह व्यापार समझौते से लेकर रूसी उत्पादों के विकल्प को लेकर अहम चर्चा कर सकते हैं। पहले जानें- दोनों नेताओं के बीच किन मुद्दों पर होगी बातचीत?बोरिस जॉनसन के प्रवक्ता के मुताबिक, दोनों नेताओं के बीच बातचीत का केंद्रीय मुद्दा मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) होगा। इसके अलावा दोनों नेता हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर भी चर्चा करेंगे। बताया गया है कि मोदी और जॉनसन जलवायु परिवर्तन को लेकर भी समझौते पर पहुंच सकते हैं। शिक्षा-नौकरियों के अलावा निवेश को लेकर भी ब्रिटिश पीएम की तरफ से बड़ा एलान आ सकता है। क्या ब्रिटेन को रूस के विकल्प के तौर पर पेश कर पाएंगे जॉनसन?रूस-यूक्रेन के युद्ध के बीच पश्चिमी देश लगातार भारत से अपील करते रहे हैं कि वह रूस से व्यापार संबंधों को तोड़े और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कार्रवाई की निंदा करे। इसके अलावा हालांकि, भारत ने अब तक अपना स्थिर रुख बरकरार रखा है। भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह रूस से अपने सालों पुराने रिश्तों को यूरोप के गुस्से की वजह से दांव पर नहीं लगा सकता। मौजूदा समय में भारत की तीनों सेनाएं और हथियार उद्योग रूस पर 50-60 फीसदी तक निर्भर है। इसके अलावा तेल को लेकर भी भारत कुछ हद तक रूस पर निर्भर है। ऐसे में जॉनसन इन दोनों क्षेत्रों में रूस को भारत के साझेदार के तौर पर हटाने के लिए बातचीत कर सकता है। 1. रक्षा जरूरतों के क्षेत्र मेंहालांकि, इस क्षेत्र में भी ब्रिटेन की मुसीबतें काफी ज्यादा हैं। दरअसल, भारत सरकार पहले ही साफ कर चुका है कि वह आने वाले समय में किसी भी देश से आयात बढ़ाने के बजाय मेक इन इंडिया के तहत घरेलू उत्पादन पर ही जोर देगा। ऐसे में ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारत को लुभाने के लिए साझा परियोजनाओं पर समझौता कर सकते हैं। पॉलिटिको को दिए इंटरव्यू में कंसल्टेंसी फर्म आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराना ने कहा कि भारत और ब्रिटेन के रक्षा समझौते आगे बढ़ेंगे, लेकिन भारत यही चाहेगा कि उसकी ज्यादातर रक्षा जरूरतों का निर्माण भारत में ही हो। ऐसे में बोरिस जॉनसन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर ही भारत के साथ रक्षा समझौतों का एलान कर सकते हैं। 2. ऊर्जा जरूरतों परबोरिस जॉनसन और मोदी की मुलाकात का मुख्य मुद्दा सुरक्षा ही रहने वाला है। लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रूस से व्यापार के मुद्दे पर भी जोर देने की कोशिश करेंगे। हालांकि, इस क्षेत्र में खुद ब्रिटेन ही मुसीबत में है। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक रूस ही ब्रिटेन का सबसे बड़ा तेल सप्लायर था। दर्जनों प्रतिबंधों के बावजूद यूरोप अब तक रूस का सबसे बड़े तेल आयातकों में शामिल है। ऐसे में जॉनसन की ओर से यह मांग कि भारत तेल के लिए रूस पर निर्भरता कम करे, इसका उल्टा असर भी हो सकता है। माना जा रहा है कि जॉनसन इस मुद्दे पर सतर्कता के साथ उठाएंगे।3. व्यापार मुद्दे पर ब्रिटेन भी भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में तेजी लाना चाहता है। ईयू से बाहर होने के बाद ब्रिटेन भारत के साथ जल्दी से जल्दी ट्रेड एग्रीमेंट करना चाहता है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के एजेंडे में एफटीए टॉप पर है। अगर भारत और ब्रिटेन के बीच एफटीए होता है तो दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 2035 तक 28 अरब पाउंड तक पहुंच सकता है।भारत और ब्रिटेन के बीच एफटीए पर तीसरे दौर 25 अप्रैल से भारत में होगी। फरवरी में दूसरे दौर की बातचीत में दोनों पक्षों ने एक दूसरे के साथ मसौदा साझा किया था। दोनों देशों ने इसी साल 13 जनवरी को एफटीए पर औपचारिक बातचीत शुरू की थी। द्वपक्षीय व्यापार को साल 2030 तक 100 अरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। अभी यह 50 अरब डॉलर है। इसमें 35 अरब डॉलर की सर्विसेज और 15 अरब डॉलर के उत्पाद शामिल है। दोनों देशों के बीच वीजा, कृषि, डेयरी और शराब खासकर स्कॉच पर ड्यूटी जैसे मुद्दों पर विवाद है। गौरतलब है कि इस सदी की शुरुआत में ब्रिटेन भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। हालांकि, पिछले साल तक ब्रिटेन व्यापार में 17वें स्थान तक खिसक चुका है। 4. शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र मेंब्रिटेन और भारत के प्रधानमंत्री आवाजाही साझेदारी समझौते पर भी बात हो सकती है। कुछ महीनों पहले ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयंशकर और उनकी समकक्ष प्रीति पटेल के बीच इस मुद्दे पर बात हुई थी। दोनों देशों के करीब 3000 विद्यार्थियों और पेशेवरों को एक साल का वीजा देने का प्रावधान है, ताकि वे दोनों देशों में काम का अनुभव हासिल कर सकें। तब इस करार के तहत दोनों पक्ष वीजा की नई प्रणाली को अप्रैल 2022 तक लागू करने पर सहमत हुए थे। इसके अलावा दोनों देश एक और आव्रजन योजना पर भी काम चल रहा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के साथ ब्रिटेन के एफटीए की तरह प्रावधान हो सकते हैं। इससे युवा भारतीयों को ब्रिटेन में तीन साल तक रहने व काम करने का मौका मिल सकता है। एक अन्य विकल्प छात्रों के लिए वीजा शुल्क में कटौती करने का होगा। इससे उन्हें ग्रेजुएट होने के बाद कुछ समय के लिए ब्रिटेन में रहने की अनुमति मिल जाएगी। वर्क और टूरिज्म वीजा की फीस में भी कटौती हो सकती है। वर्तमान में किसी भारतीय नागरिक को वर्क वीजा के लिए 1400 ब्रिटिश पाउंड (1.41 लाख रुपये से ज्यादा) खर्च करने पड़ते हैं, जबकि विद्यार्थियों को 348 पाउंड (35 हजार रुपये) और पर्यटकों को 95 पाउंड (9500 रुपये से अधिक) खर्च करने पड़ते हैं। यह दरें चीन के लिए वीजा फीस की तुलना में बहुत अधिक हैं। चीनी नागरिकों को ब्रिटिश वीजा पाने के लिए बहुत कम पैसा देना होता है। भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद करण बिलिमोरिया भारतीयों के लिए वीजा फीस कम करने की पुरजोर मांग उठा रहे हैं। वह कॉन्फेडरेशन आफ ब्रिटिश इंडस्ट्री के अध्यक्ष हैं।