Vikrant Shekhawat : Sep 13, 2021, 01:37 PM
काबुल: अफगानिस्तान में 20 सालों तक अमेरिका और नाटो बलों ने तालिबान एवं अन्य आतंकवादी संगठनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। अमेरिका के हमलों एवं अभियानों के दौरान तालिबान के कई बड़े सरगना या तो मारे गए या पकड़े गए। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो 20 वर्षों तक अमेरिका को चकमा देने में कामयाब भी हुए। इन्हीं में से एक हैं अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद। 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' से खास बातचीत में मुजाहिद ने बताया है कि वह कैसे अमेरिका को चकमा देते रहे और उसके अभियानों से बचते रहे।'अमेरिका मानता था कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है'उन्होंने कहा, 'अमेरिका और अफगान सेना के लोग ऐसा सोचते थे कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। मैं उनके अभियानों से कई बार बचा। उन्होंने मुझे पकड़ने के कई प्रयास किए। बाद में वे गंभीरता से मानने लगे कि जबीउल्लाह नाम का कोई व्यक्ति नहीं है, इसे गढ़ा गया है। वे मानने लगे थे कि जबीउल्लाह नाम का कोई व्यक्ति अस्तित्व में नहीं है।'मैं उनके नाक के नीचे काबुल में रहा-जबीउल्लाहजबीउल्लाह ने आगे कहा, 'उनके अभियानों के बावजूद मैं अफगानिस्तान में बिना रोक-टोक के धूमता रहा। मुझे लगा कि अमेरिका का यह सोचना कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, मेरी मदद की। मैं वर्षों तक अमेरिका एवं नाटो बलों के नाक के नीचे काबुल में रहा। मैं अफगानिस्तान में चारो तरफ गया। मैं तालिबान के उन मोर्चों तक गया जहां वे अपनी तैयारी करते थे।''अफगानिस्तान छोड़ने का ख्याल कभी नहीं आया'रिपोर्ट के मुताबिक जबीउल्लाह का दावा है कि अमेरिकी और अफगान सेना उन्हें पकड़ने के लिए लगातार दबिश देती थीं लेकिन अफगानिस्तान छोड़ने का उनके मन में कभी ख्याल नहीं आया। प्रवक्ता ने कहा कि उनके बारे में और उनके ठिकानों के बारे में जानकारी पाने के लिए अमेरिकी सेना स्थानीय नागरिकों को पैसे देती थी। वे उन्हें पकड़ने के लिए लगातार अभियान चलाते थे, बावजूद इसके अफगानिस्तान छोड़ने का कभी उनके मन में विचार नहीं आया। उन्होंने बताया कि तालिबान जैसे जैसे अपने अभियान पर आगे बढ़ा उसे लोगों का समर्थन मिलता गया। 'छह महीने की जेल की सजा काट चुके हैं जबीउल्लाह'अपने निजी जीवन के बारे में बताते हुए जबीउल्लाह ने कहा कि उनका पकिता प्रांत के गार्देज जिले में जन्म हुआ। उन्होंने कहा, 'मेरा जन्म 1978 के आस-पास हुआ। अभी मेरी उम्र 43 साल है।' जबीउल्लाह का कहना है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल में हुई। इसके बाद उनकी पढ़ाई मदरसा में होने लगी। उन्होंने बताया कि जब वह किशोर थे तभी उन्होंने अमेरिका के खिलाफ बंदूक उठा ली। उन्होंने देश में कई जगहों पर विदेशी बलों से लड़ाई लड़ी। मेहसुद इलाके में उन्हें छह महीने की सजा भी हुई।