Afghanistan News: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दो वर्षों में महिलाओं के अधिकारों पर एक के बाद एक पाबंदियां लगाई जा रही हैं। शिक्षा, रोजगार, और सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी लगभग समाप्त कर दी गई है। महिलाओं पर लगाए गए कठोर प्रतिबंधों में अब तालिबान ने एक और तुगलकी फरमान जारी कर दिया है। इस बार, यह फरमान महिलाओं को रोजगार देने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) पर केंद्रित है।
महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध
तालिबान ने अफगानिस्तान में उन सभी राष्ट्रीय और विदेशी गैर-सरकारी संगठनों को बंद करने की धमकी दी है जो महिलाओं को रोजगार देते हैं। दो साल पहले, तालिबान ने महिलाओं को एनजीओ में काम करने से रोक दिया था, और अब इस आदेश का पालन न करने पर संगठनों का लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी दी गई है।तालिबान का दावा है कि यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि महिलाएं इस्लामी हिजाब सही तरीके से नहीं पहन रही हैं। यह फरमान उन महिलाओं के लिए एक और झटका है, जो पहले से ही शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित हैं।
लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी
तालिबान के वित्त मंत्रालय ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर यह चेतावनी दी कि आदेश का उल्लंघन करने पर संगठनों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि वह अफगानिस्तान में काम कर रहे एनजीओ की गतिविधियों पर पूरी तरह से नजर रखेगा।सभी एनजीओ को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि आदेश का पालन न करने पर उनकी सभी गतिविधियां रद्द कर दी जाएंगी। यह कदम तालिबान के बढ़ते हस्तक्षेप और संस्थानों पर नियंत्रण को दर्शाता है।
शिक्षा और सार्वजनिक स्थानों पर भी पाबंदी
तालिबान ने पहले ही महिलाओं को छठी कक्षा से आगे की शिक्षा प्राप्त करने से रोक दिया है। महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर नौकरी करने, घर से अकेले बाहर निकलने, और यहां तक कि अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी से भी वंचित किया गया है।एक और नए आदेश में, तालिबान ने कहा है कि ऐसी इमारतों में खिड़कियां नहीं होनी चाहिए जहां महिलाएं बैठ या खड़ी हो सकती हों। यह आदेश नई इमारतों और मौजूदा इमारतों दोनों पर लागू होगा। नगर पालिकाओं को इन आदेशों का सख्ती से पालन कराने का निर्देश दिया गया है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन तालिबान की इन नीतियों को महिलाओं के अधिकारों का घोर उल्लंघन मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी टॉम फ्लेचर ने बताया कि मानवीय संगठनों को अपना काम करने में बाधाएं झेलनी पड़ रही हैं।हालांकि, तालिबान इन आरोपों को खारिज करता रहा है और दावा करता है कि वह सहायता एजेंसियों के काम में हस्तक्षेप नहीं कर रहा। लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है।
महिलाओं के अधिकारों का हनन
तालिबान के इस नए आदेश ने अफगान महिलाओं को और भी अधिक संकट में डाल दिया है। शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी खत्म होने के साथ-साथ अब उनकी सुरक्षा और स्वतंत्रता भी खतरे में है।
निष्कर्ष
अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों का लगातार हनन न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय मूल्यों को चुनौती देता है। तालिबान की नीतियां न केवल महिलाओं के भविष्य को अंधकारमय बना रही हैं, बल्कि अफगानिस्तान को सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर भी कर रही हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।