Ratan Tata News / रतन टाटा क्या सोचते थे नोएल टाटा के बारे में, बुक में हुआ बड़ा खुलासा

दिवंगत रतन टाटा ने अपने सौतेले भाई नोएल टाटा को उत्तराधिकारी बनने के लिए और अनुभव की आवश्यकता समझी। एक हालिया किताब में बताया गया है कि रतन ने 2011 में चयन समिति से दूरी बनाते हुए माना कि नोएल को शीर्ष पद के लिए अधिक अनुभव चाहिए था।

Vikrant Shekhawat : Oct 28, 2024, 11:40 AM
Ratan Tata News: लंबे समय तक टाटा संस की अगुवाई करने वाले दिवंगत रतन टाटा ने अपने सौतेले भाई नोएल टाटा को उत्तराधिकारी बनाने के मामले में गंभीरता से विचार किया था। हाल ही में जारी एक जीवनी, "रतन टाटा: ए लाइफ" में इस विषय पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें रतन टाटा की सोच और उनके उत्तराधिकार की प्रक्रिया को समझने की कोशिश की गई है। नोएल टाटा को हाल ही में रतन टाटा की मृत्यु के बाद टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया है, जो अप्रत्यक्ष रूप से 165 अरब अमेरिकी डॉलर के टाटा ग्रुप को नियंत्रित करता है।

उत्तराधिकारी की तलाश

2011 में, जब रतन टाटा अपने उत्तराधिकारी की तलाश में थे, तो नोएल टाटा भी इस प्रक्रिया में शामिल थे। रतन टाटा ने चयन समिति से दूरी बनाने का निर्णय लिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी निर्णय सामूहिक रूप से और सर्वसम्मति से लिया जाए। उनकी जीवनी में इस निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि रतन टाटा को बाद में इस फैसले पर पछतावा हुआ, यह दर्शाता है कि उत्तराधिकार की प्रक्रिया उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी।

रतन टाटा की दृष्टि

किताब में खुलासा किया गया है कि रतन टाटा ने इस प्रक्रिया में व्यक्तिगत कारणों के चलते चयन समिति से दूरी बनाई। टाटा ग्रुप में कई पारिवारिक और सामुदायिक उम्मीदवार थे, और रतन टाटा नहीं चाहते थे कि कोई व्यक्ति उन्हें विशेष रूप से अपनी ओर आकर्षित करे। नोएल टाटा को समुदाय में एक स्वाभाविक उम्मीदवार माना गया, लेकिन रतन टाटा के लिए केवल प्रतिभा और मूल्य ही मायने रखते थे।

रतन टाटा की सोच में यह स्पष्ट था कि उनके सौतेले भाई को शीर्ष पद के लिए और अधिक अनुभव की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि उनका कोई पुत्र होता, तो वह भी कुछ ऐसा करते कि उन्हें अपने आप उत्तराधिकारी नहीं माना जाए। यह उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है कि वे केवल पारिवारिक संबंधों के आधार पर किसी को भी जिम्मेदारी नहीं सौंपना चाहते थे।

चुनौतियों का सामना

किताब में यह भी बताया गया है कि रतन टाटा को पारसियों और समुदाय के परंपरावादियों की ओर से दबाव का सामना करना पड़ा। रतन टाटा की सोच इस बात की साक्षी है कि उन्होंने अपने सौतेले भाई को न चुनने की स्थिति में उनकी छवि को प्रभावित नहीं करना चाहा। उनका मानना था कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसके गुणों और क्षमताओं के आधार पर आंका जाना चाहिए, न कि पारिवारिक संबंधों के आधार पर।

निष्कर्ष

रतन टाटा और नोएल टाटा की कहानी न केवल एक परिवार की जटिलताओं का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि यह व्यापारिक दुनिया में उत्तराधिकार की चुनौतियों को भी उजागर करती है। रतन टाटा की दूरदर्शिता और निर्णय लेने की प्रक्रिया यह दर्शाती है कि व्यवसाय की दुनिया में सफल होने के लिए व्यक्तिगत प्रतिभा और अनुभव कितना महत्वपूर्ण होता है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि परिवारिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेना कभी-कभी बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है।