UP By-Election: उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस एक बार फिर साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं। सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला भी तय हो चुका है। यूपी की 9 विधानसभा सीटों में से सपा सात सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस को अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद की दो सीटें दी गई हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं, और 2024 के लोकसभा चुनाव की तरह ही सपा ने कांग्रेस को इन दोनों टफ सीटों पर अपनी किस्मत आजमाने का मौका दिया है।
सपा-कांग्रेस की सीट शेयरिंग
सपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी ने बताया कि कांग्रेस को गाजियाबाद और खैर सीट दी गई है, जबकि बाकी सीटों पर सपा अपने उम्मीदवार उतारेगी। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के लिए चुनौती काफी कठिन मानी जा रही है, क्योंकि खैर सीट पर कांग्रेस पिछले 44 वर्षों से जीत नहीं दर्ज कर पाई है, जबकि गाजियाबाद सीट पर 22 सालों से कांग्रेस का कोई दबदबा नहीं रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि कांग्रेस इस उपचुनाव में आखिर क्या हासिल करना चाहती है?
10 विधानसभा सीटें खाली हुईं
इस उपचुनाव की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि लोकसभा चुनाव में 9 विधायकों के सांसद बनने के बाद और सीसामऊ सीट से विधायक इरफान सोलंकी को सजा मिलने के कारण 10 विधानसभा सीटें खाली हुईं। कांग्रेस ने उपचुनाव में पांच सीटों की मांग की थी, जिनमें गाजियाबाद, मझवां, मिल्कीपुर, खैर और फूलपुर शामिल थीं। लेकिन सपा और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई, और अंततः कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिलीं।
कांग्रेस के सामने कठिन चुनौती
खैर और गाजियाबाद, दोनों ही सीटें कांग्रेस के लिए अत्यंत कठिन मानी जा रही हैं। खैर विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने आखिरी बार 1980 में जीत दर्ज की थी, जबकि गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस को 2002 के बाद से जीत नहीं मिली है। 2022 के विधानसभा चुनाव में गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को केवल 11,818 वोट मिले थे, जो कि बेहद कम थे। वहीं खैर सीट पर भी कांग्रेस को 2022 में सिर्फ 1,514 वोट ही मिले थे, जो कांग्रेस के लिए इस सीट पर स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है।
बीजेपी की मजबूत पकड़
गाजियाबाद विधानसभा सीट पर अब तक 18 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस ने केवल पांच बार ही जीत दर्ज की है। वहीं सपा ने इस सीट पर केवल एक बार, 2004 के उपचुनाव में जीत हासिल की थी। 2017 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है। इसी तरह खैर सीट पर भी बीजेपी का लंबे समय से वर्चस्व बना हुआ है। जातीय और सियासी समीकरणों के अनुसार, खैर और गाजियाबाद, दोनों ही सीटों पर कांग्रेस को कोई खास समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं है। सपा का यादव वोट बैंक भी इन सीटों पर सीमित है, जिससे कांग्रेस के लिए चुनौती और कठिन हो जाती है।
क्या कांग्रेस करेगी उलटफेर?
सवाल यह है कि कांग्रेस इन दो टफ सीटों पर चुनाव लड़कर क्या हासिल करना चाहती है? गाजियाबाद और खैर सीट पर बीजेपी का कड़ा मुकाबला है, और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के लिए इन सीटों पर जीत दर्ज करना बेहद कठिन होगा। सपा के समर्थन से कांग्रेस के पास थोड़ी संभावना जरूर है, लेकिन जातीय समीकरण और कांग्रेस का कमजोर वोट बैंक उसके लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पेश करते हैं।
बीजेपी-आरएलडी गठबंधन का प्रभाव
उपचुनाव में बीजेपी और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) का गठबंधन भी कांग्रेस के लिए एक बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। जाट समुदाय के वोटों का झुकाव आरएलडी के साथ होने के कारण, बीजेपी गठबंधन का पलड़ा भारी दिखाई देता है। पिछले तीन चुनावों से बीजेपी की लगातार जीत ने उसकी राजनीतिक पकड़ को और मजबूत किया है।
कांग्रेस के लिए आगे की राह
कुल मिलाकर, कांग्रेस के लिए उपचुनाव की ये दोनों सीटें राजनीतिक दृष्टि से एक कठिन परीक्षा साबित होने जा रही हैं। कांग्रेस के पास न तो मजबूत वोट बैंक है और न ही पिछले चुनावों में कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन। ऐसे में कांग्रेस का उद्देश्य उपचुनाव में कुछ खास राजनीतिक लाभ उठाने के बजाय अपनी उपस्थिति दर्ज कराना और भविष्य की रणनीति के लिए अनुभव हासिल करना हो सकता है।