By elections: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की बिसात बिछ चुकी है। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने करहल सीट पर अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में तेज प्रताप यादव को उतारा है। जातिगत गणित और पिछले चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड के अनुसार, करहल की सियासत सपा के अनुकूल रही है, जबकि विपक्ष के लिए यह चुनौतीपूर्ण रहा है। ऐसे में अखिलेश ने 2022 में करहल को अपनी कर्मभूमि बना दिया था और अब अपने भतीजे पर भरोसा जताया है। दूसरी तरफ, बीजेपी ने करहल में कमल खिलाने के लिए अनुजेश प्रताप यादव को टिकट दिया है, और इस तरह से वह 22 साल पुराने फॉर्मूले का दांव चला रही है।
करहल सीट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
करहल विधानसभा सीट का सियासी वजूद 1956 में परिसीमन के बाद शुरू हुआ था। यह सीट यादव बहुल है, और यादव समाज से ज्यादातर विधायक चुने जाते रहे हैं। सपा के गठन के बाद से ही करहल सीट पर सपा का एकछत्र राज कायम रहा है। सपा ने 1993 से लगातार यह सीट जीती है, केवल 2002 में बीजेपी के सोबरन यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
सपा का मजबूत गढ़
करहल सीट पर सपा का दबदबा सालों से कायम है। मुलायम सिंह यादव के सियासी वर्चस्व के चलते इस सीट पर सपा की जीत की उम्मीदें हमेशा ऊँची रही हैं। सपा के गठन से पहले भी मुलायम सिंह के करीबी नेता करहल सीट से जीतते रहे हैं। अब, उपचुनाव में सपा ने तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाकर एक बार फिर से अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।
बीजेपी का यादव बनाम यादव दांव
बीजेपी ने 2002 में सपा के यादव प्रत्याशी के खिलाफ अपने यादव प्रत्याशी को उतारकर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। अब एक बार फिर, बीजेपी ने उसी तर्ज पर अनुजेश प्रताप यादव को उतारकर यादव वोटों में सेंधमारी करने का प्रयास किया है। अनुजेश, धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई हैं और बीजेपी की उम्मीद है कि इससे उन्हें यादव वोट हासिल करने में मदद मिलेगी।
जातिगत समीकरण का महत्व
करहल सीट पर करीब सवा तीन लाख मतदाता हैं, जिनमें यादव मतदाता सबसे अधिक हैं। इसके बाद दलित, शाक्य, और ठाकुर मतदाता भी महत्वपूर्ण हैं। सपा, यादव, शाक्य, और मुस्लिम वोटों के समीकरण पर निर्भर है, जबकि बीजेपी का प्रयास सवर्ण, ठाकुर और बघेल मतदाताओं को साधने का है। इस उपचुनाव में जातिगत समीकरण निर्णायक साबित हो सकते हैं।
चुनावी नतीजों का इंतजार
करहल उपचुनाव में सपा और बीजेपी के बीच मुकाबला बेहद रोचक होने वाला है। सपा तेज प्रताप के माध्यम से अपनी जीत बनाए रखना चाहती है, जबकि बीजेपी 2002 की तरह कमल खिलाने की कोशिश में है। देखना यह है कि इस बार चुनावी मैदान में कौन सी पार्टी जीत हासिल कर पाती है, और क्या सपा अपने गढ़ को बचाने में सफल हो पाती है या बीजेपी इतिहास दोहराने में कामयाब होती है।