COVID-19 Update / कोरोना की ऐसी दवाओं से बड़ा खतरा, WHO भी जता चुका टेंशन

कोविड-19 महामारी के खिलाफ इस्‍तेमाल हो रहीं कुछ दवाएं अलग खतरा पैदा कर सकती हैं। ताजा रिसर्च बताती है कि इलाज में ऐंटीबायोटिक्‍स का खूब इस्‍तेमाल हो रहा है। एशिया में हुई स्‍टडी के मुताबिक, 70% से ज्‍यादा मरीजों को ऐंटीमाइक्रोबि‍यल ट्रीटमेंट दिया गया जबकि 10% से भी कम में बैक्‍टीरियल या फंगल इन्‍फेक्‍शन था

NavBharat Times : Jul 18, 2020, 10:24 AM
Covid19: कोविड-19 महामारी के खिलाफ इस्‍तेमाल हो रहीं कुछ दवाएं अलग खतरा पैदा कर सकती हैं। ताजा रिसर्च बताती है कि इलाज में ऐंटीबायोटिक्‍स का खूब इस्‍तेमाल हो रहा है। एशिया में हुई स्‍टडी के मुताबिक, 70% से ज्‍यादा मरीजों को ऐंटीमाइक्रोबि‍यल ट्रीटमेंट दिया गया जबकि 10% से भी कम में बैक्‍टीरियल या फंगल इन्‍फेक्‍शन था। पता चला कि ऐसी ऐंटीबायोटिक्‍स दी जा रही हैं जो कई तरह के बैक्‍टीरिया को मारती है। ऐंटीबायोटिक्‍स के इतने ज्‍यादा इस्‍तेमाल से चिंतित कई साइंटिफिक जर्नल्‍स में एक्‍सपर्ट्स ने एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस यानी AMR की चेतावनी दी है। आखिर यह AMR क्‍या है और क्‍यों साइंटिस्‍ट इसे इतना बड़ा खतरा बता रहे हैं?

हर साल 7 लाख लोग होते हैं AMR के शिकार

वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑगनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, मरीज अस्‍पताल में भर्ती किया जाए तो उसे बैक्‍टीरियल को-इन्‍फेक्‍शन संभव है। ऐसे में उसे ऐंटीबायोटिक्‍स की जरूरत पड़ेगी। मगर ऐंटीबायोटिक्‍स के इस्‍तेमाल से एक दिक्‍कत होती है जिसे ऐंटीमाइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस (AMR) कहते हैं। हर साल सात लाख से ज्‍यादा इसकी वजह से मारे जाते हैं। WHO ने भी ऐंटीबायोटिक्‍स ज्‍यादा यूज करने को लेकर चेतावनी देते हुए कहा था कि इससे संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।


क्‍या है ऐंटीमाइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस?

WHO के मुताबिक, बैक्‍टीरिया, पैरासाइट्स, वायरस और फंजाई से होने वाले इन्‍फेक्‍शंस के इलाज में ऐंटीमाइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस (AMR) रुकावट पैदा करता है। ये तब होता है जब ऐंटीमाइक्रोबियल ड्रग्‍स दिए जाने पर माइक्रोऑर्गनिज्‍म्‍स (क्‍टीरिया, पैरासाइट्स, वायरस, फंजाई आदि) बदल जाते हैं। जो ऑर्गनिज्‍म्‍स बदल जाते हैं, वो सुपरबग्‍स कहलाते हैं। नतीजा ये होता है कि दवाएं बेअसर हो जाती हैं और शरीर में इन्‍फेक्‍शन बना रहता है और दूसरों में फैलने का खतरा भी।


कोविड-19 के इलाज में क्‍यों AMR से दिक्‍कत?

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की गाइडलाइंस के अनुसार, क्लिनिकल डायग्‍नोसिस के बाद ही ऐंटीबायोटिक ट्रीटमेंट शुरू किया जाना चाहिए। दरअसल, गंभीर मामलों में Covid-19 से निमोनिया हो सकता है। और उसके इलाज के लिए ऐंटीबायोटिक्‍स देना जरूरी है। अगर किसी ऐंटीबायोटिक रेजिस्‍टेंट बैक्‍टीरिया (ARB) की वजह से सेकेंडरी इन्‍फेक्‍शन हुआ तो हालात बेहद गंभीर हो जाते हैं।


ऐंटीबायोटिक्‍स के ज्‍यादा इस्‍तेमाल से खतरा कैसे?

निमोनिया के इलाज की खातिर सबसे पहले ब्रॉड-स्‍पेक्‍ट्रम मैक्रोलाइड ऐंटीबायोटिक्‍स दी जाती हैं। हेल्‍थ एक्‍सपर्ट्स का दावा है कि इन ऐंटीबायोटिक्‍स के लिए पैथोजन रेजिस्‍टेंट बढ़ता जा रहा है। इसलिए इलाज के लिए महंगी और थर्ड जेनरेशन की दवाओं का लंबे समय तक इस्‍तेमाल करना पड़ता है। भारत में हर साल 50 हजार से ज्‍यादा बच्‍चों की मौत फर्स्‍ट-लाइन ऐंटीबायोटिक्‍स के पैथोजन रेजिस्‍टेंस के चलते हो जाती है। एक रिसर्च के अनुसार, 2050 तक दुनिया में हर साल 1 करोड़ लोग AMR के चलते अपनी जान गंवाने लगेंगे।


AMR के कोरोना ट्रीटमेंट पर असर का पर्याप्‍त डेटा नहीं

AMR के कोरोना ट्रीटमेंट पर असर से जुड़ा डेटा अभी पूरी तरह से सामने नहीं आया है। हालांकि चीन के वुहान का डेटा दिखाता है कि Covid-19 से मौतों पर AMR का प्रभाव पड़ा है। वहां शुरुआती सैंपल्‍स में जिन 54 मरीजों की मौत हुई, उनमें से 27 में सेकेंडरी इन्‍फेक्‍शन मिला था। एक मरीज को छोड़कर बाकी सबका इलाज ऐंटीबायोटिक्‍स से किया गया। कोरोना से इन्‍फेक्‍शन के साथ अगर कोई बैक्‍टीरियल इन्‍फेक्‍शन हो गया तो मरीज की हालत बेहद खराब हो सकती है।