Opposition Unity / लालू प्रसाद यादव के ‘PM प्लान’ में कौन है दूल्हा और कौन है बाराती?

करीब एक हफ्ते पहले पटना में विपक्षी एकजुटता की बहुत बड़ी बैठक हुई. इस बैठक में विपक्षी दलों के तमाम दिग्गज एक मंच पर मौजूद थे. देश की मौजूदा राजनीति के कद्दावर शरद पवार, ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव और नीतीश कुमार एक लाइन से बैठे थे. लेकिन, इन नेताओं की मौजूदगी के बीच लालू यादव ने अपने पुराने अंदाज में एंट्री मारी और पूरी महफिल लूट ले गए. अचानक उनकी चर्चा होने लगी.

Vikrant Shekhawat : Jul 02, 2023, 07:17 AM
Opposition Unity: करीब एक हफ्ते पहले पटना में विपक्षी एकजुटता की बहुत बड़ी बैठक हुई. इस बैठक में विपक्षी दलों के तमाम दिग्गज एक मंच पर मौजूद थे. देश की मौजूदा राजनीति के कद्दावर शरद पवार, ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव और नीतीश कुमार एक लाइन से बैठे थे. लेकिन, इन नेताओं की मौजूदगी के बीच लालू यादव ने अपने पुराने अंदाज में एंट्री मारी और पूरी महफिल लूट ले गए. अचानक उनकी चर्चा होने लगी. उन्हें 2024 के लिए ‘विपक्ष जोड़ो‘ प्रोजेक्ट का सूत्रधार कहा जाने लगा. लालू यादव ने इशारों-इशारों में कुछ ऐसा कहा कि वो सप्ताह के न्यूजमेकर बन गए

लालू प्रसाद यादव का अंदाज ए बयां और अदायगी ही है जिसने आज भी अवाम को जोड़ रखा है. उन्होंने जब तक सक्रिय सियासत की तब तक उनकी धमक और हनक कायम रही . 77 बरस के लालू यादव अब बीमारी के आगे मजबूर और सक्रिय राजनीति से दूर हैं, बावजूद इसके 23 जून को उनका विपक्षी एकता के सबसे बड़े गठजोड़ पर मंच पर आना और फिर छा जाना साबित करता है कि लालू पहले भी न्यूज मेकर थे और आज भी.

करीब एक साल तक किडनी की बीमारी से लड़ने के बाद लालू पहली बार पटना में सार्वजनिक मंच पर थे. माइक हाथ में आया, तो जैसे लालू अचानक पुराने रंग में लौट आए. वही स्टाइल, वही तेवर, विरोधियों पर हमले करने का वही अंदाज दिखा. लंबे वक्त बात लालू फॉर्म में लौटते दिखे. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बल्लेबाज हर बॉल पर सिक्सर मार रहा हो. उनके शब्द दिमाग में जारी राजनीतिक बिसात का इशारा दे रहे थे. उन्हें पता है टारगेट कहां करना है इसलिए निशाने पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राहुल गांधी को भी लिया, लेकिन इसका मकसद कुछ और था.

प्रधानमंत्री बनना नीतीश कुमार का भी ख्वाब

चौबीस में बीजेपी और नरेंद्र मोदी से लड़ाई है इसलिए विपक्ष एकजुटता के साथ-साथ एक ऐसे चेहरे की तलाश में भी है, जो नरेंद्र मोदी को टक्कर दे सके. लेकिन लालू तो लालू हैं, वो हर बात खुलकर करते हैं. वो कहते कुछ हैं, लेकिन उसके मायने कई होते हैं. उन्होंने कहा, राहुल गांधी अच्छा काम किए इन दिनों में भारत दर्शन, देशभर में पैदल दर्शन कराए लगों को घूमे और लोकसभा में भी अच्छा काम किया अदाणी पर. बात तो हम लोगों का माने नहीं, ब्याह नहीं किए शादी कर लेना चाहिए था और अभी भी समय गया बीता नहीं है. शादी करिए और हम लोग बाराती चलें शादी करिए बात मानिए, हो जाएगा…आपने कह दिया तो हो जाएगा. मम्मी आपकी बोलती थी कि हमारा बात नहीं मानता है शादी करवाइए आप लोग.

सात मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरजेडी अध्यक्ष करीब दो मिनट इसी मुद्दे पर बोलते रहे. बात दूल्हे की हुई, बारात की हुई, बारातियों की हुई. खूब ठहाके लगे. इन बातों पर बगल में बैठे नीतीश कुमार भी खूब हंसे. प्रधानमंत्री बनना उनका भी ख्वाब है. 23 जून की उस शाम नीतीश को पता ही नहीं चला कि बगल में बैठे लालू ने हंसते हंसते उनके सपने को सस्पेंस बना दिया. राजनीति के बड़े बड़े जानकार शादी, दूल्हे और बाराती का मतलब निकालने बैठ गए. लालू का बयान डिकोड होने लगा. तब पता चला कि लालू क्या कहना चाहते हैं.

इशारे में ही लालू ने राहुल को बताया विपक्ष का पीएम उम्मीदवार

जानकार बता रहे हैं कि असल में लालू ने राहुल के लिए ये बातें कहकर एक तीर से कई शिकार किए हैं. उन्होंने इशारो इशारों में राहुल को विपक्ष का पीएम उम्मीदवार बता दिया. लालू के कहे शादी का मतलब गठबंधन. दूल्हा का मतलब गठबंधन का नेता और नेता का मतलब संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवार. अब लोग कह रहे हैं कि लालू ने बैठे बैठे नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के अरमानों को पलीता लगा दिया.

ये नब्बे के दशक के किंगमेकर लालू हैं, जिन्होंने उस दौर में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने का सपना तोड़ दिया था. इनकी अगुवाई में ही पहले एचडी देवेगौड़ा और फिर बाद में इंद्रकुमार गुजराल पीएम बने. हालांकि अब वक्त बदल चुका है. तब के राजनीतिक दुश्मन आज दोस्त हैं. 23 जून को पटना में विपक्षी बैठक से एक दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी बैठक के लिए आईं, तो सबसे पहले लालू के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया.

आडवाणी को गिरफ्तार करवाने वाले लालू कर रहे बजरंगबली की बात

कहा जाने लग गया था कि अब लालू का सूरज ढल गया है. उनकी राजनीति ढलान पर है. वहीं लालू 23 जून को ऐसे तेवर में लौटे, जिसने साफ कर दिया कि अभी उनके अंदर वही पुरानी आग बाकी है. लालू ने कहा, ‘हिंदू मुस्लिम का नारा कर देकर हनुमान जी का नाम लेकर जय हनुमान का नाम लेकर चुनाव लड़ते हैं. इस बार कर्नाटक में हनुमान जी ऐसा गदा मारे इन लोगों की पीठ पर कि राहुल गांधी की पार्टी जीत गई. इनका पार्टी जीता, हनुमान जी अब हम लोगों के साथ हो गए. हम लोग इक्टठा सब कोल नील सबको जमा कर रहे हैं. इस बार तय है…गए इ लोग…बहुत बुरा हाल होने वाला है भाजपा का नरेंद्र मोदी का.’

हमेशा की तरह लोग लालू की इन बातों पर भी हंसे, लेकिन वो अच्छी तरह जानते हैं, कि ये सिर्फ एक मजाक नहीं है. ये देश की बदलती सियासत का वो वक्त है. जब मुद्दे पलटने लगे हैं इसलिए कभी राम के नाम पर रथ चलाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाने वाले लालू हनुमानजी की बात कर रहे हैं. खुद को बजरंगबली का भक्त बता रहे हैं. ये वही लालू हैं, जिन्होंने 33 साल पहले राम मंदिर आंदोलन के नायक लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोक दिया था.